सम्पादकीय

'बेनंग-ओ-नाम' पाकिस्तान !

Subhi
17 Oct 2022 4:14 AM GMT
बेनंग-ओ-नाम पाकिस्तान !
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अमेरिकी राष्ट्रपति श्री जो बाइडेन ने यह कह कर पाकिस्तान की हकीकत बेपर्दा कर दी है कि यह दुनिया के सबसे खतरनाक मुल्कों में से एक है, क्योंकि यह बिना किसी सुगठित तन्त्र के परमाणु शक्ति से लैस है।

आदित्य चोपड़ा; अमेरिकी राष्ट्रपति श्री जो बाइडेन ने यह कह कर पाकिस्तान की हकीकत बेपर्दा कर दी है कि यह दुनिया के सबसे खतरनाक मुल्कों में से एक है, क्योंकि यह बिना किसी सुगठित तन्त्र के परमाणु शक्ति से लैस है। जाहिर है कि श्री बाइडेन के इस कथन के पीछे पाकिस्तान की वह पूरी व्यवस्था निशाने पर है जो इस देश का निजाम चलाती है। इससे यह भी जाहिर होता है कि भारतीय उपमहाद्वीप की शान्ति व इसके स्थायित्व के लिए भी पाकिस्तान एक खतरा है। इसकी वजह यह भी मानी जाती है कि पाकिस्तान आज भी सीरिया के साथ पूरे विश्व में आतंकवाद की जरखेज जमीन बना हुआ है और इसने आतकंवाद के साथ ही इस्लामी कट्टरवाद को अपनी विदेश नीति में शामिल किया हुआ है। दिक्कत भारत के लिए यह है कि एेसा देश उसका निकटतम पड़ोसी है। भारत का पड़ोसी होने की वजह से उसके द्वारा आतंकवाद को दी जाने वाली पनाह का सबसे बुरा असर भारत पर ही होता है। भारत में सीमापार से आतंकवाद की समस्या नब्बे के दशक से ही चल रही है जिसका सबसे पहले उपयोग जम्मू-कश्मीर में ही किया गया था। मगर श्री बाइडेन के ताजा कथन का मतलब बहुत गंभीर है। पहला मतलब तो यह है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों का मोह अब पाकिस्तान से टूट रहा है।

पाकिस्तान को भारतीय उपमहाद्वीप समेत हिन्द प्रशान्त महासागर क्षेत्र में अपनी रणनीतिक ढाल बनाये जाने की गरज से ही 1947 में ब्रिटिश साम्रज्यावादी सरकार ने भारत को स्वतन्त्रता देते समय इसे दो टुकड़ों में बांट कर इस देश का निर्माण कराया था। हालांकि उस समय अमेरिका की राय थी कि कम्युनिस्ट चीन के विरुद्ध स्वतन्त्र भारत को मजबूत रखने के लिए इसके दो टुकड़े न किये जायें परन्तु बाद में ब्रिटिश सैनिक रणनीतिकारों ने सोवियत संघ से भारत की दूरी बनाये रखने की गरज से पाकिस्तान के रूप में ऐसे देश का निर्माण पश्चिमी शक्तियों के हित में समझा जिसे वे भविष्य में अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए यथा समय प्रयोग कर सकें। परन्तु नब्बे के दशक के समाप्त होते-होते सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद इससे लगते अफगानिस्तान में अमेरिका व पश्चिमी देशों के हित साधने लगे और पाकिस्तान की भोगौलिक व रणनीतिक उपयोगिता कम होने लगी। इसलिए हम देखते हैं कि नब्बे के दशक तक पाकिस्तान को अमेरिका व पश्चिमी शक्तियों की तरफ से भरपूर सैनिक व वित्तीय मदद मिलती रही और खास तौर पर इसकी अर्थव्यवस्था अमेरिका से मिलने वाले डालरों के सहारे चलती रही।

