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बीते सितंबर में जब चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) पंजाब के मुख्यमंत्री बने तो कांग्रेस असहज नजर आ रही थी
प्रशांत सक्सेना बीते सितंबर में जब चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) पंजाब के मुख्यमंत्री बने तो कांग्रेस असहज नजर आ रही थी. ये वो दौर था जब कांग्रेस, अपने प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Sidhu) और तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच चल रही तीखी नोक-झोंक से गुजर रही थी. कैप्टन को अचानक और अनौपचारिक ढंग से अपना पद छोड़ना पड़ा था. इसके बाद कांग्रेस में आगामी चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के चेहरे की मांग ने उस वक्त जोर पकड़ लिया जब आप (AAP) पार्टी, जिसे चुनावी दौड़ में सबसे आगे देखा जा रहा है, ने भगवंत मान को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. अमरिंदर एपिसोड के बाद कांग्रेस के भीतर एक तरह की बगावत की स्थिति बन गई थी, जो कि मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धू और चन्नी के दावों की वजह से अब भी कठिन स्थिति का सामना कर रही है.
सिखों के बुनकर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चन्नी इस रेस में आगे रहे. और पार्टी में सभी को लगता है कि पूरे देश की तुलना में पंजाब में दलितों का घनत्व सबसे अधिक होने की वजह से – 2011 की जनगणना के मुताबिक करीब 34 फीसदी – आगामी चुनाव में चन्नी ही चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई करेंगे.
बिजली बिल में राहत और सरकारी कर्मचारियों के डीए में बढ़ोतरी की घोषणा करते हुए, चन्नी ने अपनी स्टाइल में काम करना शुरू किया. चन्नी का दावा है कि उनके राज्य में इलेक्ट्रिसिटी चार्ज पूरे देश में सबसे कम है. साथ ही उन्होंने 6-7 रुपए प्रति यूनिट पर बिजली देने वाले गोइंदवाल साहिब स्थित प्राइवेट पावर प्लांट के साथ सरकार के समझौते को भी खत्म करने का फैसला किया.
इसके अलावा उन्होंने दो अन्य प्राइवेट थर्मल प्लांट के साथ बिजली समझौतों पर दोबारा विचार करने का वादा किया, इसके लिए उन्होंने आवश्यक विधेयक लाने की बात कही. उन्होंने नया नारा- "नवी सोच, नवां पंजाब" भी दिया. हालांकि, बाद में चन्नी और सिद्धू के बीच उस वक्त एक नई तकरार पैदा हो गई जब सीएम ने एडवोकेट जनरल एपीएस देओल के इस्तीफे को मंजूर करने से इनकार कर दिया. इसके अलावा सिद्धू तत्कालीन डीजीपी इकबाल प्रीत सिंह सहोता को भी हटाना चाहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि सहोता ने बेअदबी के मामले में नरमी दिखाई. देओल, सिद्धू समेत अन्य कांग्रेसी नेताओं के बयानों से नाराज थे. हालांकि, सरकार और मुख्यमंत्री ने उनके इस्तीफे के मसले पर चुप्पी साध रखी थी. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, चन्नी उनके पर हो रहे लगातार हमले की वजह से सिद्धू से नाखुश थे.
चन्नी लगातार सिद्धू के निशाने पर रहे
शिरोमणि अकाली दल के बड़े नेताओं पर "कार्रवाई न करने", पार्टी के चुनावी अभियान के लिए एक निजी कंपनी को हायर करने और चन्नी द्वारा सिद्धू के 18-पॉइंट एजेंडा को नजरअंदाज करने जैसे मसलों पर सिद्धू नाराज रहे. एक समय तो हालात यहां तक बिगड़ गए कि सिद्धू ने पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफा तक दे दिया, लेकिन पार्टी हाईकमान द्वारा समझाए जाने के बाद वे शांत हुए. इसके बाद मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का मुद्दा सामने आ गया, पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं का आरोप है कि सिद्धू पार्टी के भीतर ही एक ऐसा "धड़ा" तैयार करना चाहते थे जो सीएम पद की उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करे.
बीते महीने एक मीडिया बातचीत के दौरान सिद्धू ने यहां तक कह दिया कि,
"सीएम के चेहरे का चुनाव जनता करेगी, न कि हाई कमांड". सिद्धू के इस बयान को पार्टी के टॉप लीडरशिप के खिलाफ चुनौती देने का प्रयास माना गया. ऐसे वक्त में जब कुछ ही दिनों में चुनाव होने वाले हैं, सीएम की कुर्सी हासिल करने के लिए सिद्धू द्वारा चलाए जा रहे लगातार अभियानों ने पार्टी के भीतर असंतोष की भावना पैदा कर दी है.
