सम्पादकीय

भीतर के अपराध से संभलें, एक अपराधी हमारे भीतर भी बैठा है, जो बाहर के कानून-कायदों की हद से बाहर है

Rani Sahu
9 Sep 2021 1:29 PM GMT
भीतर के अपराध से संभलें, एक अपराधी हमारे भीतर भी बैठा है, जो बाहर के कानून-कायदों की हद से बाहर है
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एक अपराधी हमारे भीतर भी बैठा है, जो बाहर के कानून-कायदों की हद से बाहर है

पं. विजयशंकर मेहता। महामारी कम हो रही है, पर अपने पीछे जो कुछ भी परेशानियां छोड़ रही है, उनमें एक है अपराध की नई शक्ल। कई नगरों में अचानक अपराध बढ़ गए। अपराध के नए-नए तरीकों ने देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ही सेंध लगा दी है। आशंका भी थी कि ऐसा होगा। अपराध अपनी व्यवस्था और प्रवृत्ति के साथ फैलता है।

इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। तो हमें एक बात का ध्यान रखना है कि बाहर के अपराध तो होंगे, लेकिन एक अपराधी हमारे भीतर भी बैठा है, जो बाहर के कानून-कायदों की हद से बाहर है। हमें उसे नियंत्रित करना होगा, क्योंकि हमने अपने ही भीतर बारूद की चहारदीवारी में कागज का घर बना रखा है और हाथ में ले रखी है चिंगारी। इसलिए किसी दिन झुलसेंगे भी।
बाहर के मामले में तो ऐसा होता है कि कुछ लोग कानून की धाराएं याद रखते हैं और कुछ उनका इस्तेमाल करते हैं। इसलिए हमें अपने भीतर एक कानून लागू करना पड़ेगा जो हमारे ज़मीर का है, हमारे धर्म का है, परमशक्ति का है। और, फिर उस कानून से डरना भी पड़ेगा। नपोलियन जैसा विश्वविजेता भी बिल्ली से बहुत डरता था। ऐसे ही हमें भी एक ऐसे कानून से डरना है जो हमारे भीतर हमारी आत्मा ने बनाया है। बाहर के अपराध सरकार, पुलिस और बाकी व्यवस्था संभालेगी, अपने भीतर के अपराध से हमें खुद संभलना होगा।


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