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By NI Editorial
शहबाज शरीफ सरकार को अमेरिका का दोस्त समझा जाता है। लेकिन स्थिति संभवतः ऐसी नहीं है कि वह चीन की कीमत पर ये दोस्ती निभाए। अब जल्द ही उसे चुनना होगा कि इन दोनों के बीच उसकी प्राथमिकता कौन है।
पाकिस्तान के महा-शक्तियों के टकराव में पिसने का अंदेशा पैदा हो गया है। कभी पाकिस्तान को अमेरिकी खेमे का देश समझा जाता था। बाद में जब चीन की ताकत बढ़ी, तो उसे उसके खेमे में माना जाने लगा। पाकिस्तान में आम जन भावना है कि चीन एक ऐसा दोस्त है, जो हर संकट के समय पाकिस्तान के काम आया है। इसके बावजूद देश में एक मजबूत अमेरिकी लॉबी रही है। समझा जाता है कि दो महीने पहले इस लॉबी ने तत्कालीन इमरान खान की सरकार को गिराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो देश को चीन के साथ-साथ रूस के भी करीब ले जा रहे थे। मौजूदा शहबाज शरीफ सरकार को अमेरिका का दोस्त समझा जा रहा है। लेकिन उसकी स्थिति संभवतः ऐसी नहीं है कि वह चीन की कीमत पर ये दोस्ती निभा सके। बहरहाल, अब जल्द ही उसे यह चुनना होगा कि इन दोनों के बीच उसकी प्राथमिकता कौन है। खबर है कि आईएमएफ ने पाकिस्तान सरकार से साफ कह दिया है कि अगर उसे इस संस्था से कर्ज की अगली किस्तें हासिल करनी हैं, तो उसे चीनी कंपनियों के साथ हुए ऊर्जा समझौतों की शर्तों पर फिर से बातचीत करनी होगी। आईएमएफ से तुरंत कर्ज पाना पाकिस्तान की जरूरत है। देश की अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। आम समझ है कि जल्द उसे विदेशी मुद्रा नहीं मिली, तो वह श्रीलंका की राह पर जा सकता है। इसी बीच आईएमएफ ने फच्चर फंसा दिया है। उसने पाकिस्तान से कहा है कि वह चीनी कंपनियों के साथ भी अन्य कंपनियों जैसा ही व्यवहार करे। जबकि चीनी कंपनियों ने पाकिस्तान में बिजली संयंत्रों का निर्माण चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कोरिडोर के तहत किया है, जिसकी शर्तें अलग से तय हुई थीं। चीनी कंपनियां उन शर्तों पर पुनर्विचार की गुजारिश पहले ही ठुकरा चुकी हैं। यह तो सर्वविदित है आईएमएफ के फैसलों पर अमेरिका का बड़ा प्रभाव रहता है। इसलिए आईएमएफ की शर्त को इस बात का संकेत समझा गया है कि पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक मुसीबत के बीच अमेरिका ने वहां चीन का प्रभाव घटाने की रणनीति अपनाई है।
Gulabi Jagat
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