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पंजाब (Punjab) में मेरा पहला परिचय भगवंत मान (Bhagwant Mann) से ही हुआ था
रौशन शंकर
पंजाब (Punjab) में मेरा पहला परिचय भगवंत मान (Bhagwant Mann) से ही हुआ था. बेशक, दिल्ली (Delhi) में पंजाबियों की अच्छी खासी आबादी है और उनमें से कई मेरे अच्छे दोस्त हैं. लेकिन पंजाबी की जो खासियत और अनोखापन है उनका वे वास्तव में प्रतिनिधित्व नहीं करते थे. मेरे प्राइमरी स्कूल एपीजे शेख सराय के स्कूल बस चालक, जो भगवंत मान के कैसेट सुना करते थे, ने मुझे उनकी व्यंग्य प्रतिभा से परिचित कराया. हमारे ड्राइवर साहब काफी मेहरबान थे जो हमारे लिए मान के सामग्रियों का अनुवाद और संदर्भ समझाने का काम कर देते थे. पांचवीं कक्षा के हम छह छात्र उनके सामने बैठते थे और वे भारत में सरकार और राजनीति की व्यवस्था पर भगवंत मान के व्यंग्य का आनंद लेते हुए अनुवाद करते थे.
Sab TV पर पंकज कपूर के "ऑफिस ऑफिस" सीरियल के जरिए भगवंत मान के साथ-साथ राजनीति और नीति से मेरा परिचय हुआ. यह सीरियल नौकरशाही में फंसे आम आदमी की कहानी थी. पंजाब वाकई बेमिसाल है. जिसके तार सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक युग से जुड़े हैं, जिससे सिख धर्म की उत्पत्ति का इतिहास जुड़ा है, जो भारत और पाकिस्तान के खूनी विभाजन का चश्मदीद रहा है और जिसे आज भारत को खिलाने और उसकी रक्षा करने का गौरव हासिल है
भगवंत मान ओरिजिनल लॉन्ग-फॉर्म पॉडकास्ट और टिकटॉक का संगम थे
बहरहाल, जिस युग में मैं बड़ा हुआ मैंने देखा कि भारतीय राज्यों के बीच पंजाब अपनी प्रतिष्ठा, ताकत और अपने ओहदे को गंवा रहा था. मान की सादी बिल्ली सानू मियांउ, जुगनू हाज़िर है, गुस्ताखी माफ़ और कुल्फी गरमा गरम ने किसी भी इतिहासकार या लेखक की तुलना में पंजाब और भारतीय राज्य शासन को कहीं बेहतर ढंग से बताया. वे उस वक्त ओरिजिनल लॉन्ग-फॉर्म पॉडकास्ट और टिकटॉक का संगम थे. मेरे पिता और मैंने अपने दूसरे पसंदीदा राजू श्रीवास्तव के साथ ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में उनका खूब हौसला बढ़ाया. दुख की बात है कि नवजोत सिंह सिद्धू, शेखर सुमन और दर्शकों के पास कुछ और योजनाएं थीं.
फिर हम कॉलेज गए. इंटरनेट, लैन, एक शौक के रूप में क्वीज़ और टेराबाइट्स वाली हार्ड डिस्क ने मुझे कंटेंट की दुनिया से रू-ब-रू कराया. पंजाब मेरे रडार से आधे दशक से भी ज्यादा समय से बाहर था. फिर दो भौतिकविदों रघु महाजन और राजीव कृष्णकुमार के माध्यम से वापस लौट आया. इन्होंने मेरे जीवन में एक ही समय में गुरदास मान, बोहेमिया, आसा सिंह मस्ताना, शिव कुमार बटालवी, जैज़ी बी और सुखबीर का आनंद दिलाया.
खास तौर पर रघु ने मुझे अविभाजित पंजाब के लेखन और कविता से परिचित कराया और इन लेखनियों और कविताओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया. वो और मैं वैकल्पिक राजनीति में रुचि लेने लग गए और हाल ही में स्थापित की गई आम आदमी पार्टी के लिए फंड का इंतजाम करने से लेकर शोध के द्वारा उनको समर्थन देने लग गए. 2013 में एक धमाकेदार एंट्री के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी हार का सामना करना पड़ा.
