सम्पादकीय

अकाट्य तर्क से परे : क्या विज्ञान के भी अपने मिथक हैं! अवधारणाओं, विश्वासों और सभ्यताओं का विस्तृत विश्लेषण

Neha Dani
5 March 2022 1:44 AM GMT
अकाट्य तर्क से परे : क्या विज्ञान के भी अपने मिथक हैं! अवधारणाओं, विश्वासों और सभ्यताओं का विस्तृत विश्लेषण
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हम विज्ञान के मिथक को सफलतापूर्वक चुनौती नहीं दे सकते और इससे स्वयं को मुक्त नहीं कर सकते।

इक्कीसवीं सदी में यदि कोई विज्ञान पर ऊंगली उठाए, तो वह निस्संदेह स्वयं को मूर्खों के स्वर्ग में रहने वाला पात्र कहलाने का संकट मोल लेगा। विज्ञान के लिए वस्तुतः वे लोग अछूत हैं, जो इसे आलोचनाओं के घेरे में ला खड़ा करते हैं। विज्ञान की कोई काट नहीं, या विज्ञान की काट केवल विज्ञान से ही हो सकती है- इस तरह के अकाट्य तर्क लगभग सर्वमान्य हैं।

गैलिलियो गलीले, निकोलस कॉपरनिकस, इसाक न्यूटन, चार्ल्स डार्विन, अल्बर्ट आइंस्टीन, और हमारे समय के स्टीफन हाकिंग आदि महान वैज्ञानिकों को ईश्वरों की श्रेणी में रखा जाने लगा। इन वैज्ञानिकों की 'वैज्ञानिक आलोचना' करने वालों को भी ईश्वर-तुल्य माना जाने लगा। ईश्वर-तुल्यों ने ईश्वरों की तो जी भर आलोचना की, किंतु विज्ञान की आलोचना करने का दुस्साहस वे न कर सके। प्रत्येक सभ्यता, चाहे वह आज भी जीवित हो, चाहे लुप्त हो गई हो, की जड़ें क्या उसके विज्ञान में हैं?
संभवतः नहीं। सभ्यता की जड़ें वास्तव में उसके मिथक में होती हैं। मैं 'मिथक' का प्रयोग किसी परिकथा या किवदंतियों को महिमामंडित करने के लिए नहीं, वरन उन अवधारणाओं और विश्वासों के लिए कर रहा हूं, जो विश्व और उसकी सभ्यताओं के विस्तृत विश्लेषण का आधार रहे हैं, और हैं। हिंदू सभ्यता के अपने मिथक रहे हैं। प्राचीन ग्रीसवासियों के अपने रंगीन मिथक थे। मध्ययुगीन यूरोप के अपने धार्मिक मिथक थे।
सभी प्रारंभिक समाज अपने-अपने मिथक रखते थे। जैसा कि शास्त्रीय मिथकों में भी होता है, विज्ञान के सभी पहलू एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। विज्ञान में उदासीनता (निष्पक्षता का लगभग पर्यायवाची) उद्देश्यात्मकता की खोज को विशेषाधिकार, प्राथमिकता और व्यवहार का उत्तम मोड़ देने के लिए एक आवश्यक तत्व है। इसके विपरीत, उद्देश्यात्मकता उद्देश्य-परक तथ्यों को हमारे 'देवता' बनाने के लिए आवश्यक है।
वैज्ञानिक विधि (साइंटिफिक मेथोडोलॉजी) इसको न्यायसंगत ठहराती है। वैज्ञानिक विधि इस प्रकार धारण की जाती है, मानो हमें वह उस तरह के तथ्यों के अन्वेषण और उन्हें चमत्कृत करने में हमारी सहायता करती हो। उद्देश्य-परक तथ्य और वैज्ञानिक विधि विज्ञान के पूर्वानुमानों को न्यायोचित ठहराने के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि वे इस प्रकार से धारण की जाती हैं, मानो वैज्ञानिक विधियां ही हमें यह जानने-समझने की अनुमति देती हों कि भौतिक तथ्यों के अंदर क्या-क्या समाहित है।
परंपरागत मिथकों की अपेक्षा वैज्ञानिक विधियों की संरचना न तो कम जटिल है, न कम प्रश्न उठाने वाली। मैं, स्वयं एक विज्ञानी, न तो विज्ञान की महत्ता को कम आंक रहा हूं, न उसे तिरस्कृत कर रहा हूं। मिथक हमारे समाजों और सभ्यताओं के जीवन में आश्चर्यजनक महत्व रखते हैं। हमारा मिथक भी दूसरे मिथकों से कम महत्वपूर्ण नहीं, लेकिन हमें यह गहराई से मस्तिष्क में संजोना चाहिए कि यह दूसरे मिथकों से कम मिथकीय भी नहीं।
हम यह आसानी से ग्रहण नहीं कर सकते कि विज्ञान भी एक मिथक है, क्योंकि यह उस दृष्टिकोण का अभिन्न अंग है, जिसके द्वारा हम संसार को देखते हैं। जिस संसार को हम अपनी आंखों से देखते हैं, वह संसार नहीं जो वह है, वरन वह संसार है, जिसे हमारे मिथकों ने हमारे लिए पाल-पोस कर बड़ा किया था और फिर वही काम और भी अधिक चतुराई एवं बौद्धिक भावों से हमारे लिए विज्ञान ने किया। विज्ञान में भी तो मिथक का डीएनए है!
विज्ञान और उसके मिथक से खिलवाड़ का तात्पर्य उस समस्त वास्तविकता से खिलवाड़ है, जो हमारे लिए विज्ञान ने गढ़ी है। हम अपनी 'वास्तविकता' की मूल दृष्टि से खिलवाड़ के विरुद्ध रहते हैं, अन्यथा इससे 'वास्तविकता की अवधारणा' में गहरे बैठी हमारी 'पहचान' को एक बड़ी चुनौती पैदा होगी। इसी कारण से हम विज्ञान के मिथक से सरलता से जुड़ जाते हैं और संसार को उसी की आंख से देखते हैं। जब तक हम कोई वैकल्पिक मिथक विकसित नहीं कर लेते, हम विज्ञान के मिथक को सफलतापूर्वक चुनौती नहीं दे सकते और इससे स्वयं को मुक्त नहीं कर सकते।

सोर्स: अमर उजाला

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