सम्पादकीय

सच-झूठ के बीच : पाकिस्तान में न्यायपालिका बनाम मीडिया

Neha Dani
19 Nov 2021 1:48 AM GMT
सच-झूठ के बीच : पाकिस्तान में न्यायपालिका बनाम मीडिया
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जबकि कई देशों में ऐसे कानूनों को समाप्त कर दिया गया है।

पाकिस्तान को पत्रकारों के लिए खतरनाक देश कहा जाता रहा है और विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में यह 180 देशों में 145वें स्थान पर है। लेकिन इस हफ्ते पूरे देश में उस वक्त खलबली मच गई, जब एक बेहद सम्मानित और लोकप्रिय जज ने एक पत्रकार, अखबार के मालिक और संपादक समेत एक मीडिया ग्रुप के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें कोर्ट में तलब किया। पूरी दुनिया और हमारे क्षेत्र के अधिकांश देशों में मीडिया पर शासन की तीखी नजर है और पाकिस्तान भी इसका कोई अपवाद नहीं है।

गिलगित-बाल्टिस्तान के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश राणा मोहम्मद शमीम ने दावा किया है कि वह न्यायिक कदाचार के गवाह हैं, जब उनके सामने फोन पर बातचीत हुई थी। उन्होंने यह खुलासा किया कि पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश साकिब निसार ने एक अन्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पीएमएल (एन) प्रमुख नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज को जमानत न दी जाए और उन्हें चुनाव में भाग लेने की अनुमति न दी जाए।
न्यायमूर्ति शमीम का आरोप है कि साकिब निसार ने हाई कोर्ट के जज को फोन कर दोनों की जमानत याचिका खारिज करने के लिए कहा। जाहिर है, साकिब निसार ने इससे इन्कार किया है कि उन्होंने कभी अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल किया है। न्यायमूर्ति शमीम ने अपना यह खुलासा एक विस्फोटक शपथपत्र के जरिये पेश किया। राणा मोहम्मद शमीम के पूरे हलफनामे को एक पत्रकार ने अंग्रेजी दैनिक द न्यूज इंटरनेशनल और उसके सहयोगी प्रकाशन जंग में फिर से प्रकाशित किया था।
रिपोर्ट में मोहम्मद शमीम की तरफ से पुष्टि भी की गई है। लेकिन मोहम्मद शमीम के आरोपों के पीछे की सच्चाई की जांच के लिए न्यायिक जांच का आदेश देने के बजाय इस्लामाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह ने तुरंत रिपोर्टर, संपादक और द न्यूज और जंग समूह के मालिक को कारण बताओ नोटिस जारी कर अदालत में पेश होने के लिए कहा। राणा मोहम्मद शमीम को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
सोशल मीडिया पर इस पर हैरानी जताई गई। उस पर मीडिया समूह के लिए जहां बहुत समर्थन दिखा, वहीं एक बेहद लोकप्रिय और सम्मानित मुख्य न्यायाधीश की आलोचना हुई, जिन्होंने प्रकाशन समूह को अवमानना नोटिस जारी किया। मैंने तब ट्वीट किया था, 'मैं अतहर मिनल्लाह को लंबे समय से जानती हूं। वह एक अच्छे इंसान और सम्मानित जज हैं, जिन्होंने इस्लामाबाद हाई कोर्ट को विश्वसनीयता दी। लेकिन ऐसा लगता है कि वह घबरा गए हैं और जल्दबाजी में उन्होंने ऐसा किया है, जबकि न्यायिक व्यवस्था का मजाक उड़ाने वाले उनकी अपनी बिरादरी के लोग हैं। उनके तर्क कमजोर हैं। सूचना देने वाले को सजा देना सही नहीं।'
इस्लामाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने बहुत ही अजीब टिप्पणी की कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेशक महत्वपूर्ण है, लेकिन उच्च न्यायपालिका की अखंडता से ज्यादा नहीं। उनकी यह टिप्पणी असंगत है, क्योंकि मीडिया और न्यायपालिका मुल्क के दो स्तंभ हैं और कोई इसका आकलन नहीं कर सकता कि कौन महत्वपूर्ण है। मुख्य न्यायाधीश ने एक और सवाल उठाया कि मरियम नवाज के मामले की सुनवाई इस सप्ताह अदालत में होनी थी, और क्या इस खबर को मामले पर प्रभाव डालने के लिए प्रकाशित किया गया था?
उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका में जनता के विश्वास को भी कम करता है। क्या मुख्य न्यायाधीश पाकिस्तान के पूर्व प्रधान न्यायाधीश साकिब निसार को भी तलब करेंगे और कारण बताओ नोटिस भेजेंगे, जो इस न्यायिक ड्रामे में मुख्य किरदार हैं? क्योंकि यह जानना जरूरी है कि क्या न्यायमूर्ति साकिब निसार ऐसा अपने दम पर काम कर रहे थे या उसके पीछे सत्ता प्रतिष्ठान का हाथ था। क्योंकि यह कोई रहस्य नहीं है कि सत्ता प्रतिष्ठान पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ हो गया था और उन्हें अदालतों द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया था, ताकि वह अब सार्वजनिक पद पर न रह सकें।
उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी मरियम नवाज के लिए भी अदालतों ने मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। अगर इस मामले को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाता है और सच्चाई सामने आती है, तो इससे न्यायपालिका की अखंडता को बहुत नुकसान पहुंचेगा, लेकिन यह बाकी न्यायपालिका को भी प्रभावित होने से बचने के लिए एक मजबूत संदेश दे सकता है। यह तभी हो सकता है, जब सुनवाई स्वतंत्र हो और कहीं से कोई व्यवधान न हो।
कोई भी मीडिया प्रकाशन से उसकी खबर का स्रोत नहीं पूछ सकता, क्योंकि मोहम्मद शमीम का जो हलफनामा प्रकाशित हुआ था, वह लंदन में एक खुला और सार्वजनिक दस्तावेज है। यदि इस्लामाबाद हाई कोर्ट चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप के आरोपों के बारे में पूरी जांच करने से परहेज करता है, तो वह जनता का विश्वास भी खो देगा। स्वतंत्र मीडिया द न्यूज इंटरनेशनल और जंग के पूर्ण समर्थन में सामने आया है और यह सवाल उठाया है कि अपने घर को व्यवस्थित करने के बजाय न्यायपालिका द्वारा मीडिया हाउस पर निशाना साधना आखिर कितना उचित है।
अंग्रेजी दैनिक डॉन अपने संपादकीय में कहता है, 'इसे अवमानना के मामले के रूप में देखने के बजाय क्या न्यायपालिका को आरोपों के बारे में ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए, चाहे यह तथ्य हो या कल्पना?' पाकिस्तान के पत्रकार वर्षों से अपहरण, कैद से लेकर नौकरी छूटने और हमले व हिंसा की धमकियां झेलते रहे हैं। यह कब समझा जाएगा कि ऐसी तानाशाही बीते युग के अवशेष हैं और 21वीं सदी में उनकी कोई जगह नहीं है? मीडिया की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न तरह के कानूनी उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा या अवमानना कानून। जबकि कई देशों में ऐसे कानूनों को समाप्त कर दिया गया है।

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