सम्पादकीय

बंगाल चुनावः चुनावी जीत के लिए

Gulabi
30 Dec 2020 12:12 PM GMT
बंगाल चुनावः चुनावी जीत के लिए
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प्रमुख सौरव गांगुली ने प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनकड़ से मुलाकात की

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रमुख सौरव गांगुली ने प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनकड़ से मुलाकात की। इसके अगले दिन वह दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में आयोजित उस समारोह में शामिल हुए जहां केंद्रीय गृहमंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह ने अरुण जेटली की प्रतिमा का अनावरण किया।

दोनों ही घटनाएं ऐसी नहीं थीं जिन्हें राजनीतिक चर्चा का विषय बनाना जरूरी हो। बावजूद इसके, यह खबर गर्म हो गई कि गांगुली की बीजेपी से नजदीकी बढ़ती जा रही है और वह जल्द ही इसमें शामिल होकर पश्चिम बंगाल की चुनावी लड़ाई को 'दीदी बनाम दादा' का रूप दे सकते हैं। गैर-बीजेपी हलकों की ओर से गांगुली को निशाना बनाने के लिए इतना काफी था। ऐसा ही एक अप्रिय विवाद नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को लेकर शुरू हुआ जब उनपर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने शांति निकेतन में गैरकानूनी ढंग से जमीन हथिया रखी है। यह आरोप उस दिन सामने आया जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे।


ध्यान रहे, विश्वभारती ने देश को एक नहीं बल्कि दो नोबेल विजेता दिए हैं। ऐसे में चुनावी लड़ाई में इस संस्थान का इस्तेमाल किसी को भी चकित कर सकता है। बंगाल को भारत में नवजागरण की चेतना का अग्रदूत कहा जाता रहा है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर हों या स्वामी विवेकानंद या गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर- पूरा भारतीय समाज स्वयं को किसी न किसी रूप में इनका ऋणी मानता है। एक चुनावी मुकाबले में अपना हाथ ऊपर करने के लिए इन महापुरुषों का इस्तेमाल करने की कोशिश बंगाली अस्मिता के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है।
मगर लड़ाई में सब कुछ जायज मानने वाली चुनावी समझ किसी भी पक्ष को संयम बरतने के लिए तैयार नहीं कर पा रही है। एक तरफ महापुरुषों को अपनाकर उनकी आभा से खुद को प्रकाशित करने की बीजेपी की मुहिम है तो दूसरी तरफ उसे बाहरी ताकत बताते हुए इन महापुरुषों को बंगाल तक सीमित करने की तृणमूल की जवाबी रणनीति। यकीन मानिए, इस क्रम में दोनों देश की सांस्कृतिक, बौद्धिक चेतना को कुछ न कुछ नुकसान ही पहुंचा रहे हैं।


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