मान संसद में अपने हस्तक्षेप के दौरान निडर और व्यापक होते थे
नतीजों वाली रात तो ऐसा लग रहा था मानों दिल्ली हाथ से निकल गई और विकल्प का सपना भी चकनाचूर हो गया. और फिर उम्मीद की एक रोशनी आई. पंजाब ने लोकसभा के लिए आम आदमी पार्टी के चार उम्मीदवारों को चुना था. यह कुछ प्रगतिशील विचारों को अपनाने और कुछ अच्छे लोगों को मौका देने की अपनी ऐतिहासिक आदत पर खरा उतरा था. और उनमें से भगवंत मान भी थे. मैं राजनीतिक बदलाव के लिए प्रयास कर रहे कुछ अच्छे लोगों की मदद करने के लिए नए जोश के साथ दिल्ली आया था और नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी के विजयी रथ को चुनौती देते हुए ऐसा भारतीय गणराज्य बनाने की ख्वाहिश रखता था जिस पर हम गौरव कर सकें.
और ये देखिए कि पार्टी में मेरा पहला काम (हालांकि दिल्ली घोषणापत्र पर काम करने से पहले केवल कुछ महीनों के लिए) शोध के साथ संसद सदस्य भगवंत मान की सहायता करना था. उनके साथ कम समय के लिए ही बातचीत होती थी लेकिन ये निस्संदेह मजेदार होती थी. मुझे उनमें पंजाब की तरक्की के लिए एक जुनून दिखा, जनता की भलाई के लिए अथक ऊर्जा और उनके सार्वजनिक जीवन में किसी भी क्रोनी पूंजीवाद का प्रभाव बिल्कुल ही नहीं दिखा. वे संसद में अपने हस्तक्षेप के दौरान निडर और व्यापक होते थे. उन्होंने सांसद के रूप में अपने पहले कार्यकाल में 107 बहसों में हस्तक्षेप किया, जो राज्य के 49 वाद-विवाद के औसत से दोगुना और एक सांसद के राष्ट्रीय औसत से 40 प्रतिशत अधिक था.
संसद में उनका पहला विशेष उल्लेख पंजाब में मादक पदार्थों की लत के मुद्दे और पंजाब के युवाओं को इसकी आपूर्ति को रोकने के लिए आवश्यक कदमों पर था. उन्होंने पंजाबी युवाओं के लिए बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन का समर्थन किया, पंजाब के कैंसर रोगियों के लिए उपचारात्मक उपायों और स्वास्थ्य सुविधाओं का आग्रह किया, अमृतसर में शिक्षकों के खिलाफ पुलिस ज्यादती के मुद्दों को और पंजाब के धान उत्पादकों को सरकार द्वारा बकाया राशि का भुगतान न करने के मुद्दे को भी जोर-शोर से उठाया.
2015 की दिल्ली चुनाव में आप के लिए एक स्टार प्रचारक बने मान
उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए सरकार से कृषि के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का आग्रह किया, पंजाब पुलिस द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे को उठाया, एससी/एसटी/ओबीसी युवाओं के लिए छात्रवृत्ति का भुगतान न करने और पंजाब में शिक्षा की बिगड़ती गुणवत्ता का मुद्दा उठाया. इतना ही नहीं, पंजाब-हरियाणा के जल विवाद और गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के विषय पर तार्किक ढंग से अपनी बात रखी. उन्होंने कैदियों और विचाराधीन कैदियों की गरिमा के साथ-साथ पंजाब खाद्यान्न घोटाले जैसे कुछ अनदेखे मुद्दों को भी उठाया. उनके सवालों ने सरकार के कई मंत्रालयों को कटघड़े में खड़ा किया… काले धन पर बने एसआईटी से लेकर, बिजली शुल्क, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध, सौर ऊर्जा, सॉलिड और लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट और सार्वजनिक अस्पतालों में समस्याओं पर उन्होंने बेबाकी से सवाल पूछे.
