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- विश्वासघात: भारत...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू-कश्मीर में हिंसा के बीज 1947 में आज ही के दिन तत्कालीन पाकिस्तान सरकार द्वारा बोए गए थे। भारत सरकार के बहुतेरे प्रयासों के बाद भी अब तक उनका समूल नाश नहीं हो सका है। हालांकि हाल के दिनों में उसकी तीव्रता जरूर कम हुई है। उम्मीद है जल्द ही पाकिस्तान द्वारा लगाई गई नफरत की उस आग पर काबू पा लिया जाएगा। जम्मू-कश्मीर के साथ पाकिस्तान के इस विश्वासघात की एक लंबी कहानी है। इसका स्मरण जम्मू-कश्मीर के साथ दुनिया के लोगों को भी करना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान में विलय के लिए तैयार नहीं हुआ, पाक सेना ने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' चलाया
यदि तत्कालीन जम्मू-कश्मीर रियासत समय रहते ही भारत का चयन करती तो मोहम्मद अली जिन्ना और उनके नव-निर्मित पाकिस्तान के लिए द्विराष्ट्र का सिद्धांत बेअसर हो जाता। फिर भी हुआ यही कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान में विलय के लिए तैयार नहीं हुआ और नतीजतन पाकिस्तानी सेना ने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' शुरू कर दिया। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर सैन्य हमला करने का निर्णय लिया और यह हमला 22 अक्टूबर, 1947 से शुरू हुआ। वह ऑपरेशन गुलमर्ग की तैयारी महीनों से कर रहा था। इस साजिश में न केवल पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री, बल्कि उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के मुख्यमंत्री, पाकिस्तान के वित्त मंत्री, मुस्लिम लीग के मुख्य नेता और पाकिस्तानी सेना के अधिकारी शामिल थे।
जिन्ना ने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' को मंजूरी दी थी
खुद जिन्ना ने इस ऑपरेशन को मंजूरी दी थी। तत्कालीन मेजर खुर्शीद अनवर ने श्रीनगर पर हमले के लिए उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत के कबीलाइयों का नेतृत्व किया था। शुरू में हथियारबंद दस्ते कोहाला-बारामुला रोड पर गांवों को उजाड़ते हुए तेजी से आगे बढ़े। उन्होंने उड़ी को अपने कब्जे में ले लिया। 26 अक्टूबर को बारामुला पर भी कब्जा कर लिया। वहां वे आगजनी, लूट-खसोट और दुष्कर्म में लग गए। बहुत-सी लड़कियों, औरतों को जबरन उठा लिया। उनमें से कुछ ही बचाई जा सकीं।
कश्मीर के महाराजा ने औपचारिक रूप से राज्य का भारत में विलय किया
स्थिति की भयावहता को देखते हुए कश्मीर के महाराजा ने 24 अक्टूबर को मदद के लिए भारत सरकार से संपर्क किया। फिर औपचारिक रूप से अपने राज्य का भारत में विलय किया। 27 अक्टूबर की सुबह भारतीय सेना की पहली टुकड़ी श्रीनगर हवाईअड्डे पर उतरी। आठ नवंबर को भारतीय सेना ने बारामुला पर वापस कब्जा कर लिया। उस समय तक शहर पूरी तरह से उजड़ चुका था। 15 नवंबर को भारतीय सेना ने उड़ी को वापस हासिल किया और हालात गंभीर होने से पहले ही श्रीनगर, घाटी और उसके आसपास के इलाकों को बचा लिया। इसके साथ ही कश्मीर ऑपरेशन का पहला चरण पूरा हुआ।
ऑपरेशन गुलमर्ग का संचालन पाकिस्तान से किया गया था
