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By NI Editorial
भारत सरकार के इस निर्णय को गलत नहीं कहा जा सकता। अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि अगर सरकार के आकलन और नियोजन का तरीका बेहतर होता, तो दुनिया को ये फैसला औचक महसूस नहीं होता।
भारत ने चावल के निर्यात पर प्रतिबंध इसलिए लगाया, क्योंकि देश के अंदर इसका अभाव होने की आशंका पैदा हुई। इसलिए भारत सरकार के इस निर्णय को गलत नहीं कहा जा सकता। अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि अगर सरकार के आकलन और नियोजन का तरीका बेहतर होता, तो दुनिया को ये फैसला औचक महसूस नहीं होता। वैसे ही स्थिति भारत के चावल व्यापारी और विदेशी आयातक भी बेहतर प्लानिंग कर सकते थे। बहरहाल, अब खबर है कि भारत की पाबंदी के कारण एशिया में चावल व्यापार लगभग ठप पड़ गया है, क्योंकि भारतीय व्यापारी अब नए समझौतों पर दस्तखत नहीं कर रहे हैं। नतीजतन खरीददार वियतनाम, थाईलैंड और म्यांमार जैसे विकल्प खोज रहे हैं। लेकिन इन देशों के व्यापारियों ने मौके का फायदा उठा कर दाम बढ़ा दिए हैं। दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत ने पिछले हफ्ते ही टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगाने का एलान किया था। साथ ही कई अन्य किस्मों पर निर्यात कर 20 प्रतिशत कर लगा दिया गया। औसत से कम मॉनसून बारिश के कारण स्थानीय बाजारों में चावल की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसने के लिए यह फैसला किया गया है।
भारत दुनिया के 150 से ज्यादा देशों को चावल का निर्यात करता है और उसकी तरफ से निर्यात में आने वाली जरा सी भी कमी उन देशों में कीमतों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। दुनिया पहले पहले से ही खाने के सामान की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि झेल रही है। अब चावल की कमी से दुनिया की यह समस्या गंभीर रूप ले सकती है। भारत के फैसले के बाद से एशिया में चावल के दाम पांच प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। तमाम जानकारों का कहना है कि अभी कीमतों में और ज्यादा वृद्धि होगी। गौरतलब है कि चावल दुनिया के तीन अरब लोगों का मुख्य भोजन है। 2021 में भारत का चावल निर्यात रिकॉर्ड 2.15 करोड़ टन पर पहुंच गया था, जो दुनिया के बाकी चार सबसे बड़े निर्यातकों थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और अमेरिका के कुल निर्यात से भी ज्यादा है।
Gulabi Jagat
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