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- भुलाई जा रही...
सर्वोदय के संस्थापन के पचहत्तरवें वर्ष की शुरुआत में हम लोगों ने 14 मार्च से 18 अप्रैल तक पदयात्रा का संकल्प किया था। पोचमपल्ली (तेलंगाना) से शुरू होकर सेवाग्राम (वर्धा, महाराष्ट्र) तक, 600 किलोमीटर की इस यात्रा के तीसवें दिन अनेक ख्याल मानस पटल पर उमड़ते रहे। इस लेख में मैं उन्हीं को साझा करने का प्रयास कर रही हूं। यात्रा के ठीक चार दिन पहले पांच राज्यों के चुनावी नतीजे सामने आए। सबसे अधिक सीटों वाले प्रदेश के पुनर्निर्वाचित मुख्यमंत्री ने चुनावी बिगुल बजाते हुए जिस अस्सी-बीस की लड़ाई का जिक्र किया था, वे उस वैमनस्य पर मुहर लगवाने में सफल हो गए। वही नहीं, हर राज्य में परिणाम बहुसंख्य समाज के प्रभुत्व संपन्न वर्ग द्वारा बुने कथानक के अनुसार ही रहा। पंजाब अपवाद रहा। मगर यह भी याद रखा जाना चाहिए कि पंजाब के सत्तारूढ़ दल ने इसके पहले दिल्ली चुनाव के मद्देनजर नागरिकता कानून के खिलाफ हुए नागरिक प्रतिरोधपर सुविधाजनक चुप्पी साध ली थी, दिल्ली में हुए दंगों पर कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी थी और कश्मीर में धारा-370 की समाप्ति के खिलाफ लोकसभा में मतदान नहीं करके सुविधाजनक बहिर्गमन को चुना था। अस्तु, यात्रा विनोबा को मिले पहले भू-दान के स्थान से शुरू हुई थी। विनोबा ने बाद में तेरह साल घूमकर सैंतालिस लाख एकड़ जमीन प्राप्त की जो भूमिहीनों में बांटी गई। विनोबा 'जय जगत' का नारा देते थे, सीमामुक्त भूगोल का स्वप्न देखते थे।