सम्पादकीय

'भगत सिंह और पाश ...' सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरक - डॉ ज़रीन हलीम

Gulabi Jagat
3 Jun 2024 9:27 AM GMT
भगत सिंह और पाश ... सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरक - डॉ ज़रीन हलीम
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Lucknowलखनऊ । साहित्य व विचार की संस्था लिखावट की ओर से कौशल किशोर की कृति 'भगत सिंह और पाश अंधियारे का उजाला' पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन किया गया जिस पर बोलते हुए डॉ ज़रीन हलीम ने कहा कि यह किताब वैचारिक रूप से समृद्ध करती है, हमारी जानकारी को बढ़ाती है तथा सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित करती है।
डा ज़रीन हलीम ने विस्तार में तथा किताब के विविध पहलुओं पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कौशल किशोर ने संक्षेप में ही सही लेकिन दुनिया के अनेक क्रांतिकारियों की जीवनी एवं उनके संघर्षों से अवगत कराया है। इस पुस्तक को पढ़कर लगता है कि कितना कुछ है जिससे हम अनजान रहे हैं जबकि उन्हें जानना कितना महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। यही नहीं इसमें ऐसे शहीदों की शहादत को भी उजागर किया गया है जो गुमनाम हो गए जैसे कि सिंगापुर में तैनात पांच वीर सिपाही जो देश की आज़ादी के लिए शहीद हो गए।
डॉ ज़रीन हलीम Dr. Zareen Haleem का कहना था कि एक प्रतिबद्ध व जनपक्षधर रचनाकार का दायित्व है कि साहित्य एवं समाज की नई पीढ़ी उस उथल पुथल व संघर्ष भरे दौर से भली भांति परिचित हो सके और निडरतापूर्वक सत्य के लिए उसी जज्बे से संघर्षरत हो जिस जज्बे के साथ भगत सिंह, अवतार सिंह पाश, लू शुन, श्री श्री, चेराबंडा राजू , गुरशरण सिंह, शमशेर, गोरख पाण्डेय, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, सफदर हाशमी, अदम गोण्डवी एवं अन्य साहित्यकार अडिग रहकर विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्षरत रहे हैं। इस संदर्भ में डा ज़रीन हलीम ने इरोम शर्मिला की कविता को उद्धृत किया जिसमें वह कहती हैं 'इंसानी जिंदगी बेशकीमती है /इसके पहले कि मेरा जीवन खत्म हो/ होने दो मुझे अंधियारे का उजाला'।
डॉ जरीन हलीम ने किताब से कुछ अंश का भी पाठ किया। उन्होंने पाश को उद्धृत किया जिसमें वह कहते हैं कि 'सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना'। लेकिन पाश का यह कथन भी ग़ौरतलब है कि 'हर किसी को सपना नहीं आते/सपनों के लिए लाजमी है/झेलने वाले दिलों का होना'। इस मौके पर मिथिलेश श्रीवास्तव Mithilesh Shrivastava, असगर मेहंदी, प्रशांत जैन और कुमार विनीताभ ने भी संक्षेप में अपने विचार रखें। इनका कहना था कि ज़हालत और वैचारिक दरिद्रता के दौर में यह एक जरूरी किताब है जो हमारे समय, समाज, साहित्य, राजनीति व इतिहास से रुबरू है। इसमें ऐसी शख्सियत हैं जो अंधेरे में उजाला हैं और हमें आगे बढ़ने में मदद करते हैं। उनका सृजन, संघर्ष और सरोकार सामने आता है। कार्यक्रम में विनोद कुमार श्रीवास्तव (मुम्बई), भास्कर चौधरी (कोरबा, मप्र), जावेद अंसारी (दिल्ली), डॉ उषा राय, डॉ अवन्तिका सिंह और विमल किशोर (लखनऊ) आदि भी उपस्थित रहे।
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