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बाइडेन का न्यूज
बाइडेन अभी यूरोप यात्रा पर हैं। इस दौरान जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद स्कॉटलैंड के ग्लासगो में शुरू हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जाएंगे। लेकिन अपने देश में वे जलवायु परिवर्तन रोकने की योजना पर खर्च बढ़ाने से संबंधित प्रस्ताव को कांग्रेस में पारित करवाने में नाकाम रहे।
अमेरिका में नवंबर में चुनाव की तारीख से लेकर 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण तक पुराने राष्ट्रपति लेम-डक प्रेसिडेंट कहा जाता है। ये अवस्था तब आती है, जब निवर्तमान राष्ट्रपति ने अपने दो टर्म को पूरा लिया हो या एक टर्म के बाद चुनाव हार गया हो। या फिर वैसे राष्ट्रपति के लिए भी ये शब्द इस्तेमाल होता है, जिसकी पार्टी को कांग्रेस के दोनों सदनों में बहुमत हासिल ना हो। जो बाइडेन के साथ ये दोनों ही स्थितियां नहीं हैं। राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के अभी दस महीने ही पूरे हुए हैँ। लेकिन उनकी स्थिति ऐसे ही हो गई है कि खुद अमेरिका में मीडिया में यह कहा जा रहा है कि देश में विधायी मोर्चे पर बाइडेन की इस नाकामी का असर उनके अंतरराष्ट्रीय रसूख पर पड़ेगा। अमेरिका में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके अधिकारियों ने कहा है कि अमेरिका के सहयोगी देश अब इस बारे में अपने निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि बाइडेन जो कहते हैं, क्या वे उसे अमली जामा पहनाने की स्थिति में हैं। इसलिए कि बाइडेन प्रशासन का घरेलू एजेंडा गहरी मुसीबत में फंसा हुआ है।
बाइडेन अभी यूरोप यात्रा पर हैं। इस दौरान जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद स्कॉटलैंड के ग्लासगो में शुरू हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जाएंगे। लेकिन अपने देश में वे जलवायु परिवर्तन रोकने की योजना पर खर्च बढ़ाने से संबंधित प्रस्ताव को कांग्रेस में पारित करवाने में नाकाम रहे। उनकी ही पार्टी के कुछ सांसदों ने ऐसा नहीं होने दिया। जाहिर है, ऐसा बड़ी कंपनियों की लॉबिंग की वजह से हुआ। साथ ही यह अमेरिका में लगातार ध्रुवीकृत होती गई राजनीतिक का परिणाम भी है कि किसी विधायी एजेंडे को अंजाम तक पहुंचाना बेहद मुश्किल हो गया है। दुनिया इस स्थिति को देख रही है। वहां सवाल पूछे जा रहे है कि आखिर एक ऐसे देश पर कितना भरोसा किया जा सकता है, जहां खुद अपनी जनता के कल्याण के लिए लाई गई योजनाओं को पारित कराना असंभव हो रहा है? अमेरिकी मीडिया ने ध्यान दिलाया है कि पिछले तकरीबन 30 वर्षों से हर अमेरिकी राष्ट्रपति ने दवा कंपनियों से सौदेबाजी करने के लिए सरकार को अधिकृत करने की इच्छा जताई है। लेकिन उनमें कोई ऐसा करने में सफल नहीं हुआ। अब बाइडेन भी इस सूची में शामिल हो गए हैँ। तो जाहिर है, उनके अंतरराष्ट्रीय रसूख पर असर पड़ना ही है।
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