सम्पादकीय

भीख, आजादी और पंगा बाई

Gulabi
16 Nov 2021 5:00 AM GMT
भीख, आजादी और पंगा बाई
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‘तेल देखो, तेल की धार देखो’ मुहावरे का शाब्दिक अर्थ चाहे कुछ भी हो, उसका मर्म समझने वाले जानते हैं कि
'तेल देखो, तेल की धार देखो' मुहावरे का शाब्दिक अर्थ चाहे कुछ भी हो, उसका मर्म समझने वाले जानते हैं कि तेल ज़रूरी है, तेली नहीं। तेली समय के साथ बदलते रहते हैं जबकि तेल की धार समय के साथ बनी रहती है। ऐसे में आदमी को तेल की धार देखने का हुनर आना चाहिए। जो तेल की धार देखने का हुनर नहीं सीखते, वे तेल में डूब के मर जाते हैं या कोल्हू के बैल बने रहते हैं। जो लोग तेल की धार देखने में माहिर होते हैं, वे हमेशा तेलियों के साथ खड़े पाए जाते हैं। उन्हें पता होता है कि भले ही तेली बदलते रहें, कोल्हू तो ़कायम रहेगा। इसीलिए तेली बदलते ही वे तोते की तरह पुराने तेली से आंखें फेर लेते हैं। जो अपने उसूलों के साथ मक्खी की तरह चिपके रहते हैं, वे ताउम्र कोल्हू के बैल बने रहते हैं। जबकि तेल की धार देखने वाले चिकनाई में सदा डूबे रहने के बावजूद कभी तेल में डूबते नहीं। उन्हें मालूम होता है कि अपने स्वार्थों को साधने की आज़ादी कौन से तेली के साथ मिलेगी।
अब भले ही देश को आज़ादी सात दशक पहले मिली थी, लेकिन ऐसे लोगों का तेल उनकी ज़रूरत के मुताबिक हर तेली के साथ चढ़ता रहता है। अंधभक्तों को लगता है कि देश को आज़ादी 2014 में नसीब हो पाई थी। जबकि पहली आज़ादी तो उस ़िफल्म अभिनेत्री की तरह थी, जिसे बिना ऑडीशन ़िफल्म में काम मिल जाता है या फिर जिसे बिना मेकअप के ऑफ स्क्रीन देखने पर कोई नोटिस नहीं करता। अब बॉलीवुड ़िफल्म मणिकर्णिका में लक्ष्मी बाई की भूमिका निभाने वाली पंगा बाई को देखिए, जो हमेशा लाइमलाइट में बने रहना चाहती है। असल जि़ंदगी में भी लकड़ी के घोड़े पर सवार होकर दोनों हाथों से गत्ते की तलवार भांजने वाली इस बाई को आज़ादी का मतलब तभी समझ में आया, जब उसने अपनी ज़रूरत के मुताबिक नए तेली के तेल की धार साध ली। लेकिन उसने यह नहीं सोचा कि लाइट फूहड़ता नहीं छिपा सकती। लाइट वही दिखाती है, जो वास्तव में होता है। अगर घूरे के ढेर को लाइट में लाना है तो कम से कम पैकिंग अच्छी होनी चाहिए। कहते हैं जगत में आदमी वही देखता है, जो वह देखना चाहता है। पंगा बाई को पहला नेशनल एवॉर्ड ़फैशन ़िफल्म के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस श्रेणी में मिला था।
था तो यह नेशनल एवॉर्ड, पर था तो सपोर्टिंग ही। पंगा बाई को 2014 में बेस्ट एक्ट्रेस का पहला नेशनल एवॉर्ड मिलने के बाद अब तक तीन ़िफल्मों के लिए ऐसे दो एवॉर्ड और मिल चुके हैं। इस तरह उसकी आज़ादी 2014 में कऩ्फर्म हुई थी। साल 2021 में दो ़िफल्मों के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल एवॉर्ड मिलने के बाद भले ही उसकी अपनी चेतना और विवेक सोए पड़े हों, लेकिन अब उसने देश को चेतना और विवेक मुक्त घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं, उसे पद्मश्री मिलने के बाद सिंधु घाटी में दफन देश की सभ्यता अब जीवंत हो उठी है। हो सकता है अगर केंद्र सरकार पद्मश्री की तरह पंगा बाई पर भारत रत्न पुरस्कार चढ़ा दे तो भारत विश्वगुरू से पदोन्नत होकर ब्रह्मंडगुरू बन जाए। यह तो शुक्र है राम कृपा बनी रही और भिखमंगों ने भारतीय सभ्यता का अंतिम संस्कार नहीं किया। वरना बतोले बाबा क्या खेलते? अभी तो उन्होंने खेल-खेल में भारत को विश्वगुरू ही बनाया है। अगर कहीं वह गंभीर हो उठे तो सात लोकों में देश की जय-जयकार होने लगेगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि पंगा बाई का 1857 के संघर्ष पर शोध भारत पर किए गए उसी विस्तृत अनुसंधान का हिस्सा है, जिसमें प्रधान सेवक ने हवा से पानी 'शक' करने का फार्मूला ढूंढ निकाला है या फिर दक्षिणपंथी महाभारत पढ़ते हुए टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करने की तकनीक खोजने में सफल रहे थे।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
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