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- भीख की सीख
कोरोना संकट में बेघर लोगों और भिखारियों के टीकाकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों से भिखारियों को हटाने के बाबत जो मानवीय दृष्टिकोण दिखाया, वह मुक्तकंठ से प्रशंसा योग्य है। कोर्ट ने उन्हें हटाने की मांग करने वालों को दो टूक जवाब दिया कि कोर्ट भिक्षावृत्ति उन्मूलन के बाबत अभिजात्य दृष्टिकोण के बजाय मानवीय नजरिये को तरजीह देगा। अदालत ने कहा कि लोग शौक से भीख नहीं मांगते बल्कि शिक्षा व रोजगार की दौड़ में पिछड़ने के चलते अपनी जमीन से उखड़कर सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर होते हैं। इसलिये सरकारों को इसे एक आर्थिक व सामाजिक समस्या मानते हुए उनके जीवनयापन और पुनर्वास के लिये दीर्घकालीन उपाय करने चाहिए। हालांकि, वर्ष 2011 की जनगणना चार लाख भिखारियों का होना बताती है लेकिन वास्तव में यह आकंड़ा बहुत बड़ा है। इनके उत्थान के लिये सरकारी स्तर पर जो प्रयास हुए, उनका लाभ इस तबके तक नहीं पहुंचा है। ऐसे में जब कोरोना संकट में समाज का अंतिम व्यक्ति ही दारुण स्थिति से गुजर रहा है, तो भीख मांगने वालों की त्रासदी का आसानी से अंदाज लगाया जा सकता है। ऐसे में जो लोग वास्तव में मुश्किल हालातों से गुजरकर, विस्थापन, पलायन, दुर्घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं के चलते भीख मांगने को मजबूर होते हैं, उनके उत्थान व पुनर्वास के लिये केंद्र-राज्य सरकारों को मिलकर काम करना चाहिए। शारीरिक दृष्टि से सक्षम लोगों को व्यावसायिक कौशल से लाभान्वित किया जाए ताकि वे समाज मंे सम्मानजनक जीवन जी सकें। यह भी है कि समाज की करुणा को भुनाने के लिये माफिया बच्चों-विकलांगों तथा महिलाओं का अपहरण करके सुनियोजित तरीके से भीख मंगवाते हैं। कोशिश हो कि भीख मांगना व्यवसाय न बने। हर साल देश में चालीस हजार बच्चों का अपहरण करके उन्हें भीख मांगने और अन्य आपराधिक गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके इनके गढ़ों का सफाया हो।