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- बेलगाम महंगाई: कोरोना...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ऐसे वक्त में जब देश लॉकडाउन के प्रभावों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है और आमदनी के रास्ते सामान्य नहीं हुए हैं, बेकाबू महंगाई लोगों की चिंता बढ़ाने वाली है।
अक्तूबर के महीने में राष्ट्रीय औसत के विपरीत आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में खुदरा महंगाई की दर दो अंकों तक जा पहंुची है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्तर पर खुदरा महंगाई का औसत 7.61 रहा है, जो कि पिछले छह वर्षों में सर्वोच्च स्तर पर है।
यूं तो वर्ष के पहले महीने भी महंगाई दर साढ़े सात फीसदी के करीब थी लेकिन किसी भी राज्य में महंगाई दर दो अंकों में नहीं पहुंची थी। पश्चिम बंगाल ही एक ऐसा राज्य रहा जहां खुदरा महंगाई दर सितंबर में दो अंकों में रही। ऐसे वक्त में जब कोरोना संकट के चलते रोजगार के संकट बढ़े हैं और आमदनी के रास्ते संकुचित हुए हैं, महंगाई का बढ़ना मंदी की गंभीर स्थिति की ओर इशारा करता है। उम्मीदों के अनुरूप अर्थव्यवस्था अनलॉक के बाद भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी है।
उस पर संकट यह कि कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाना आरंभ कर दिया है। चिंता यह है कि ग्रामीण इलाकों में महंगाई की दर में तेजी देखी गई है। कहीं न कहीं आपूर्ति शृंखला में आया व्यवधान भी इस महंगाई का कारण है। लॉकडाउन का विस्तार, श्रमिक संकट और आर्थिक सुधार की प्रक्रिया का बाधित होना भी समस्या के मूल में है। चिंता की बात यह भी है कि महंगाई की दर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित संतोषजनक दायरे को पार कर गई है। रिजर्व बैंक की कोशिश होती है कि महंगाई चार फीसदी से दो फीसदी के उतार-चढ़ाव के साथ नियंत्रित रहे। विडंबना यह है कि अधिकांश राज्यों में महंगाई रिजर्व बैंक की छह फीसदी की सीमा से ऊपर रही है। केवल राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल व पंजाब में महंगाई दर छह फीसदी से कम रही है।
चिंता की बात यह है कि अक्तूबर माह में लगातार छठे महीने महंगाई की दर केंद्रीय बैंक की सामान्य दर से ऊपर रही है। जिसका जवाब देना सरकार की जिम्मेदारी बनती है क्योंकि यह केंद्रीय बैंक की नीतियों की विफलता ही कही जायेगी। विडंबना यह कि सरकार ने महंगाई पर नियंत्रण के जो उपाय किये हैं, उनका सकारात्मक प्रभाव नजर नहीं आता। ऐसे में आर्थिक मामलों के जानकार उम्मीद लगा रहे हैं कि महंगाई की दर आने वाली तिमाही में कम होगी।
वहीं कुछ जानकार अगले वर्ष की छमाही तक महंगाई की दर के छह प्रतिशत तक रहने का आकलन लगा रहे हैं। निस्संदेह महंगाई ने आम आदमी की थाली का जायका खराब किया है। खाद्यान्नों की महंगाई के चलते जो आलू-प्याज आम आदमी का सहारा बनते थे, उनके दामों में भी खासी तेजी आई है। इतना ही नहीं, हरी सब्जियों के दामों में भी उछाल देखा जा रहा है।
ऐसे में कोरोना संंकट में रोजगार संकुचन और आय के स्रोतों के सिमटने के दौर में आम लोगों के लिये खुदरा महंगाई एक चुनौती बनती जा रही है। विडंबना यह भी है कि खुदरा महंगाई पर नियंत्रण के लिये सरकार ने जो प्रशासनिक व मौद्रिक उपाय किये हैं, उनका भी बड़ा असर नजर नहीं आता।
सरकार का कहना है कि जल्दी खराब होने वाली चीजों की बाधित आपूर्ति से खुदरा मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ा है। ऐसे में महंगाई नियंत्रण के तात्कालिक और दीर्घकालिक कारगर कदम उठाना समय की मंाग बन गई है। अन्यथा पहले से ही कोरोना संकट के दौर में परेशान लोगों की समस्याओं में और अधिक विस्तार ही होगा।
वह भी ऐसे वक्त में जब आमदनी के रास्ते सहज नहीं रह गये और बाजार भी आकांक्षाओं के अनुरूप रवानगी नहीं पकड़ पाया है। हालांकि, बाजार के संकट वैश्विक स्तर पर हैं लेकिन इसके बावजूद महंगाई के दुश्चक्र से बाजार को बाहर निकालना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। महामारी की त्रासदी ने लोगों के मनोबल को पहले ही बुरी तरह प्रभावित किया है। महंगाई उनकी मुश्किलों को विस्तार ही देगी।