सम्पादकीय

Bengal Elections: क्या पीरजादा सिद्दकी की राजनीति बंगाल में ओवैसी पर भारी पड़ रही है?

Gulabi
19 March 2021 3:49 PM GMT
Bengal Elections: क्या पीरजादा सिद्दकी की राजनीति बंगाल में ओवैसी पर भारी पड़ रही है?
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26 सीटों पर लड़ेगी पीरजादा की पार्टी

जनवरी के पहले सप्ताह में असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) और पीरजादा सिद्दकी (Pirzada Siddiqui) की हुगली में मुलाकात राष्ट्रीय खबरों की सुर्खियां बनी थीं. असदुद्दीन ओवैसी नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद बंगाल में परचम लहराने की तैयारी कर चुके थे, लेकिन फरवरी महीने में पीरजादा ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. 35 साल के पीरजादा सिद्दकी असदुद्दीन ओवैसी के साथ न जाकर लेफ्ट और कांग्रेस के साथ जाना स्वीकार किया और ओवैसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं ज़मीन पर उतरने से पहले ही धाराशाई हो गईं.

पीरजादा सिद्दकी और ओवैसी की मुलाकात के बाद ग्राउंड रियलिटी को समझते हुए सीपीएम ने पीरजादा से मुलाकात की. सूत्रों की मानें तो सीपीएम इस बात को समझाने में कामयाब रही कि लेफ्ट और कांग्रेस के साथ आने पर पीरजादा के राजनीतिक यात्रा की शुरूआत शानदार होगी. दरअसल साल 2019 में लेफ्ट और कांग्रेस का जो वोट बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गया था वो वोट पीरजादा के गठबंधन में आने के बाद संयुक्त मोर्चा को मिलेगा और इसके बाद पीरजादा की राजनीतिक यात्रा की शुरूआत धमाकेदार रहेगी. दरअसल पीरजादा सिद्दकी के समर्थकों की टीएमसी सरकार द्वारा समय-समय पर अशांति फैलाने के लिए पुलिसिया आक्रांता का शिकार होना पड़ा है और इस वजह से पीरजादा सिद्दकी मुस्लिम युवाओं में और भी लोकप्रिय होते चले गए.
सीपीएम अपनी खोई हुई ताकत को पाने के लिए पीरजादा को साथ जोड़ने की योजना बना चुकी थी वहीं पीरजादा भी इस गठबंधन में जाकर मुस्लिम और दलित का बेहतर गठजोड़ बनाकर शानदार आगाज करेंगे. इसी वजह से सीपीएम और कांग्रेस की शर्त को मानते हुए पीरजादा सिद्दकी ने ओवैसी से नाता तोड़कर संयुक्त मोर्चा में शामिल होना ही बेहतर समझा.
पीरजादा को ओवैसी से बेहतर लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन लगा?
पीरजादा सिद्दकी समझ चुके थे की मुस्लिम नेताओं का गठजोड़ उनके वोट को जीत में तब्दील करने में कामयाब नहीं हो सकेगा. वहीं उनके समर्थक भी उन्हें कमजोर जानकर बीजेपी विरोध की मंशा से टीएमसी की ओर मुखातिब हो जाएंगे. 35 साल के पीरजादा बंगाल में असम के बदरूद्दीन अजमल की तरह मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, इसलिए कांग्रेस और लेफ्ट के वोटों के सहारे वो बेहतर सीटें जीत पाएंगे ऐसा उन्हें विश्वास हो चला था. पीरजादा सिद्दकी बंगाल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व पूरी तरह अपने गिरफ्त में करना चाहते हैं इसलिए सीपीएम और कांग्रेस का साथ उन्हें बेहतर विकल्प दिखाई पड़ा.
बंगाल में ओवैसी फैक्टर की चुनाव से पहले ही टांय-टांय फिस्स
अभी हाल में 15 मार्च को सईद जमीरूल हसन ने एआईएमआईएम (AIMIM) को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि ओवैसी चुनाव में कैंडिडेट उतारने को लेकर फैसला नहीं ले पा रहे थे. हसन ने आरोप लगाया कि ज़मीन पर हमारी मौजूदगी कहीं दिखाई नहीं पड़ रही है. इतना ही नहीं फरवरी में ओवैसी की रैली कोलकाता में कैंसिल कर दी गई, लेकिन ओवैसी ने महज ट्वीट के सहारे वहां के प्रशासन की खिंचाई कर मुंह बंद करना ही बेहतर समझा.
साल 2020 के नवंबर और दिसंबर महीने में ओवैसी की पार्टी के बंगाल यूनिट के नेता हैदराबाद में दो बार ओवैसी से मिलने गए. बिहार में जीत कर आए तमाम विधायकों को बंगाल के अलग-अलग इलाकों का इंचार्ज बनाया गया. ओवैसी मुसलमान के लिए राजनीति में अलग पॉलिटिकल स्पेस के पक्षधर हैं और उसी भावना को पीरजादा ने अपनी राजनीति में शामिल कर अपनी राजनीति चमकाना शुरू कर दिया है.
26 सीटों पर लड़ेगी पीरजादा की पार्टी
पीरजादा बंगाल के मुसलमानों का नेतृत्व सिर्फ और सिर्फ अपने हाथों में चाहते हैं. सीपीएम पीरजादा की मुस्लिम यूथ में लोकप्रियता को भांपते हुए पीरजादा की पार्टी आईएसएफ को 26 सीटें दे चुकी है. लेफ्ट और कांग्रेस मुसलमानों के एक तबके के बीच उपजे आइडेंटिटी पॉलिटिक्स (Identity Politics) की चाहत को भांपते हुए पीरजादा को अपने साथ जोड़कर बंगाल की राजनीति में जोरदार तरीके से वापस लौटना चाह रही है. ज़ाहिर है 35 साल के पीरजादा ने राजनीति में पांव रखते ही मजबूत सियासी चाल चलनी शुरू कर दी है और ओवैसी को कंधा ने देते हुए ओवैसी के मंसूबे पर पूरी तरह से पानी फेर दिया है.


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