सम्पादकीय

प्रतीक से आगे

Subhi
31 May 2022 5:40 AM GMT
प्रतीक से आगे
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‘भ्रष्टाचार के पांव’ (संपादकीय, 25 मई) पंजाब के आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा भ्रष्टाचार में संलिप्त एक मंत्री विजय सिंगला द्वारा अपने विभाग की निविदिओं और खरीद में एक फीसद कमीशन मांगने पर मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया जाना और उनके खिलाफ केस दर्ज करके जेल भिजवाना एक प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय कार्रवाई है!

Written by जनसत्ता: 'भ्रष्टाचार के पांव' पंजाब के आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा भ्रष्टाचार में संलिप्त एक मंत्री विजय सिंगला द्वारा अपने विभाग की निविदिओं और खरीद में एक फीसद कमीशन मांगने पर मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया जाना और उनके खिलाफ केस दर्ज करके जेल भिजवाना एक प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय कार्रवाई है! अतीत में ऐसे भ्रष्टाचार के मामलों में सत्य साबित होने पर तथाकथित मंत्री अपने पद पर ही बना रहता था। लेकिन जिस तरह संपादकीय में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी के 92 में से 52 विधायक बलात्कार, हत्या, अपहरण, जानलेवा हमला आदि अपराधों में संलिप्त हैं, तो भगवंत मान को चाहिए कि वे अपने सभी विधायकों के बारे में इस संदर्भ में पूरी जानकारी प्राप्त करें और इस बात का पता लगाएं कि ऐसी आपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट किस तरह से और क्यों दिया।

इसके बावजूद जो कुछ भगवंत मान ने किया, वह काबिले-तारीफ है। अब भगवंत मान को चाहिए कि पुलिस विभाग, एक्साइज एंड टैक्सेशन तथा अन्य विभागों में भी भ्रष्टाचार के उन्मूलन को लेकर आवश्यक कार्रवाई करें। इसके साथ-साथ पंजाब में जो मादक पदार्थों की तस्करी, व्यापार और प्रयोग होता है, उसके खिलाफ भी कदम उठाएं। चुनावों से पहलेअरविंद केजरीवाल ने सत्ता में आने पर चौबीस घंटे के अंदर-अंदर बेअदबी के मामले को निपटाने का वायदा किया था। अब दो महीने से भी ज्यादा हो गए हैं। इस मामले में कुछ भी तथ्य सामने नहीं आए। इससे पार्टी की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगता है।

हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला मिले, ताकि वह पढ़-लिख कर एक अच्छा इंसान बने और किसी अच्छी जगह नौकरी करे। मगर इसी अच्छे स्कूल की चाहत उन्हें स्कूल के प्रशासकों को रिश्वत देने पर मजबूर करती है। यह रिश्वत चंदे के नाम पर वसूली जाती है और इसकी कोई पक्की रसीद भी नहीं दी जाती। इस तरह से बच्चे के स्कूल में दाखिला लेते ही भ्रष्टाचार शुरू हो जाता है! यह चंदा वसूली का सिलसिला बच्चों के इंजीनियर या डाक्टर बनने तक बदस्तूर चलता रहता है। उसके बाद सरकारी नौकरी चाहिए तो रिश्वत, किसी अच्छे अस्पताल में इलाज करवाना है तो सिफारिश या रिश्वत, नगर निगम में छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा कोई भी काम बिना रिश्वत दिए हो जाए, ये बेहद मुश्किल। घर बनवाना है, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है तो रिश्वत।

कहने का मतलब यह है कि शायद ही कोई ऐसा काम हो जो बिना रिश्वत दिए हो सकता हो! केंद्र सरकार या राज्य सरकारें चाहे कितने भी दावे करें कि उन्होंने भ्रष्टाचार पर लगाम लगा दी है, लेकिन वास्तविकता इस दावे के उलट ही होती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों, चाहे पंजाब के भगवंत मान, कहते हैं कि कोई भी आपसे रिश्वत मांगे तो उसका वीडियो बनाएं और हमें भेजें! लेकिन क्या यह एक आम आदमी के लिए संभव है? किसी भी भ्रष्ट अधिकारी का वीडियो बनाना इतना आसान होता तो वह रिश्वत ही नहीं लेता। चुनावों में तय सीमा से कई गुणा ज्यादा पैसा खर्च किया जाता है। चुनाव जीतने के बाद चाहे पार्षद हो, विधायक हो या सांसद हो, वह खर्च किए गए पैसे से कई गुणा ज्यादा पैसा बनाता है। क्या यह बिना भ्रष्टाचार किए संभव है?


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