सम्पादकीय

बंगाल इफेक्ट : राजस्थान में कांग्रेस सरकार भी हिंदुत्व के एजेंडे पर, वैदिक शिक्षा और संस्कृत के लिए बना रहा एजुकेशन बोर्ड

Tara Tandi
16 Jun 2021 12:11 PM GMT
बंगाल इफेक्ट : राजस्थान में कांग्रेस सरकार भी हिंदुत्व के एजेंडे पर, वैदिक शिक्षा और संस्कृत के लिए बना रहा एजुकेशन बोर्ड
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राजस्थान की गहलोत सरकार (Rajasthan Gehlot Government) ने फैसला लिया है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क|संयम श्रीवास्तव| राजस्थान की गहलोत सरकार (Rajasthan Gehlot Government) ने फैसला लिया है कि वह आने वाले चार-पांच महीनों में संस्कृत भाषा और वैदिक शिक्षा के उत्थान के लिए एक बोर्ड का गठन करेगी. इसमें वैदिक शिक्षा और संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए काम किया जाएगा. 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Election) में कांग्रेस (Congress) ने अपने मेनिफेस्टो में वादा किया था कि वह अगर सरकार में आई तो संस्कृत भाषा को आगे बढ़ाने के लिए काम करेगी. अब अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपने उसी वादे को पूरा कर रहे हैं. लेकिन इसे आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) और राजस्थान के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भी लिया गया फैसला बताया जा रहा है. दरअसल जिस तरह से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने बीजेपी (BJP) के कट्टर हिंदुत्व के आगे सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव चला और बड़ी जीत दर्ज की अब उसी से सीख लेते हुए राजस्थान की गहलोत सरकार भी बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व के सामने संस्कृत भाषा और वेदों के पुनरुत्थान के लिए काम करके सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव चल रही है.

संस्कृत शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग के मुताबिक जल्द ही रिपोर्ट के आधार पर मॉड्यूल बोर्ड के सामने प्रस्तुत किया जाएगा, इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंजूरी मिलते ही इस पर काम शुरू हो जाएगा और 4 से 5 महीनों में यह बोर्ड बनकर तैयार हो जाएगा. ऐसा नहीं है कि गहलोत सरकार ने सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर यह पहला कदम बढ़ाया है, इसके पहले भी उनके कई ऐसे फैसले हैं जो दिखाते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर कितनी सक्रिय है.
राम मंदिर के लिए भी दिखा सॉफ्ट हिंदुत्व
भारतीय जनता पार्टी ने अपने वादे के मुताबिक अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का काम शुरू कर दिया है. लेकिन इसमें जो सबसे बड़ी मुसीबत आ रही थी वह थी मंदिर निर्माण के लिए गुलाबी पत्थरों का मिलना, लाल गुलाबी पत्थर राजस्थान के बंसी पहाड़पुर में मिलते हैं. लेकिन राजस्थान सरकार ने यहां 2016 से ही खनन पर रोक लगा दी थी. हालांकि जब गहलोत सरकार से मंदिर निर्माण के लिए पत्थर की बात की गई तो उन्होंने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखते हुए कहा कि मंदिर निर्माण के लिए इन गुलाबी पत्थरों की कोई कमी नहीं होगी.
इसके बाद अशोक गहलोत ने राजस्थान सरकार का फैसला वापस ले लिया, जिसकी वजह से खनन पर रोक लगी थी. यह फैसला नवंबर 2020 में लिया गया था. इसके बाद भी राजनीतिक गलियारे में चर्चा शुरू हो गई थी कि अशोक गहलोत सरकार सॉफ्ट हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ रही है.
ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने कई नेताओं को सीख दे दी है
बंगाल में जिस तरह से ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के मुद्दे का मुकाबला किया और इतनी बड़ी संख्या में जीत दर्ज की उसने देश के कई राजनेताओं को सबक दे दिया है, कि उन्हें बीजेपी के हिंदुत्व मुद्दे का कैसे सामना करना है. ममता बनर्जी के जीत के पीछे जो सबसे बड़ी वजह बताई जाती है वह यह है कि उन्होंने सही समय पर अपनी राजनीतिक चाल बदल ली और सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर अग्रसर हो गईं. चाहे उनका खुद को ब्राह्मण की बेटी बताना हो या फिर चंडी पाठ करना हो. ममता बनर्जी ने अपने सॉफ्ट हिंदुत्व को दिखाने के लिए हर चाल चली और उसमें वह कामयाब भी हुईं. हालांकि कांग्रेस बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भी सॉफ्ट हिंदुत्व के मुद्दे को अपनाती रही है.
इसी तरह नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी बीजेपी का आगे सॉफ्ट हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के सहारे अपनी नैय्या पार लगा रही है. दिल्ली में केजरीवाल सरकार राष्ट्रवाद को बढ़ाने के लिए एक कोर्स तैयार कराया है जो स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया गया है. इसी तरह अरविंद केजरीवाल की हर सभा बजरंग बलि के जयकारे के साथ शुरू होती है. आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय मुद्दों पर अकसर बीजेपी वाला स्टैंड लेती देखी गई है.
छत्तीसगढ़ सरकार तो राम-कौशल्या मंदिर भी बना रही है
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी पहली बार सॉफ्ट हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ रही है. अभी कुछ महीने पहले ही छत्तीसगढ़ सरकार भव्य राम मंदिर, माता कौशल्या मंदिर बनाने की घोषणा कर चुकी है. राम वन गमन मार्ग को राज्य सरकार डिवेलप कर रही है. इससे पहले भी 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हो या 2019 का लोकसभा चुनाव हर चुनावी मौके पर कांग्रेस के दिग्गज नेता हिंदुत्व का चोला ओढ़े नजर आते हैं. आपको याद होगा कि जब 2019 में लोकसभा चुनाव थे तो किस तरफ प्रियंका गांधी रुद्राक्ष का माला पहन कर प्रयागराज में गंगा जी में डुबकी लगा रही थीं. राहुल गांधी मंदिर-मंदिर घूम रहे थे. यही हाल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी था, कांग्रेस पार्टी के नेता मंदिर और रुद्राक्ष दिखाकर अपने सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रदर्शन कर रहे थे. अगर आप इतिहास में जाएंगे तो राजीव गांधी के समय भी आपको कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व देखने को मिलेगा, क्योंकि राजीव गांधी की सरकार ही थी जिसने राम मंदिर का ताला खुलवाया था और उन्हीं की सरकार थी जिसने 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर का शिलान्यास कराया था. यह सब कुछ कांग्रेस ने सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वह सॉफ्ट हिंदुत्व को पकड़े रहना चाहती थी.
सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर क्यों भाग रही हैं राजनीतिक पार्टियां
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक देश में केवल मुस्लिम तुष्टिकरण के ही मुद्दे पर चुनाव होते थे. लेकिन 2014 में जब बीजेपी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने उतरी तो उसने पूरे देश में हिंदुत्व का माहौल बना दिया, इस वजह से देश का बहुसंख्यक हिंदू यूनाइट होने लगा, इसका परिणाम दिखा 2014 लोकसभा चुनाव के रिजल्ट में, जब बीजेपी पूर्ण बहुमत से जीती. उसी वक्त सभी राजनीतिक दलों को पता चल गया कि अब हिंदुत्व के मुद्दे को नकार कर देश में चुनाव नहीं जीता जा सकता. यही वजह है कि अब धीरे-धीरे हर राजनीतिक पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाती नजर आ रही है.


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