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चोटिल ममता की ‘चोट’ क्या चुनावी स्टंट है
ममता बनर्जी को लगे चोट के बाद क्या बंगाल की सियासत बदलने वाली है? इस बात की चिंता बीजेपी समेत तमाम टीएमसी (TMC) विरोधियों को सताने लगी है. ममता को लगे चोट का सच क्या है इसकी जांच चल रही है, लेकिन जिस तरह से विपक्ष इसे ममता का पाखंड करार दे रहा है उससे साफ है कि ममता को चोट लगने के बाद विपक्षी पार्टियों में खलबली जरूर है. ममता ने विपक्षी पार्टियों में बेचैनी ये कहकर भी बढ़ा दिया है कि वो चुनाव प्रचार में हिस्सा व्हील चेयर पर बैठकर लेंगी.
नंदीग्राम साल 2006 के आंदोलन के बाद एक बार फिर बंगाल की राजनीति का केन्द्र बन चुका है. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम आंदोलन के दो नायक आमने-सामने हैं. ममता अपनी जीत को लेकर इस कदर कॉन्फिडेंट हैं कि उन्होंने अपनी परंपरागत सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से पर्चा भरा है.
चोटिल ममता की 'चोट' क्या चुनावी स्टंट है?
ममता के लिए नंदीग्राम हमेशा से शुभ रहा है, वहीं बीजेपी के उम्मीदवार शुभेन्दु अधिकारी ममता के सामने हैं जो नंदीग्राम आंदोलन के दूसरे नायक रहे हैं. ममता राजनीति के सफर में इतनी तेजी से आगे बढ़ीं कि नंदीग्राम के लोगों का सुध लेने के लिए उनके पास वक्त ही नहीं था. शुभेन्दु लगातार वहां के लोगों के संपर्क में रहे और साल 2016 में टीएमसी से विधायक भी चुने गए. बीजेपी इस बार शुभेन्दु अधिकारी को अपने पाले में लाकर ममता को पूरी तरह से घेरने की योजना बना चुकी थी, लेकिन ममता बनर्जी को लगी चोट से बीजेपी का सियासी गणित बिगड़ सकता है, इसका अंदेशा पार्टी को सताने लगा है.
एक तरफ बीजेपी के तथागत रॉय सरीखे नेता ममता से कुशलक्षेम पूछने एसएसकेएम हॉस्पीटल जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी चुनाव आयोग से छानबीन कर सच को सामने लाने की मांग करती है. ममता के चोटिल होने की खबर आग की तरह फैलते ही कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी 'अधीर' हो जाते हैं. अधीर रंजन इसे नौटंकी करार देते हुए सीसीटीवी खंगाल कर सच सामने लाने की मांग करते हैं. बीजेपी के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय भी ममता दीदी की चोट की खबर सुनते ही सहानुभूति तो जताते हैं, लेकिन सीबीआई जांच की मांग कर सच जल्द से जल्द सामने लाने की मांग भी करते हैं. दरअसल इस घटना के बाद बंगाल का सियासी पारा तेजी से उपर चढ़ने लगा है.
सहानुभूति बटोर पाएंगी ममता?
ममता को टखने में चोट लगी है और वो चुनाव प्रचार व्हील चेयर के सहारे करने वाली हैं. ममता का चुनाव प्रचार करने का यह तरीका विपक्षी पार्टियों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है. चोटिल ममता के पक्ष में जनता की भावनाएं उमड़ न जाएं इसको ध्यान में रखते हुए सियासी पार्टियां अपने बयान को सामने रख रही हैं. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ममता की चोट को नौटंकी करार देते हुए कहते हैं कि ममता ने टीएमसी की हार को भांपकर एक तरह का नाटक रचा है. वैसे सहानुभूति के नाम पर सत्ता में काबिज कैसे हुआ जाता है, वो कांग्रेस से बेहतर शायद ही कोई सियासी पार्टी जानती हो.
