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Bengal Election
ममता बनर्जी के भाग्य का फैसला कल यानी 1 अप्रैल को होगा. जनता ममता बनर्जी को अप्रैल फूल बनाएगी या शुभेंदु अधिकारी को, ये तो 2 मई को ही पता चलेगा. लेकिन ममता की बातों से लगने लगा है कि नंदीग्राम में ममता की डगर कठिन हो चुकी है. ज़ाहिर है सिंगूर और नंदीग्राम के सहारे सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाली ममता नंदीग्राम में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं? इसलिए ममता बनर्जी को पहले चंडी पाठ और अब अपने गोत्र का सहारा लेना पड़ा अब सिंगूर आंदोलन में मरे 14 लोगों की मौत का जिम्मेदार शुभेंदु अधिकारी को ठहरा रही हैं. मतलब साफ है कि नंदीग्राम सीट सीएम के लिए वाटरलू का युद्ध साबित होने जा रहा है.
नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलन से सत्ता के शिखर तक पहुंचने वाली ममता नंदीग्राम चुनाव से ऐन वक्त पहले नंदीग्राम आंदोलन में मारे गए लोगों की मौत का जिम्मेदार अधिकारी परिवार को बताने लगी हैं. कल तक सीपीएम नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य और लक्ष्मण सेठ को जिम्मेदार बताने वाली ममता अब उस वाकये के लिए अधिकारी परिवार के शुभेंदु अधिकारी और शिशिर अधिकारी को कसूरवार ठहरा रही हैं.
अधिकारी परिवार नहीं आने दे रहा था नंदीग्राम
सूबे की मुख्यमंत्री इस बात को कहने से भी परहेज नहीं करती हैं कि नंदीग्राम में दस सालों से उनके नहीं आने की वजह अधिकारी परिवार हैं जो उन्हें नंदीग्राम आने नहीं दे रहे थे. ज़ाहिर है जनता में इस बात को लेकर कौतुहल है कि पिछले कई सालों से ममता इस बात को लेकर चुप क्यों थीं और चुनाव प्रचार के दरमियान उन्हें इन सारी बातों की याद राजनीतिक फायदे के लिए तो नहीं आ रही है. सूबे के लोग इस बात पर भी जमकर चुटकी ले रहे हैं कि एक चुने हुए सीएम को उसके ही मंत्री और सांसद एक विधानसभा में आने से कैसे रोक सकते हैं.
ज़ाहिर है चुनाव के बीच ममता ऐसा बयान देकर खुद-ब-खुद बीजेपी द्वारा बिछाए गए जाल में फंसती नजर आ रही हैं जहां उन्हें सालों से नहीं आने के लिए ऐसा बयान देना पड़ रहा है जिसे विपक्ष ही नहीं जनता भी हास्यास्पद करार दे रही है. बीजेपी के इस आरोप में दम दिखाई पड़ने लगा है कि जिस नंदीग्राम आंदोलन से ममता सीएम की कुर्सी तक पहुंचीं उसी नंदीग्राम को वो वर्षों से इग्नोर से क्यों कर रही थीं?
मां माटी और मानुष की बात करने वाली ममता चंडी पाठ और शांडिल्य गोत्र का सहारा क्यों लेने लगी हैं?
नंदीग्राम से चुनावी मैदान में उतर कर राजनीतिक लड़ाई में कूदी ममता के लिए शुभेंदु अधिकारी को हराना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. शुभेंदु को मीरजाफर की संज्ञा देने वाली ममता एंटी हिंदू के आरोपों का जवाब देने और फिर खुद को प्रो हिंदू साबित करने के लिए पहले चंडी पाठ और फिर गोत्र का सहारा लेकर बीजेपी के चक्रव्यूह में उलझती नजर आ रही हैं. ममता का एक तरफ मां माटी, मानुष का सहारा लेना वहीं अपने को ब्राह्मण बता कट्टर हिंदू होने का प्रमाण देना उनकी राजनीतिक मुश्किलों को बखूबी बयां कर रहा है.
बीजेपी के शुभेंदु अधिकारी ममता को बेगम कहकर चुनाव में चुनौती दे रहे हैं, वहीं ममता बीच-बीच में हिंदू छवि प्रस्तूत कर एंटी हिंदू और प्रो मुस्लिम होने का तमगा हटाना चाहती हैं. शुभेंदु बार-बार उन्हें बेगम करार देकर बंगाल को मिनि पाकिस्तान में तब्दील होने की बात कर रहे हैं, वहीं ममता शुभेंदु अधिकारी को मीरजाफर करार देकर मुस्लिम मतदाताओं के साथ-साथ हिंदू वोटर्स पर भी पकड़ मजबूत रखने की फिराक में हैं.
गिरिराज सिंह ने बोला हमला
ममता के गोत्र बताने वाली घटना पर तीखी टिप्पणी करते हुए फायर ब्रांड नेता और केन्द्र में मंत्री गिरिराज सिंह ट्विट के जरिए जोरदार आक्रमण करते हैं. गिरिराज सिंह कहते हैं वोट के लिए रोहिंग्या को बसाने वाले, काली और दुर्गा की पूजा को रोकने वाले, हिंदुओं को अपमानित करने वाली नेता अब हार के डर से गोत्र का सहारा ले रही हैं. गिरिराज सिंह ने कहा शांडिल्य गोत्र राष्ट्र और सनातन के लिए समर्पित है वोट के लिए नहीं. ज़ाहिर है गिरिराज सिंह खुद शांडिल्य गोत्र से ताल्लुक रखते हैं और ममता को बेगम घोषित कर मुस्लिम परस्त बताने का ये मौका कैसे गंवा सकते हैं.
ममता की मजबूरी क्या है?
जिस नंदीग्राम ने ममता को बंगाल में राज करने की चाबी सौंपी थी वो अब ममता के लिए आसान नहीं दिखाई पड़ रहा है. अमित शाह का जोरदार रोड शो और जनता में बना ममता का प्रो मुस्लिम और एंटी हिन्दू का इमेज बंगाल चुनाव को बीजेपी की रणनीति के हिसाब से चलने को मजबूर कर दिया है. यही वजह है कि ममता चंडी पाठ से लेकर गोत्र तक का सहारा लेकर अपने हिंदू होने का प्रमाण देने पर आमदा हो चुकी हैं. वैसे बंगाल के वोटर्स का रूझान इस बार वैसी सरकार के लिए है जो रोजगार के अवसर को पैदा करे और इसलिए दोनों पार्टियों का जोर रोजी-रोजगार पर भी भरपूर दिखाई पड़ता है.
ज़ाहिर है एक तरफ ममता पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप बीजेपी लगाती है वहीं पीरजादा सिद्दकी सरीखे नेता मुसलमानों को ठगने का आरोप ममता पर मढ़ने से परहेज नहीं करते हैं. ऐसे में रोजी-रोजगार के अवसर और ऐंटी इनकम्बेंसी के मुद्दे पर भी ममता घिरती नजर आ रही हैं. ज़ाहिर है ममता अब वही करने लगी हैं जो राहुल गांधी गुजरात चुनाव से पहले शिव भक्त के रूप में अपना इमेज बनाकर जनता के बीच जाना चाह रहे थे. इससे पहले केदारनाथ की यात्रा कर राहुल गांधी ने खूब सूर्खियां बटोरी थीं. लेकिन राहुल की इस यात्रा का परिणाम गुजरात चुनाव से लेकर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी साफ झलक रहा था.
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