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हमारे देश के पास कई गौरव रहे, लेकिन कुछ को हमने ही दुर्भाग्य में बदला और उसकी कीमत आज तक चुका रहे हैं
पं. विजयशंकर मेहता हमारे देश के पास कई गौरव रहे, लेकिन कुछ को हमने ही दुर्भाग्य में बदला और उसकी कीमत आज तक चुका रहे हैं। भारत में जब स्त्री-पुरुष के बीच मतभेद होता है, स्त्रियां अपने अधिकार और सम्मान के लिए संघर्ष करती हैं, तब दिखता है कैसे हमने गौरव को दुर्भाग्य में बदला। गौरव यह है कि हमारे देश का मूल चित्त स्त्रैण है। शास्त्रों में कहा गया है भक्ति स्त्रैणचित्त का विषय है। इसीलिए माता-बहनों के जीवन में भक्ति आसानी से उतर आती है।
पुरुष इस मामले में कुछ समीकरण चलाते हैं। अब आ रहा है उत्सव का दौर। दिवाली तक हम उल्लास की एक नई दुनिया में रहेंगे। पुरुष आयोजन का प्रबंधन बहुत अच्छी तरह से करते हैं, स्त्रियां उत्सव की परंपराओं को बखूबी निभाती हैं। और, इन दोनों का यह भाव अब इन दिनों में देखने को मिलेगा। आने वाले समय में देश का स्त्रैण चित्त बहुत अच्छा रूप लेगा।
तो इसी समय स्त्री-पुरुष को एक संदेश लेना चाहिए कि स्त्रियां पुरुष के समकक्ष रहें और पुरुष भी नारी को पूरा मान दें। आगामी उत्सवों की प्रत्येक कथा स्त्री-पुरुष के गौरव की कथा है। चाहे किसी भी भाव से चिंतन करें, यह तय है कि हम सबका मूल चित्त स्त्रैण है और यही भारत को पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलाता है। इसलिए नारी के मान में कोई कमी नहीं होना चाहिए।

Rani Sahu
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