सम्पादकीय

शर्म अल-शेख से आगे : जलवायु बदलाव पर महासम्मेलन की सीख, युद्ध से दूरी बनाना और चेतावनियों पर ध्यान की जरूरत

Neha Dani
28 Nov 2022 3:03 AM GMT
शर्म अल-शेख से आगे : जलवायु बदलाव पर महासम्मेलन की सीख, युद्ध से दूरी बनाना और चेतावनियों पर ध्यान की जरूरत
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एक अभियान चलाकर अगले एक दशक के लिए यह विशेष घोषणा करनी चाहिए, ताकि इस दशक में धरती पर जीवन की रक्षा पर प्रयास केंद्रित हो सकें।
हाल ही में मिस्र में जलवायु बदलाव पर महासम्मेलन संपन्न हुआ। इसके आसपास एक बार फिर विश्व के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन बढ़ते रहने से जलवायु बदलाव की समस्या नियंत्रण से बाहर हो रही है। यह भी सच है कि इस वर्ष यूक्रेन युद्ध से वैश्विक शांति को गहरा धक्का लगा है और एक व्यापक युद्ध का संकट भी मंडराने लगा है। ऐसे में इसकी संभावना कम है कि पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए जिस तरह के अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है, वह मिल सकेगा।
वर्ष 1992 में विश्व के 1,575 वैज्ञानिकों ने एक बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा कि, 'हम मानवता को इस बारे में चेतावनी देना चाहते हैं कि भविष्य में क्या हो सकता है। पृथ्वी और उसके जीवन की व्यवस्था जैसी हो रही है, उसमें व्यापक बदलाव की जरूरत है, अन्यथा हम सबका घर यह पृथ्वी इतनी तहस-नहस हो जाएगी कि फिर उसे बचाया नहीं जा सकेगा।' इन वैज्ञानिकों ने आगे कहा कि वायुमंडल, समुद्र, मिट्टी, वन और जीवन के विभिन्न रूपों पर तबाह हो रहे पर्यावरण का बहुत दबाव पड़ रहा है और वर्ष 2100 तक पृथ्वी के एक तिहाई जीव लुप्त हो सकते हैं।
मनुष्य की मौजूदा जीवन-पद्धति के अनेक तौर-तरीके भविष्य में सुरक्षित जीवन की संभावनाओं को नष्ट कर रहे हैं। इन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने जोर देकर कहा कि प्रकृति की इस तबाही को रोकने के लिए बुनियादी बदलाव जरूरी है। बीसवीं शताब्दी के अंत तक पहुंचते-पहुंचते मानव निर्मित कारणों से ऐसी अनेक परिस्थितियां उत्पन्न हो चुकीं, जिनसे पृथ्वी पर मानव व अन्य जीवों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।
वर्ष 1992 की चेतावनी के 25 वर्ष पूरा होने पर फिर कई जाने-माने वैज्ञानिकों ने वर्ष 2017 में एक नई अपील जारी की, जिस पर दुनिया का पहले से अधिक ध्यान गया। इस पर 180 देशों के 13,524 वैज्ञानिकों व अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किए। इसमें कहा गया कि जिन गंभीर समस्याओं की ओर 1992 में ध्यान दिलाया गया था, उनमें से अधिकांश पहले से अधिक विकट हो रही हैं या उन्हें सुलझाने के प्रयास में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। केवल ओजोन परत संबंधी समस्या में कुछ सफलता मिली है।
ऐसे में कम से कम इतना तो अब समझ ही लेना चाहिए कि जलवायु बदलाव जैसी सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्या की दृष्टि से अगला दशक ही सबसे महत्वपूर्ण समय है। लेकिन आगामी दशक केवल इस संदर्भ में ही ऐतिहासिक नहीं होगा, कुछ अन्य अति महत्वपूर्ण पर्यावरण समस्याओं के संदर्भ में भी इसे बहुत निर्णायक माना जा रहा है, जैसे कि समुद्री पर्यावरण की रक्षा, अनेक प्रजातियों के लुप्त होने की गति को नियंत्रित करना व जल-संकट एवं वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर पाना।
ऐसी समस्याएं अनेक स्थानों पर इतनी विकट हो गई हैं कि धरती की जीवन दायिनी क्षमता ही खतरे में पड़ गई है। इनमें से अनेक समस्याएं जलवायु बदलाव से भी जुड़ी हुई हैं। सुरक्षा स्थिति की दृष्टि से भी आगामी दशक बहुत संवेदनशील रहेगा। इस मोर्चे पर एक बड़ा मुद्दा है रोबोट हथियारों (एआई या ऑटोनोमस हथियार) के विकास का। अमेरिका, रूस, चीन जैसे देश इसमें भारी निवेश कर रहे हैं। लेकिन ये हथियार धरती पर जीवन के लिए बहुत गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं।
इसके अलावा, अमेरिका एवं रूस, दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों ने अपने मारक वाहनों के अत्याधुनिकीकरण की तैयारी कर ली है। कई विशेषज्ञ इनमें दुर्घटनाओं व गलतियों की आशंका में वृद्धि भी देख रहे हैं। ऐसे कई तनाव तेजी से बढ़ रहे हैं, जिनसे परमाणु हथियारों (अपेक्षाकृत छोटे रणनीतिक परमाणु हथियारों) के वास्तविक उपयोग की आशंका बढ़ सकती है। एक बार एक परमाणु हथियार का उपयोग हो गया, तो वह कहां रुकेगा, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए इस दशक को वैश्विक स्तर पर धरती की रक्षा के दशक के रूप में घोषित करना चाहिए। एक अभियान चलाकर अगले एक दशक के लिए यह विशेष घोषणा करनी चाहिए, ताकि इस दशक में धरती पर जीवन की रक्षा पर प्रयास केंद्रित हो सकें।

सोर्स: अमर उजाला

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