सम्पादकीय

आजादी से पहले : महात्मा गांधी की कस्तूरबा, सादगी पसंद आम भारतीय नारी की दिलचस्प कहानी

Neha Dani
22 Feb 2022 1:39 AM GMT
आजादी से पहले : महात्मा गांधी की कस्तूरबा, सादगी पसंद आम भारतीय नारी की दिलचस्प कहानी
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कि बा रामधुन सुनते-सुनते राम में लीन हो गईं। अगले दिन बा का शरीर अग्नि को समर्पित हो गया।

वर्ष 1944 की 22 फरवरी को कस्तूरबा गांधी का निधन आगा खान महल में नजरबंदी के दौरान हुआ था। कैसी थीं, वह? दुबला-पतला शरीर, ठिगना कद, गोल चेहरा, माथे पर सुहाग का प्रतीक चिह्न लाल टीका और सुघड़ता से पहनी हुई सूती साड़ी। बा पोरबंदर के धनाढ्य व्यवसायी गोकुलदास माकन की पुत्री, पोरबंदर और राजकोट के दीवान करमचंद गांधी की पुत्र-वधू और बैरिस्टर मोहनदास गांधी की पत्नी थीं।

उनके मायके और फिर ससुराल में किसी तरह की कमी न थी। बैरिस्टर गांधी के दक्षिण-अफ्रीका प्रवास के दौरान बा के अनेक छायाचित्र हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि पति-पत्नी का जीवन वैभव संपन्न था। फिर बा इतनी सादगी पसंद आम भारतीय नारी कब और कैसे हो गईं? चार पुत्रों की बा और एक दर्जन पौत्र-पौत्रियों की मोटी बा कब सारे हिंदुस्तानियों की बा बन गई? यह दिलचस्प कहानी है।
जब बैरिस्टर गांधी, आम जनों के गांधी भाई हो गए और 1899 में दक्षिण-अफ्रीका से भारत वापस आने लगे, तो लोगों ने उन्हें अनेकानेक उपहार दिए। इनमें से कुछ स्वर्ण आभूषण बा को भी मिले। गांधी भाई इन उपहारों का बोझ लिए रात भर सो न सके और सुबह उन्होंने पहले अपने पुत्रों और फिर पत्नी को निर्णय सुनाया कि इन सभी उपहारों का उपयोग आम जनता के लिए हो, इसलिए इन्हें मैं सार्वजनिक ट्रस्ट को सौंपना चाहता हूं।
पुत्र तैयार हो गए, पर बा को तो अपनी पुत्र-वधुओं को देने के लिए आभूषण चाहिए थे, वह आसानी से तैयार नहीं हो रही थीं। गांधी भाई और उनके पुत्र बा के सामने अपने तर्क देते और बा अश्रुधारा बहाते हुए उनका प्रतिकार करतीं। अंततः परिवार की इच्छा के आगे वह नतमस्तक हुईं और अपरिग्रह जीवन बिताने का संकल्प पति-पत्नी ने लिया। बैरिस्टर गांधी भारत आ गए थे। वह पहले महात्मा कहलाए और फिर बापू हो गए।
पति का साथ निभाते-निभाते कस्तूर बाई भी सारे हिंदुस्तानियों की बा बन गईं। ममतामयी मां की रसोई के दरवाजे आश्रमवासियों और मेहमानों के लिए सदैव खुले रहते। बापू ने हरिजन उद्धार के अपने सामाजिक संकल्प के लिए प्रतिज्ञा ले ली थी कि उन मंदिरों में नहीं जाऊंगा, जिसके दरवाजे अछूतों के लिए बंद हैं। मार्च, 1938 के अंतिम सप्ताह बा, महादेव देसाई की पत्नी दुर्गा बहन व एक अन्य स्त्री बेला बहन के साथ पुरी के जगन्नाथ स्वामी के मंदिर गईं।
गांधीजी को जब इस बात का पता चला, तो वह बहुत दुखी हुए और एक दिन के उपवास व मौनव्रत का ऐलान कर प्रायश्चित किया। बा ने भी सरल हृदय से अपनी भूल स्वीकार करते हुए उपवास किया और गांधीजी ने भी उनकी क्षमा याचना से यह माना कि बा ने ऐसा करके अपने 55 वर्ष के वैवाहिक जीवन को और पवित्र बना दिया है। बा के जीवन के अंतिम वर्ष आगा खां महल, पूना में नजरबंदी में व्यतीत हुए।
पुत्रवत महादेव भाई देसाई का भी निधन हो गया। पहले से अस्वस्थ बा को मलेरिया और निमोनिया हो गया। बा की दिनों-दिन बिगड़ती हालत, उनका दारुण कष्ट देखकर बापू भी निराश हो गए और उन्होंने बा को राम नाम का मंत्र जपते रहने की सलाह दी। चिकित्सकों ने पेनिसिलीन इंजेक्शन देने की सलाह दी, पर फौजी अस्पताल में भी वह अनुपलब्ध था। 21 फरवरी को जब पेनिसिलीन इंजेक्शन प्राप्त हुआ, तब बा मृत्यु-शैया पर थीं और ऐसे में गांधीजी दुविधा में थे। वह उन्हें यह इंजेक्शन बार-बार देने के पक्ष में नहीं थे।
बा से मिलने उनके तीनों पुत्र हरिलाल, रामदास और देवदास आए। सभी से बा स्नेह से मिलीं और भजन सुनाए। 22 फरवरी को बा ने बापू को बुलवाया, थोड़ी देर के लिए बा बैठीं और फिर बापू की गोदी में सिर रखकर लेट गईं। एक बार फिर उठने की कोशिश की, लेकिन बापू ने मना कर दिया और सायंकाल सात बजकर पैतीस मिनट पर बा के प्राण, गीता के श्लोक सुनते हुए, ईश्वर में विलीन हो गए। डॉ. सुशीला नैयर ने पेनिसिलीन लगाने इंजेक्शन को उबालने रखा ही था कि बा रामधुन सुनते-सुनते राम में लीन हो गईं। अगले दिन बा का शरीर अग्नि को समर्पित हो गया।

सोर्स: अमर उजाला


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