हमलावरों की भर्तियां खासतौर पर पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत की तत्कालीन सरकार ने की थी। इस प्रांत के तत्कालीन प्रमुख ने लोगों को जिहाद के लिए भड़काने काम का किया था। वाना के पीर इन हमलावरों को तैयार करने के लिए पहले उन्हेंं दावत देते और फिर उनकी मुलाकात डेरा के डिप्टी कमिश्नर इस्माइल खान से कराते। उनकी सहायता से हमलावर पुलिस सुपरिटेंडेंट से मिलकर हथियार इकट्ठे करते। हथियारबंद होने के बाद वे वापस पीर के पास आते। इस तरह हमले के लिए उकसाकर और लूट का लालच देकर उन्हेंं लॉरियों में भरकर कश्मीर में भेजा जाता था। ऑपरेशन गुलमर्ग का संचालन पाकिस्तान से किया गया था। रावलपिंडी शहर इसके प्रमुख केंद्रों में से एक था। आरंभ में हमलावर सरगोधा, एबटाबाद, वजीराबाद जैसी जगहों पर इकट्ठे होते थे। तब इन शहरों का इस्तेमाल सप्लाई डिपो और प्रशिक्षण केंद्रों की तरह किया जा रहा था। घायल हमलावरों का इलाज भी इन्हीं शहरों के अस्पतालों में किया जाता था।
कश्मीर में हमलावरों ने जिन आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, वे पाक सेना के थे
उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकतर शहर पाकिस्तानी सेना के अहम गढ़ थे। परिवहन और ईंधन से जुड़ी हमलावरों की सारी जरूरतें पाकिस्तान की सरकार द्वारा पूरी की गई थीं। उन्हें राशन जिला अधिकारियों द्वारा जारी किए गए कूपन के जरिये उपलब्ध होता था। तब जहां पाकिस्तान के आम नागरिकों को पेट्रोल मिलना असंभव हो रहा था, वहीं कबीलाइयों को यह आसानी से उपलब्ध था। उस समय पाकिस्तानी सेना द्वारा उत्तर-पश्चिम प्रांत में मोटर गाड़ियों का आवागमन नियंत्रित कर दिया गया था। यहां भी हमलावरों की गाड़ियों को छूट मिली हुई थी। किसी तरह की टूट-फूट होने पर उनकी गाड़ियों की मरम्मत रावलपिंडी के वर्कशॉप में होती थी। कश्मीर में हमलावरों ने जिन आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, वे भी पाकिस्तानी सेना के भंडारों से ही आए थे।
हमलावरों के हथियारों में मशीनगन, मोर्टार, माइंस और वायरलेस सेट शामिल थे
हमलावरों के हथियारों में मशीनगन, मोर्टार, माइंस, सिग्नल के उपकरण और वायरलेस सेट भी शामिल थे। इनकी संख्या भारतीय और कश्मीर राज्य की सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों से कहीं अधिक थी। हमलावरों के रेडियो संदेशों में इस्तेमाल किए जाने वाले कोड वैसे ही थे, जिनका इस्तेमाल विभाजन से पहले भारतीय सेना करती रही थी। छुट्टी का दिखावा करते हुए पाकिस्तानी सेना के अनेक अधिकारी और सैनिक हमलावरों के साथ मिलकर उनकी मदद कर रहे थे।
15 अगस्त, 1947 के बाद पाक ने जम्मू-कश्मीर में सामान की सप्लाई बंद कर दी थी
वास्तव में 15 अगस्त, 1947 के बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में जरूरत के बहुत से सामान की सप्लाई बंद कर दी थी, जिससे वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हो गई थी। उसने पश्चिम पंजाब से तेल, खाना, नमक, चीनी और कपड़ों की सप्लाई रोक दी थी।
पाक ने पोस्टल सेवा भी बंद कर दी थी, पश्चिम पंजाब बैंक की चेक पर भुगतान नहीं होता था
पोस्टल सेवा भी बंद कर दी थी। बैंकों में लेनदेन असंभव हो गया था। पोस्टल सर्टिफिकेट पर नकद मिलना नामुमकिन हो गया था। पश्चिम पंजाब बैंक की चेक पर भुगतान नहीं होता था। इंपीरियल बैंक की शाखाओं की चेक पर भी नकद मिलना मुश्किल हो गया था। जम्मू-कश्मीर के साथ पाकिस्तान के विश्वासघात की यही कहानी है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस हिस्से पर उसके द्वारा बोए गए हिंसा के बीज आज भी रह-रहकर मानवता का खून कर रहे हैं।