सम्पादकीय

बाइडेन के आलोचकों की भी अफगान में हार हुई है, आलोचक अब कुतर्क पर उतर आए हैं

Rani Sahu
3 Sep 2021 8:23 AM GMT
बाइडेन के आलोचकों की भी अफगान में हार हुई है, आलोचक अब कुतर्क पर उतर आए हैं
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एक महीने पहले मैं अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 साल के युद्ध की निंदा कर रहा था।

रॉस डाउदैट। एक महीने पहले मैं अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 साल के युद्ध की निंदा कर रहा था। अब हमारी लड़खड़ाती वापसी और जिसके लिए हम लड़े, उसका पतन देखते हुए मुझे लग रहा है कि मैंने पर्याप्त निंदा नहीं की थी। मेरी निंदा का आधार यह था अफगान राजनीतिक व्यवस्था बनाने का अमेरिकी प्रयास बराक ओबामा के कार्यकाल में तभी असफल हो गया था, जब अमेरिका तालिबान की वापसी नहीं रोक सका।

उस असफलता को नौकरशाही के झूठों से छिपाया गया। 'कूटनीति' शब्द के भरपूर इस्तेमाल की इस कूटनीति के तहत जीत की कोई संभावना नहीं थी, न ही अफगान में बने रहने का स्पष्ट कारण था। बहरहाल अव्यवस्थित ढंग से ही सही, जो बाइडेन ने सेना वापसी कर दिखाई। लेकिन इससे अमेरिका की बतौर महाशक्ति क्षमताओं, अफगानिस्तान में उसके मिशन और इतने वर्ष वहां अमेरिका के बने रहने की भी निंदा होने लगी है।
सबसे पहले, वापसी इतनी अव्यवस्थित रही कि 100-200 अमेरिकी काबुल से आखिरी फ्लाइट ही नहीं पकड़ पाए। यह अमेरिका की अक्षमता दर्शाता है। अराजकता फैलना तो अपरिहार्य था, लेकिन व्हाइट हाऊस तालिबान की बढ़ने की गति से हक्का-बक्का रह गया। राष्ट्रपति खुद हैरान-परेशान दिखे और हर अमेरिकी को सुरक्षित वापस लेने के सामान्य से वादे करते रहे।
मेरा उद्देश्य वापसी के प्रबंधन में बाइडेन प्रशासन की सीधी अलोचना करना नहीं है? मैं उस मीडिया कवरेज और राजनीति प्रतिक्रिया की बात कर रहा हूं, जो अफगान से सेना की वापसी के विरोध में ऐसे तर्क दे रहे हैं, जो खुद को धोखा देने वाले, संदिग्ध या खतरनाक हैं। जैसे यह तर्क कि अफगानिस्तान में स्थिति काफी स्थिर थी और ट्रम्प प्रशासन से पहले वहां युद्ध में हुई मौतों की संख्या कम होने लगी थी।
वास्तव में अमेरिकियों की मौत भले कम हुई, लेकिन मरने वाले अफगान सैनिकों और नागरिकों की संख्या 15,000 सालाना से ज्यादा रही। और तालिबान की तेजी देख लगता है कि वह स्पष्ट रूप से अपना आधार मजबूत कर रहा था, जिससे लगता है कि अमेरिका को समय-समय पर सैनिक बढ़ाने की जरूरत थी।
यह तर्क भी बेकार है कि अफगान उदारवाद को बढ़ाने के लिए सेना की अनिश्चित तैनाती नैतिक रूप से जरूर थी। अगर 20 साल के प्रयास और दो लाख करोड़ डॉलर खर्च करने के बाद भी उदारवाद का धर्मतंत्र संबंधी विकल्प इतनी तेजी से एक देश पर कब्जा कर लेता है, तो यह संकेत है कि हमारी नैतिक उपलब्धियों पर भ्रष्टाचार, अक्षमता और ड्रोन अभियान भारी पड़ गए।
ऐसे सभी तर्क उस मानसिकता से जुड़े हैं, जो 9/11 के बाद फली-फूली थी, जो केबल-न्यूज द्वारा प्रोत्साहित, अमेरिकी सेना की क्षमताओं में अति-आत्मविश्वास, दूसरे विश्वयुद्ध की यादों का भोलापन और उदार तथा नव-रूढ़िवादी स्वरूपों में मानवतावाद का मिश्रण है। अमेरिकी प्रबुद्धवर्ग में इसकी अभी भी अपील है। इसलिए बड़े-बड़े तथाकथित रणनीतिकार कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में 20 साल और रहना था।
बाइडेन अमेरिका को उन असफल नीतियों से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, जिनका उनके सबसे बड़े आलोचक लंबे समय से समर्थन करते रहे हैं। उन्हें बाइडेन को ही बलि का बकरा बनाना ज्यादा आकर्षक रास्ता लग रहा है। लेकिन अगर हमारे नेताओं को इस तबाही में सिर्फ यही याद है कि अगस्त 2021 में क्या गलत हुआ, तो हमने असफलता को दोगुना करने के अलावा कुछ नहीं सीखा और अगली आपदा और भी बदतर होगी।


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