लेकिन 20 फरवरी को होने वाले मतदान के बाद यदि कांग्रेस दोबारा सत्ता में आती है तो सीएम का पद मुद्दा अहम होगा. राज्य के ज्यादातर वरिष्ठ नेता इसे लेकर स्पष्ट हैं. वे चन्नी को पसंद कर रहे हैं. पार्टी के कई नेता, चाहे निजी तौर पर या सार्वजनिक रूप से, चन्नी के पक्ष में अपने विचार जाहिर कर चुके हैं. उनका तर्क है कि सितंबर में सीएम पद की कमान संभालने के बाद बीते तीन महीनों में चन्नी ने अपने को "साबित" कर दिया है. पार्टी के सीनियर लीडर और मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा का कहना है कि 2012 और 2017 के चुनावों में पार्टी ने मुख्यमंत्री के पद का उम्मीदवार घोषित किया था. वे आगे कहते हैं कि चन्नी ने इस भूमिका में अपने आपको साबित किया है. पीटीआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, "पार्टी में किसी को भी सीएम उम्मीदवार का नाम घोषित करने में कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए, क्योंकि हर किसी के उम्मीदों के अधिक चन्नी अपने आप को साबित कर चुके हैं."
चन्नी लगातार दिल जीत रहे हैं
चन्नी, एक शिक्षित व्यक्ति हैं और उनके पास कई एकेडमिक डिग्रियां हैं. अपनी साख और आचरण के जरिए बीते कुछ महीनों के दौरान उन्होंने पार्टी के एक बड़े धड़े के बीच खुद को लोकप्रिय बना लिया है. दलित समुदाय से होने की वजह से उनका दावा और मजबूत हो जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, पंजाब में दलित घनत्व सबसे अधिक है, हालांकि इस समुदाय के वोट यहां विभाजित रहे हैं जबकि मायावती की पार्टी बीएसपी की भी यहां मौजूदगी रही है. यहां सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस पर अस्थिरता के आरोप लगते हैं, जबकि 117 विधानसभाओं सीटों में से 77 सीटों का बहुमत उसके पास है, ऐसे में चन्नी को सीएम पद का उम्मीदवार पेश करने से कांग्रेस को इस आरोप से बचने में मदद मिलेगी. वैसे भी कांग्रेस, राज्य इकाई में एकता दिखाने की जद्दोजहद में पहले ही कई महीने का वक्त गंवा चुकी है.
बीते सितंबर में कैप्टन अमरिंदर सिंह के जाने के बाद, पार्टी एक तरह से टूट के कागार पर पहुंच गई थी क्योंकि कैप्टन के खिलाफ अपनी लड़ाई को सिद्धू पार्टी 'हाईकमान' के दरवाजे तक ले गए थे.
चन्नी के व्यक्तित्व का सबसे अहम हिस्सा यह है कि वे किसी तरह के पारिवारिक या राजनीतिक बोझ से दूर हैं. सिद्धू के साथ मतभेद के कई अवसरों पर उन्होंने किसी तरह का अहंकार नहीं दिखाया, हालांकि वे खामोशी के साथ यह संदेश देते रहे कि वह सीएम पद के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प हैं. अमरिंदर कैबिनेट में भी चन्नी को "आम आदमी के व्यक्ति" के तौर पर जाना जाता था.
कई लोग उनके उन कामों को याद करते हैं जब वे खरार (चंड़ीगढ़ के पास) में आंदोलनरत बेरोजगार युवाओं के साथ मिलने के गए थे या फिर जब वे परिवहन की समस्याओं का सामना करने वाले ट्रक मालिकों और ड्राइवरों के साथ देर-रात मुलाकात करते थे. इन लोगों का मानना है कि चन्नी ही पार्टी की ओर से सीएम पद का सबसे बेहतर विकल्प हैं. चन्नी ने अपनी बौद्धिक स्थिरता का परिचय उस वक्त भी दिया जब उनके भाई डॉ. मनोहर सिंह का नाम पार्टी उम्मीदवारों की पहली सूची में नहीं था. ऐसी पार्टी जो नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देने के लिए जानी जाती है, वहां चन्नी की खामोशी ने सटीक संदेश दिया कि वह संतुलन बनाए रखने पर विश्वास रखते हैं.
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