सम्पादकीय

तनिष्क के विज्ञापन का विरोध करने से पहले ये पढ़ लीजिए, कोविड का प्रदूषित हवा के साथ क्‍या संबंध है?

Gulabi
11 Nov 2020 1:11 PM GMT
तनिष्क के विज्ञापन का विरोध करने से पहले ये पढ़ लीजिए, कोविड का प्रदूषित हवा के साथ क्‍या संबंध है?
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तनिष्क के विज्ञापन का विरोध कर ट्रोल किया जा रहा है, दबाव बनाया जा रहा है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिना भूमिका बांधे मैं सीधे मुद्दे पर आती हूं. अभी ढंग से एक महीना भी नहीं बीता है कि तनिष्क को दोबारा अपना दूसरा विज्ञापन वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा है क्‍योंकि सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन के लिए उन्‍हें फिर से दिलोजान से कोसा जा रहा है, ट्रोल किया जा रहा है, दबाव बनाया जा रहा है.

आखिर उस विज्ञापन में ऐसा क्‍या है कि लोगों की भावनाएं फिर से आहत हो गई हैं. बड़ा मामूली सा विज्ञापन है, जो कह रहा है कि ये दिवाली बिना पटाखों के ढेर सारी रौशनी, दियों, मिठाई के साथ और अपने प्रियजनों के बीच मनाएं. सुंदर कपड़े पहनें, सजें, दिए जलाएं, मुंह मीठा करें, खुशियां मनाएं. बस इतना ही. विज्ञापन कुछ खास क्रिएटिव भी नहीं है. बस स्‍क्रीन पर एक-एक कर कुछ सेलिब्रिटी आते हैं और बिना शोर, पटाखों के सिर्फ रौशनी वाली दिवाली मनाने की बात कहते हैं.

लोगों को दिक्‍कत इस बात से है कि हम पटाखे क्‍यों न जलाएं. लोगों ने इस पर ऐसे प्रतिक्रिया की, मानो ये हिंदू धर्म और हिंदू त्‍योहार पर हमला हो. जबकि बात सिर्फ इस दिवाली पटाखे न जलाने की ही हो रही है.

छोडि़ए इस विज्ञापन की बात, ट्रोलर्स की बात, विरोधियों की बात और विज्ञापन वापस लिए जाने की बात. हम कुछ और बात करते हैं. आखिर में आप खुद ही तय करिएगा कि इन बातों का आपस में कोई कनेक्‍ट है या नहीं.

1- इस साल जनवरी से पूरी दुनिया में फैली कोविड महामारी में अब तक विश्‍व में तकरीबन 13 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

2- भारत में अब तक एक लाख, 27 हजार लोग कोविड की भेंट चढ़ चुके हैं.

3- भारत में कोविड का शिकार होने वाले लोगों की संख्‍या रोज बढ़ रही है. आज सुबह तक के आं‍कड़ों के मुताबिक भारत में 85 लाख, 9 हजार कोविड केसेज हो चुके हैं.

4- इस शनिवार को अकेले देश की राजधानी में कोविड के 6,953 और रविवार को 7,000 नए केसेज दर्ज हुए. राजधानी में अब तक 7,000 लोगों की कोविड से मौत हो चुकी है.

5- आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) ने वायु प्रदूषण के बढ़ते स्‍तर को देखते हुए लोगों से घरों से बाहर न निकलने की अपील की है. देश और खासतौर पर राजधानी की हवा इस वक्‍त खतरे के लाल निशान को पार चुकी है.

6- अमेरिका के 3,000 से ज्‍यादा शहरों में हुआ एक नया अध्‍ययन यह कह रहा है कि जिन शहरों की हवा प्रदूषित है और जहां के लोग लंबे समय तक खराब हवा में सांस लेते रहे हैं, वहां कोविड से होने वाली मौतों की संख्‍या ज्‍यादा है.

7- विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की मेडिकल एक्‍सपर्ट डॉ. मारिया नीरा कहती हैं कि चूंकि कोविड का वायरस सीधे हमारे फेफड़ों पर हमला करता है, इसलिए वायु प्रदूषण का कोविड पर सीधा असर पड़ रहा है. दुनिया के 91 देशों में हुए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के सर्वे में ये बात सामने आई है कि प्रदूषित हवा वाले देशों में कोविड से होने वाली मौतों की संख्‍या ज्‍यादा है.

8- ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वेवसाइट ऑक्‍सफोर्ड एकेडमिक तमा अध्‍ययनों और आंकड़ों के हवाले से कह रही है कि कोविड महामारी का वायु प्रदूषण के साथ सीधा रिश्‍ता है. यदि हवा में पीएम 2.5 (पर्टिकुलेट मैटर 2.5) की मात्रा ज्‍यादा हो तो कोविड वायरस के हवा में लंबे समय तक बने रहने का खतरा बढ़ जाता है. इस वेबसाइट पर बाकायदे वो सारे ग्राफ और आंकड़े दिए गए हैं, जो बता रहे हैं कि हवा में पर क्‍यूबिक मीटर पीएम 2.5 के प्रति माइक्रोग्राम की बढ़त का कोविड से होने वाली मौतों के साथ कैसे सीधा रिश्‍ता है. जैसे-जैसे पीएम 2.5 की मात्रा बढ़ती है, हमारे फेफड़ों पर खतरा बढ़ता जाता है.

उन्‍होंने विज्ञान की टर्मिनाेलॉजी का इस्‍तेमाल करते हुए जो बातें समझाई हैं, उसका सरल भाषा में अर्थ ये है कि जैसे-जैसे पीएम 2.5 का स्‍तर हवा में बढ़ेगा, कोविड के केस बढ़ेंगे और रिकवरी का ग्राफ कम होता जाएगा.

9- इस समय देश की राजधानी समेत कई हिस्‍सों में ये स्‍तर खतरे के निशान से ऊपर चल रहा है.

10- इस खतरे को देखते हुए दिल्‍ली सरकार ने राजधानी में पटाखों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है.

अब इन 10 तथ्‍यों की रौशनी में देखिए उस विज्ञापन को, जो कह रहा है कि इस दिवाली को सिर्फ दियों से रौशन करें और फिर अपने दिल पर हाथ रखिए और सोचिए, ऐसा क्‍या गलत संदेश था उस विज्ञापन में, जो उन्‍हें मजबूर होकर उसे वापस लेना पड़ा.

सोशल मीडिया के शोर और ट्रोलर्स की भीड़ में शामिल होने से पहले खुद से सवाल पूछिए. तर्क करिए, विज्ञान की नजर से देखिए और अपने फेफड़ों के काम करने के तरीेके को समझिए. इस स्‍टोरी के साथ ऑक्‍सफोर्ड एकेडमिक और विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के जो हायपरलिंक दिए हैं, उन पर जाकर और विस्‍तार से पढि़ए और फिर खुद तय करिए कि उस विज्ञापन का विरोध क्‍यों करना चाहिए. ये आपको खुद ही तय करना है कि आप तथ्‍य के साथ हैं, विज्ञान के साथ हैं, अपने और अपने प्रियजनों के स्‍वास्‍थ्‍य के साथ हैं या नहीं

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