यह मदद अफगानिस्तान से तालिबान आतंकवाद समाप्त करने के नाम पर भी इसे जमकर मिली, परन्तु पाकिस्तान ने इस मदद का इस्तेमाल बजाय अपनी जनता के विकास करने के चन्द राजनीतिज्ञों व सेना के अफसरों की मदद के ​िलए किया और भारत की देखा-देखी 1998 में परमाणु परीक्षण भी कर डाला हालांकि भारत 1974 से पहले परमाणु विस्फोट से ही परमाणु शक्ति बन चुका था, मगर जब 1998 में इसने दूसरा परमाणु विस्फोट किया तो इसी के समानान्तर पाकिस्तान ने भी अपना पहला परमाणु विस्फोट करके खुद के परमाणु शक्ति होने का ऐलान कर दिया। उसका यह परमाणु परीक्षण पाकिस्तान की अवाम की कीमत पर किया गया था क्योंकि तब तक पाकिस्तान आधे समय सैनिक शासन में और आधे समय कथित अधकचरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था से गुजर चुका था। इसके बाद भी पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ का फौजी शासन आया और आतंकवाद की खेती जमकर होती रही। आज बेशक पाकिस्तान में कथित चुनी हुई शहबाज शरीफ की सरकार है मगर इसकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है।

इससे पहले इमरान खान की सरकार ने पाकिस्तान को कट्टर इस्लामी निजाम में झोंकने के ऐसे इन्तजाम किये थे कि इसके मदरसों में जेहादी तैयार करने की रस्में चल चुकी थीं। अतः बाइडेन का बयान ऐसे मोड़ पर आया है, जब पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की निगरानी और उसके रहमोकरम पर चल रही है। इसके बावजूद इसके विभिन्न प्रशासनिक अंगों के बीच खींचतान का माहौल बना हुआ है। अतः ऐसे मुल्क के हाथ में परमाणु बम का होना किसी 'बन्दर के हाथ में तलवार' होने के समान ही कहा जायेगा। परन्तु हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पिछले दिनों ही खुद अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों की नई खेप देने का ऐलान किया है। यदि अमेरिकी राष्ट्रपति पाकिस्तान का सच जानते हैं तो उन्होंने उसे और लड़ाकू विमानों से लैस क्यों किया?

अमेरिका पहली बार ऐसी दोमुंही चाल नहीं चल रहा है। कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान ने 1965 और 1971 का युद्ध भारत के विरुद्ध अमेरिकी हथियारों के भरोसे ही लड़ा था, मगर हर बार भारत से मुंह की खाई थी। अतः मूल सवाल यह है कि अमेरिका भी भलीभांति जानता है कि इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किस के खिलाफ हो सकता है ? इसीलिए भारत के विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर ने अमेरिका की धरती पर खड़े होकर कहा था कि 'हमें मालूम है कि इन विमानों का प्रयोग कहां किया जायेगा।' अमेरिका को यह बात अब अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि बदली वैश्विक रणनीतिक परिस्थितियों में भारत को अमेरिका की जरूरत नहीं बल्कि अमेरिका को भारत की जरूरत है। इस बारे में ज्यादा तफसील में जाने का यह समय नहीं है, मगर इतना समझ लिया जाना चाहिए कि रूस-उक्रेन युद्ध के चलते पूरी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की महत्ता सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंच चुकी है। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो यह तो अपने वजूद से लेकर अब तक भारत के खिलाफ दुश्मनी अन्दाज से पैंतरेबाजी करता रहा है, मगर अब तो बाइडेन भी वही फरमा रहे हैं जिस तरफ भारत वर्षों से इशारा करता रहा है, इसके बावजूद भारत ने इसके साथ अपनी तरफ से हमेशा दोस्ती के ताल्लुकात ही बनाने चाहे। लो वो भी कहते हैं कि ये 'बेनंग-ओ-नाम' हैं


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