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- शिखर और खाई के बीच
हिमाचल में उपचुनावों के दामन पर चस्पां किंतु-परंतु और राजनीतिक खेत में उगती तहरीरों का जंगल, क्या मतदाता के सामने कोई विकल्प रख पाएगा। जुब्बल-कोटखाई, बालीचौकी तथा निरमंड में चार एसडीएम उतारने की सुखद अनुभूति में जीत के तिनके बटोरने का संकल्प और विरोध की वेशभूषा में विपक्ष की ओर से चुनावों की तीमारदारी का अनूठा संगम। ऐसे में उपचुनावों को नजदीक से देखने के लिए सियासी चश्में तो हर विधानसभा क्षेत्र में अलग-अलग रंगों में होंगे, लेकिन विपक्ष को यह चुनने का अधिकार है कि वह सदन के बाहर अपनी रस्सी पर सत्ता को चलाए या अपने मुद्दों पर जोर आजमाइश करवा पाए। उपचुनावों का विधानसभा चुनावों से एक साल पूर्व होना खासी अहमियत रखता है और इस लिहाज से मुद्दों में ताजगी व उन्हें अगले वर्ष तक जिंदा रखना कांग्रेस की मजबूरी है। जाहिर है आगामी विधानसभा के लिए तैयार हो रहे मुद्दे, इन उपचुनावों में जाया नहीं होंगे, इसलिए पार्टियों से कहीं अधिक उम्मीदवार लड़ाए जाएंगे। ऐसे में उम्मीदवारों पर टिका दारोमदार पुश्तैनी सियासत को हवा देगा और कहीं बस्तियों का हिसाब स्थानीय विषयों पर हो सकता है। सरकार अपनी आलोचना से कैसे बचती है या यह कैसे साबित करती है कि उसकी सरपरस्ती में चुनावी विधानसभाओं तथा मंडी लोकसभा क्षेत्र किस तरह लाभान्वित हुए।
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