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- भामाशाह निर्भीक! कमल...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मन उदास है। उस पीढ़ी का एक ओर हंस उड़ चला जो सत्य के साक्ष्य में विचारती थी, निर्भीक उड़ती थी और जिनकी बैठक की गपशप में मन रमता था। उस पीढ़ी की कमल मोरारका बैठक में मैंने अनेकों बार सोचा कि आजाद भारत के इतिहास में डॉ. राममनोहर लोहिया, रामनाथ गोयनका के अलावा यदि तीसरा विचारवान, निर्भीक, स्वतंत्रमिजाजी, देशचिंतक वणिक कोई है तो वह कमल मोरारका हैं! हां, कमल मोरारका धनवान, उद्योगपति थे लेकिन धन के पीछे भागते हुए, धन के संचय, कंजूसी की प्रवृत्ति के संस्कारों से शून्य! वे धनवान होते हुए भी समाजवादी थे लेकिन समाजवादियों की तरह छोटी-छोटी बातों पर लड़ने, अहंकार और अंहमन्यता में जीने वाले नहीं। वे सनातनी हिंदू परंपरा के ऐसे सच्चे शेखावटी सेठ थे जो मेवाड़ के भामाशाह की तरह हमेशा अपने नेता चंद्रशेखर के प्रति, उनके समाजवादी विचारों के प्रति समर्पित रहे। धन का भरपूर वैभव था और उससे जीवन का पूर्ण आनंद लेते हुए भी उन्होने वैभव को कभी हावी नहीं होने दिया। मेरा कमल मोरारका से कोई 1984 से संपर्क था। मैंने तब से लेकर पिछले साल की मुलाकात तक में उन्हें हमेशा कुर्ते-पाजामे-शॉल-चप्पल की सादगी में देखा। कांग्रेस का वक्त हो या अपनी सत्ता-तीसरे मोर्चे (वीपी सिंह-चंद्रशेखर-देवगौड़ा) का वक्त या नरसिंह राव से शुरू उदारवाद के वक्त में देश के तमाम धनपतियों को बदलता देखा। इनकी कारोबार-उद्योग में दो दूनी चार, चार दूनी चालीस, चालीस दूनी चार सौ बनाने की क्रोनी भूख में भारत को भ्रष्ट्र होते देखा लेकिन कमल मोरारका वितरागी सहजता में रमे रहे। वे अपने अंदाज में जीये और वाजपेयी-मनमोहन सिंह आदि तमाम सरकारों में अंतरंगताओं (जसवंत सिंह से ले कर मुरली देवड़ा आदि) के बावजूद कभी इन कोशिशों में वक्त खपाते नहीं मिले कि सरकार की क्रोनी कृपा से वे धंधा और चमकाएं!