सम्पादकीय

बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: तारकेश्वर विधानसभा, जहां विकास का मुद्दा हाशिए पर है.!

Gulabi
3 April 2021 12:21 PM GMT
बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: तारकेश्वर विधानसभा, जहां विकास का मुद्दा हाशिए पर है.!
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कोलकाता से सटे हुगली जिले में आरामबाग लोकसभा सीट के तहत तारकेश्वर विधानसभा सीट राज्य की प्रमुख सीटों में शामिल है

कोलकाता से सटे हुगली जिले में आरामबाग लोकसभा सीट के तहत तारकेश्वर विधानसभा सीट राज्य की प्रमुख सीटों में शामिल है। यहां के तारकेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए दुनिया भर से भारी संख्या में श्रद्धालु तो आते ही हैं, जल चढ़ाने के लिए हजारों लोग हर साल मीलों पैदल चलकर भगवान शिव के चरणों में अपना शीश झुकाते हैं।


राजनीतिक वर्चस्व की बात करें तो 1951 से लेकर 2006 तक 10 बार वाममोर्चा की ओर से फारवर्ड ब्लाॅक का उम्मीदवार और चार बार कांग्रेस उम्मीदवार विजयी रहा। ममता लहर पर सवार होकर पूर्व आइपीएस अधिकारी रछपाल सिंह 2011 में उम्मीदवार बनाए गए तो उन्होंने कहा कि इलाके के ग्रामीण हल्कों में लोगों ने किसी सिख को नहीं देखा था। वे लोग स्पर्श करके देखना चाहते थे कि दीदी ने हमारे लिए किसे उम्मीदवार बनाया है। भारी मतों से जीतने के बाद दूसरी बार 2016 में भी उन्होंने यहां से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की।

हालांकि वोट प्रतिशत 55.10 फीसद से घट कर 50.75 रह गया।एक बार एनसीपी तो दूसरी बार एमएफबी के उम्मीदवार को पराजित किया। इस दौरान भाजपा के वोट 1.70 फीसद से बढ़कर 9.36 फीसद तो लोकसभा में और भी उछाल आया।

ग्रामीण विधानसभा केंद्र में तृणमूल कांग्रेस ने जमीन से जुड़े राजनीतिज्ञ रमेंदु सिह राय को उम्मीदवार बनाया है, संयुक्त मोर्चा ने माकपा के सुरजीत घोष को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन यहां आकर्षण का केंद्र भाजपा उम्मीदवार सपन दासगुप्ता हैं। हाई प्रोफाइल इस नेता को कई बार बंगाल में भाजपा के मुख्यमंत्री का चेहरा कहा गया है।

राज्यसभा में निर्दलीय उम्मीदवार को भाजपा ने समर्थन दिया था। चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने इस्तीफा दिया। सबसे अहम बात यह है कि भले ही विधानसभा में तृणमूल उम्मीदवार की जीत का अंतर खासा था, लेकिन बात अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा तृणमूल उम्मीदवार से महज 4345 वोट पीछे रह गई थी। इससे माना जा रहा है कि टक्कर तृणमूल-भाजपा के बीच जोरदार होगी, संयुक्त मोर्चा उम्मीदवार हार-जीत के नतीजे प्रभावित करने में अहम होगा।

मतदाताओं की बात करें तो राज्य के दूसरे हिस्सों की तरह यहां भी स्थानीय मुद्दे गौण हो गए हैं और लोग आसोल पोरिबर्तन और परिवर्तन जारी रखने की बात ही कर रहे हैं। खेती का काम करने वाले खगेंद्र राउत का कहना है कि कृषक बंधु योजना में हर साल पांच हजार रुपए मिल रहे थे, इसे बढ़ाकर 6 हजार किया गया और दीदी ने वादा किया है कि चुनाव जीतने के बाद 10 हजार रुपए कर देंगी।

माना जा रहा है कि बंगाल में इस बार चुनाव नतीजे ध्रुवीकरण पर निर्भर करते हैं। - फोटो : ANI
यश गुप्ता ने कहा कि स्वास्थ्य साथी परियोजना के तहत 5 लाख रुपए तक की चिकित्सा सेवा मुफ्त का कार्ड मुझे मिल गया है, हालांकि इलाके के कई लोगों को मतदान प्रक्रिया शुरू होने के कारण नहीं मिला। तृणमूल अगर चुनाव जीत जाती है तो बाकी लोगों को भी यह सुविधा मिल जाएगी।

शांता दलुई खुश हैं कि उनकी बेटी की शादी के लिए सरकार से 25 हजार रुपए मिले। कई और लोग मुफ्त साइकिल, टैब मिलने से खुश हैं और चाहते हैं कि ममता की जीत से ही यह सुविधाएं जारी रहेंगी। अगर भाजपा जीतती है तो यह मुफ्त सुविधाएं बंद हो जाएंगी।

दूसरी ओर, कुछ लोग राज्य सरकार से खासे नाराज हैं। शिक्षक प्रदीप सरकार का कहना है कि मुफ्त भोजन, किताबें, जूते, साइकिल, टैब समेत बहुत कुछ बच्चों को दिया जा रहा है, लेकिन शिक्षक कलर्क बनकर रह गए हैं। हमारा काम गौण हो गया है, पढ़ाने के बजाए इस का हिसाब किताब की रखना पड़ता है कि किसे क्या दिया और किसे क्या देना है।

कारोबारी बुंबा ने कहा कि तृणमूल उम्मीदवार दो बार यहां से जीता लेकिन जीत के बाद दोबारा तो दिखाई नहीं दिया। कई लोग मानते हैं कि स्थानीय नेताओं में भ्रष्टाचार चरम पर है और सत्ता मिलने ही लूटपाट में लग गए हैं। कई लोगों ने आरोप लगाया कि घर बनाने के लिए दी जाने वाली सरकारी रकम हो या दूसरी सुविधाएं, सत्ताधारी दल के लोग अपने लोगों को मुहैया करवाते हैं और आम लोगों की नहीं सुनते।

माना जा रहा है कि बंगाल में इस बार चुनाव नतीजे ध्रुवीकरण पर निर्भर करते हैं। यह विधानसभा सीट भी इस मुद्दे में पीछे नहीं। दिनेश पंडित ने कहा कि तारकेश्वर मंदिर विकास प्राधिकरण का चेयरमैन एक मुसलमान फिरहाद हाकिम को बना दिया गया था, क्या हिंदुओं की कमी है कि पद से लिए तृणमूल को हिंदु उम्मीदवार नहीं मिला।

यह सिर्फ तुष्टीकरण के लिए किया जाता है। हालांकि हिंदुओं के विरोध के कारण हाकिम को हटा कर पूर्व सांसद रत्ना दे नाग को चेयरमैन बनाया गया। इससे सरकार की मंशा का पता चलता है। इसे बदलने की जरूरत है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।


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