इन सभी हस्तक्षेपों में उन्होंने नीतिगत सवाल उठाए और उन पर सरकारी/नौकरशाही प्रतिक्रियाएं सामने आईं. और ये सब इसलिए हुआ क्योंकि आखिर कोई तो था जो इन मुद्दों पर प्रकाश डाल रहा था. उन्होंने अपनी शैली में आम आदमी पार्टी के विचारों और दिल्ली के मुद्दों को शिद्दत के साथ उठाया और निभाया भी. उनके हस्तक्षेप ने डीडीए के साथ दिल्ली के मुद्दों को, दिल्ली के बजट की समस्याओं, भारत सरकार द्वारा असंवैधानिक संशोधनों के साथ कार्यकारी आदेश के द्वारा दिल्ली के शासन ढांचे में तब्दीली और दिल्ली पुलिस की अपर्याप्तता के मुद्दे को उठाया. और जब समय पर्याप्त नहीं था, उन्होंने अपनी व्यंग्य कविता के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. ये व्यंग्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत भारत सरकार पर एक टिप्पणी के रूप में उनकी एक वार्षिक विशेषता बन गई. लोकसभा वेबसाइट के विट एंड ह्यूमर सेक्शन में उनके कई उल्लेख महज संयोग नहीं हैं.
राजनीतिक रूप से वो आम आदमी पार्टी के सिद्धांतों के वफादार दोस्त और सहयोगी बने रहे, बावजूद इसके कि बीजेपी और कांग्रेस से शामिल होने के लिए उन्हें तरह तरह के नकद और कई तरह के प्रलोभन दिए जाते रहे. जब ज्यादातर लोगों ने आप छोड़ दिया था या मोदी युग से कोई उम्मीद नहीं रहा तो वे 2015 की दिल्ली चुनाव में आप के लिए एक स्टार प्रचारक बने और भीड़ खींचने वाले नेता साबित हुए. उन्होंने शहर में लगभग उतनी ही रैलियां की जितनी अरविंद केजरीवाल ने की थीं. एक सांसद के रूप में, उन्होंने अपने स्थानीय क्षेत्र के विकास कोष का उपयोग जनता की भलाई के लिए किया, खास तौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में.
2019 में मान संसद में लौटने वाले AAP के एकमात्र उम्मीदवार थे
साथ ही उन्होंने पंजाब की राजनीति में खुद को एक मिलनसार और दोस्त प्रतिनीधि के रूप में स्थापित किया. उन्होंने बादल और कैप्टन अमरिन्दर सिंह जैसे सियासतदानों द्वारा बनाए गए "राजा" और जनता से दूर रहने वाले नेता की छवि को तोड़ा. 2014 में पंजाब में आश्चर्यजनक रूप से लोकसभा की जीत और 2015 में दिल्ली की जबरदस्त जीत के बाद, 2017 का चुनाव भी आम आदमी पार्टी और मान के लिए एक सफल चुनाव की तरह लग रहा था. पहले के आप प्रतिनिधियों की आंतरिक लड़ाई, एक ग्रामीण राज्य में राजनीतिक अनुभवहीनता, मीडिया की गलत सूचना, सोशल मीडिया प्रचार, क्रोनी पूंजीवाद का आम आदमी पार्टी के खिलाफ जंग और बीजेपी, अकाली दल और कांग्रेस के बीच एक गुप्त समझौते ने AAP को 2017 के चुनाव जीतने से रोक दिया.
हालांकि, मान ने अपनी काबिलियत से ज्यादा ही कर दिखाया. उन्होंने अपना सुरक्षित गृह क्षेत्र छोड़ दिया और जलालाबाद में पंजाबी अपराध के राजकुमार सुखबीर बादल को चुनौती देने लगे. इतनी ही नहीं, उन्होंने राज्य भर में आप उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया. हार के बावजूद, मान ने पार्टी और पंजाब के लोगों के लिए काम किया. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की चुनावी सुनामी के बीच, मान संसद में लौटने वाले AAP के एकमात्र उम्मीदवार थे. उन्होंने ये चुनाव 100,000 से अधिक मतों के अंतर के साथ जीता था. विपक्ष का दायरा सिकुड़ता गया लेकिन मान की आवाज और तेज होती गई. उन्होंने पंजाब में पंचायत योजनाओं के लिए फंड आवंटन पर सवाल उठाया, राज्य में नई रेलवे परियोजनाओं के लिए आग्रह किया, सतलुज और ब्यास में जल प्रदूषण, पंजाब में आवास, दैनिक मजदूरी और रिन्युएबल ऊर्जा सहित दलित क्रूरता और किसानों का बकाया भुगतान नहीं करने जैसे मुद्दों को जोर शोर से उठाया.