साल 1984 में इंदिरा गंधी की मौत के बाद राजीव गांधी 484 सीट जीत पाने में कामयाब हुए थे. इतना ही नहीं साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की वापसी सहानुभूति के आधार पर ही हुई थी. लेकिन कई बार जनता की सहानुभूति नेताओं को मिल नहीं पाती है और इसका नमूना इस बार बिहार चुनाव में साफ देखा गया. रामविलास पासवान की मौत के बाद चिराग एनडीए से अलग चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें लोगों की सहानुभूति नसीब नहीं हो सकी और वो अपनी पार्टी का खाता मुश्किल से खोल पाने में कामयाब हो पाए थे.
इसलिए ममता बनर्जी के चोटिल होने के बाद जनता का झुकाव उनकी ओर होगा इसको लेकर बंगाल की राजनीति अलग दिशा की ओर रुख कर चुकी है. वहीं एआईएसएफ के नेता पीरजादा सिद्दकी कहते हैं कि वो ममता के चोटिल होने से सहानुभूति रखते हैं क्योंकि उनकी लड़ाई ममता बनर्जी के साथ राजनीतिक है न कि निजी.
नंदीग्राम क्यों बन गया है बंगाल की राजनीति का केन्द्र
नंदीग्राम में टीएमसी सुप्रीमो ममता और बीजेपी के तुरुप के इक्के सुभेन्दु अधिकारी आमने सामने हैं. अधिकारी परिवार का पूर्वी मिदनापुर में सालों से दबदबा रहा है. साल 2016 में टीएमसी से चुनाव जीतने वाले अधिकारी ममता को हरा पाएंगे इसकी तैयारी जोरों पर है. बीजेपी 70 फीसदी हिन्दु मतदाताओं पर पकड़ मजबूत करने की फिराक में है और इस कड़ी में 53 फीसदी अनुसूचित जाति के लोगों पर भी बीजेपी की नजरें टिकी हुई है. ममता नंदीग्राम से चुनाव लड़कर बीजेपी की पनप रही राजनीति पर गहरा चोट पहुंचाना चाह रही हैं. इसलिए वो राजनीतिक मंच पर दुर्गा पाठ कर शाम में मजार पर चादर चढ़ाते देखी जाती हैं. ममता अपने आपको हिन्दू की बेटी कहने लगी हैं और बीजेपी पर 'हिन्दू कार्ड' खेलने का आरोप लगाती हैं.
साल 2001 से लेकर साल 2011 तक नंदीग्राम से मुस्लिम विधायक चुने जाते रहे हैं और बीजेपी मानकर चल रही थी कि सीपीएम नंदीग्राम से मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारेगी, जिससे ममता का खेल खराब हो सकता है. लेकिन लेफ्ट, कांग्रेस और एआईएसएफ के उम्मीदवार के तौर पर इस बार मिनाक्षी मुखर्जी नंदीग्राम से चुनावी मैदान में उतरी हैं और बीजेपी इसे लेफ्ट और कांग्रेस का ममता को दिया गया वॉक ओवर मानती है.
बीजेपी मानती है कि मुस्लिम उम्मीदवार की गैरमौजूदगी में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान ममता की तरफ होगा, इसलिए बीजेपी नए परिस्थितियों में ममता को घेरने की रणनीति बनाने में जुटी है. बंगाल चुनाव का हॉटसीट बन चुका नंदीग्राम विधानसभा सीट कहीं चोटिल ममता बनर्जी को सहानुभूति की वजह से उपहार स्वरूप न मिल जाए, इसलिए बीजेपी नेता सच सामने लाने की मांग पुरजोर तरीके से कर रहे हैं.
वहीं नंदीग्राम आंदोलन से सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाली ममता नंदीग्राम से चुनाव लड़कर एक तीर से कई निशाने साधना चाहती हैं. बीजेपी ममता की हर एक चाल पर पैनी नजर रखते हुए संभल-संभल कर सियासी पासा फेंक रही है. ऐसे में ममता का नंदीग्राम से चुनावी जंग में उतरना उनकी ताकत में इजाफा करेगा और सीपीएम की तरह बीजेपी को उखाड़ फेंकने में मददगार साबित होगा, इस पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं.
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