सम्पादकीय

भारतेंदु हरिश्चंद्र: हिंदू और हिंदुस्तान की व्याख्या करने वाले साहित्यकार

Neha Dani
10 Sep 2022 11:14 AM GMT
भारतेंदु हरिश्चंद्र: हिंदू और हिंदुस्तान की व्याख्या करने वाले साहित्यकार
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जिसकी एक पंक्ति रेलवे स्टेशनों की दीवारों पर आज भी लिखी मिल जाती है-

बलिया शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक मेला लगता है जो 'ददरी का मेला' नाम से प्रसिद्ध है. बताया जाता है कि भृगु ऋषि के शिष्य का नाम दर्दर था. दर्दर ने ही अपने गुरु की याद में एक मेले का आयोजन किया. जिसमें तमाम ऋषियों ने भाग लिया. उन्हीं शिष्य के नाम पर इस मेले का नाम ददरी का मेला पड़ा. इस मेले का वर्णन प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान ने भी किया है. मेले के बारे में कहा जाता है कि यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मवेशी मेला है. मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने की परंपरा बहुत पुरानी है.

साल 1884 में इसी मेले में आयोजकों ने बनारस के नामी-गिरामी साहित्यकार को भाषण देने के लिए बुलाया. उस साहित्यकार ने अपने भाषण में कहा-

'इस महामंत्र का जाप करो जो हिंदुस्तान में रहे, चाहे किसी रंग, किसी जात का क्यों न हो, वह हिंदू है, हिंदू की सहायता करो, बंगाली, मराठा, पंजाबी, मद्रासी, वैदिक, जैन ,ब्रह्मों, मुसलमान सब एक हाथ एक पकड़ो.'

हिंदू और हिंदुस्तान की ऐसी व्याख्या करने वाले साहित्यकार का नाम था भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) और उस प्रसिद्ध भाषण का शीर्षक था 'भारतवर्ष उन्नति कैसे हो सकती है'.

मेरा लेखकीय आग्रह है कि इस भाषण का पाठ होना चाहिए. इसमें भारतेंदु ने कलेक्टर साहब की मौजूदगी में ही उनको संबोधित करते हुए जहां एक ओर ब्रिटिश शासन की निरंकुशता पर व्यंग्य किया है वहीं दूसरी ओर उन्होंने हम भारतीयों के आलस्य, समय कुप्रबंधन, रूढ़ियों, जनसंख्या-वृद्धि और गलत जीवन शैली की आलोचना करते हुए अंग्रेजों से सीखने को कहा है.

भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य में आधुनिकता का प्रवर्तक साहित्यकार माना जाता है. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म आज ही के दिन 9 सितंबर को 1850 में बनारस में हुआ था. इनके पूर्वज सेठ अमीचंद थे. ये वही सेठ अमीचंद है जिनका वर्णन प्लासी के युद्ध में मिलता है.

नवाब सिराजुद्दौला के दरबार में रहने वाले सेठ अमीचंद ने अंग्रेजों की सहायता की थी. अंग्रेजों ने इनके साथ विश्वासघात किया. परिणाम रहा कि सेठ अमीचंद पागल हो गए. इनके लड़के बनारस चले गए. सेठ अमीचंद के प्रपौत्र गोपाल चंद के बड़े पुत्र भारतेंदु हरिश्चंद्र थे.

5 वर्ष की उम्र में माता को और 10 वर्ष की उम्र में पिता को खोने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र का पालन पोषण एक दाई और एक नौकर ने किया था. बचपन में इनका मन स्कूली पढ़ाई लिखाई में नहीं लगा. हालांकि उन्होंने कुछ समय तक बनारस के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में पढ़ाई की थी. इनके पिता गोपाल दास भी कविता लिखते थे. ऐसा माना जाता है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र 5 वर्ष की उम्र में पिता की रची एक पंक्ति 'लै ब्यौढ़ा काढ़े भरे श्री अनिरुद्ध सुजान' की दूसरी पंक्ति 'वाड़ासुर की सैन्य को हनन लगे भगवान' तुरंत बना दिया था.

केवल साढ़े चौतीस वर्ष तक जीवित रहने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है. इनकी कुल 238 रचनाएं बताई जाती हैं. भारतेंदु ने सभी विधाओं को समृद्ध किया. हिंदी में अनेक विधाओं को लाने का श्रेय भारतेंदु को ही जाता है. यह वह जमाना था जब हिंदी का वर्तमान स्वरूप विकसित नहीं हुआ था. जो जहां थे वहीं की बोली और पुट लिए लिख रहे थे. भारतेंदु ने सबको उत्साहित किया और 1873 में घोषणा किया कि 'हिंदी नई चाल में ढली.'

हिंदी के प्रति उनका प्रेम इन पंक्तियों से समझा जा सकता है, जिसकी एक पंक्ति रेलवे स्टेशनों की दीवारों पर आज भी लिखी मिल जाती है-


Source: the quint


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