विपक्ष में कई सहयोगियों ने सरकार को लताड़ने के लिए उन्हें समय दिया क्योंकि वे जोशीले शब्दों के साथ मुद्दों को उठाने में काफी प्रभावी रहे हैं. वे सड़कों और संसद दोनों जगह पंजाब के लोगों की आवाज बने. उन्होंने दिल्ली के लिए भी लड़ना जारी रखा और अपने प्रचार कौशल के जरिए दिल्ली में AAP के लिए 2020 की चुनावी जीत में फिर से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे शहर में एक दिन में तीन से चार रैलियां किया करते थे. 2022 ने हमें 2017 से उसी दौर में वापस ला दिया है. पिछले अनुभव से समझदार होते हुए और जीत और हार के जरिए वर्षों से सिद्धांत के सच्चे सहयोगियों की खोज करके, AAP पंजाब में अच्छे शासन के सकारात्मक एजेंडे और ईमानदार राजनीति के ट्रैक रिकार्ड के साथ चुनाव लड़ रही है. दिल्ली में सफलता का रिकॉर्ड प्रदर्शन ने पंजाब के मतदाताओं को आम आदमी पार्टी को गंभीरता से लेने पर मजबूर कर दिया है.
भगवंत मान पंजाब के लिए एक स्पष्ट और व्यवहारिक विकल्प हैं
पिछली बार की तरह, कांग्रेस, अकाली और बीजेपी ने आप पर अपने हमले तेज किए. बदनाम करने वाले बयानों, दुर्भावनापूर्ण और गलत सूचना के प्रचार के साथ उन्होंने अपने हमले को बरकरार रखा. चार दशकों से कांग्रेस और अकाली दल ने पंजाब के नागरिकों को "संगठित और कानूनी तरीके से लूटा" – अगर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के भाषण से इस वाक्यांश का इस्तेमाल करें तो. बादल परिवार ने हरेक क्षेत्र में परिवार संचालित एकाधिकार बना रखा था और सार्वजनिक क्षत्रों को जमींदोज तो किया ही साथ ही पंजाब के युवाओं को नशे की लत लगा दिया. कैप्टन अमरिंदर सिंह एक राजा की तरह बर्ताव करते थे जिनकी सुशासन या नागरिक-केंद्रित नीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वे केवल अपने स्वार्थ पर केंद्रित थे.
नवजोत सिंह सिद्धू कॉमेडी शो को जज करते करते खुद मजाक बन गए जबकि मौजूदा मुख्यमंत्री कांग्रेस की हर गलती को आसानी से कैप्टन के मत्थे मढ़ देते थे. पंजाब की सियासत को साफ करने के लिए झाड़ू की सख्त जरूरत है. हालांकि, इस बार भगवंत मान पंजाब के लिए एक स्पष्ट और व्यवहारिक विकल्प है. मान साब, जैसा कि उन्हें प्यार से जाना जाता है, हमेशा से बेजुबानों की आवाज रहे हैं; पहला कॉमेडी में, दूसरा राजनीति में और तीसरा संसद में. यहां तक कि सार्वजनिक सेवा करते हुए उन्हें पारिवारिक जीवन की कीमत चुकानी पड़ी.
एक राजनेता और सांसद के रूप में ईमानदारी और प्रदर्शन के उनके ट्रैक रिकॉर्ड से पता चलता है कि सुनाम, शहीद उधम सिंह की जन्मभूमि और उनके द्वारा पहनी जाने वाली पीली भगत सिंह पगड़ी से उनकी जड़ें कितनी प्रभावित हैं. कोई केवल यह उम्मीद ही कर सकता है कि पंजाब उस परिवर्तन को अपनाएगा जो दिल्ली ने अरविंद केजरीवाल के साथ अनुभव किया और भगवंत मान को वोट देकर अपना खोया हुआ शान (महिमा) हासिल कर सकेगा. भगवंत मान पंजाब के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जिनके लिए सीएम का पहला मतलब आम आदमी होता है, मुख्यमंत्री बाद में.
Rani Sahu
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