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चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर बात किस मुद्दे पर बिगड़ी, इस बार में कई कयास लगाए गए हैँ
By NI Editorial
अन्ना आंदोलन के दिनों में कांग्रेस की प्रतिक्रिया जैसी बिखरी और दिशाहीन नजर आई, उससे यह और साफ हो गया कि पार्टी किसी वैचारिक हमले का सामना करने में अक्षम है। अगर उदयपुर में पार्टी नेता इसके कारणों और समाधान पर सोच पाए, तो वहां से पार्टी के पुनर्उदय की शुरुआत हो सकती है।
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर बात किस मुद्दे पर बिगड़ी, इस बार में कई कयास लगाए गए हैँ। संभवतः किशोर की महत्त्वाकांक्षा और कांग्रेस नेतृत्व की नजर में उनकी उपयोगिता के बीच तालमेल नहीं बैठ पाया। बहरहाल, इसके पहले प्रशांत किशोर ने लगभग 600 स्लाइड्स के जरिए कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी की कमियां बताईं और सुधार के उपाय भी सुझाए। इस बारे में मीडिया में जो जानकारी आई है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि किशोर के प्रेजेंटेशन के एक बड़े हिस्से में दम है। अब कांग्रेस के नेता 13 से 15 मई तक राजस्थान के उदयपुर में नव संकल्प चिंतन शिविर संभवतः इन बिंदुओं पर विचार करेंगे। उसके बाद शायद पार्टी के पुनरुद्धार का 'नव संकल्प' लिया जाएगा। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के पहले कांग्रेस नेताओं को यह आत्म-चिंतन जरूर करना चाहिए कि आज देश का कोई बड़ा तबका कांग्रेस के साथ दिली लगाव महसूस क्यों नहीं करता है? एक समय कांग्रेस और उसके नेता देश के लोगों के मन पर राज करते थे। तब देश पर भी पार्टी का राज था। लेकिन ये कड़ी आखिर कहां और क्यों टूटी?
कांग्रेस नेता सचमुच इसकी पड़ताल करें, तो स्वंय उन्हें राजनीति के प्रति अपने संपूर्ण नजरिए में परिवर्तन की जरूरत महसूस होगी। सरकार चलाना सिर्फ प्रबंधकीय कौशल का काम नहीं है। राजनीति असल में लोगों की कल्पनाशीलता को आकर्षित करने, उनकी भावनाओं से तालमेल बनाने, और उनमें बेहतर भविष्य का सपना जगाने की कला है। जबकि इंदिरा गांधी के बाद के दौर में कांग्रेस इस जमीन पर अस्तित्वहीन होती चली गई है। उसने अपने को टेक्नोक्रेटिक पार्टी बना लिया है। इसलिए ये छवि मजबूत होती गई है कि कांग्रेस दरअसल अपना हित साधने वाले नेताओं का यह गुट है, जो मुमकिन है कि अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में काबिल हो, लेकिन जो किसी बड़े उद्देश्य या व्यापक जन हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। अन्ना आंदोलन के दिनों में कांग्रेस की प्रतिक्रिया जैसी बिखरी और दिशाहीन नजर आई, उससे यह और साफ हो गया कि पार्टी किसी वैचारिक हमले का सामना करने में अक्षम है। अगर उदयपुर में पार्टी नेता इसके कारणों और समाधान पर सोच पाए, तो वहां से पार्टी के पुनर्उदय की शुरुआत हो सकती है। वरना, गिरावट की रफ्तार और तेज होती चली जाएगी।
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