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विरह की स्थिति यदि समय रहते न संभाली जाए तो बीमारी में बदल सकती है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
विरह की स्थिति यदि समय रहते न संभाली जाए तो बीमारी में बदल सकती है। विवाहित लोगों के बीच विरह की घटनाएं सुख भी देती हैं और दुख भी, लेकिन यदि दोनों के बीच तलाक हो जाए तो स्मृतियां हटाने पर भी नहीं हटतीं। ऐसे जोड़ों को लोग समझाते हैं कि पुरानी बातें भूल जाओ, अब नया शुरू करो। लेकिन, कहा गया है- 'जा तन लागे वो तन जाने इस रोग की माया।' विरह का रोग स्मृति में उतरता है और कुछ बातें भुलाए नहीं भूलतीं।
तब क्या किया जाए? दरअसल इसे समझना यूं होगा कि पति-पत्नी का रिश्ता यदि बहुत अधिक शरीर पर टिका है तो टूटने की आशंका भी बनी रहेगी। फिर, आजकल तलाक आम घटना हो गई है। इसलिए ये रिश्ता शरीर से आगे ले जाकर आत्मा पर टिकाना होगा और इसके लिए मेडिटेशन का सहारा लिया जाए। जीवन में तलाक जैसी घटना की स्मृतियों से, विरह की पीड़ा से मुक्त होने के लिए ध्यान में उतरना पड़ेगा।
ध्यान एक सहारा है, औषधि है, क्योंकि इसमें मन पर काम होता है। स्मृतियों को संभालने का काम हमारा मन ही करता है। तो मेडिटेशन से मन पर नियंत्रण करिए। स्मृतियों से मुक्त होंगे और जीवन में जो कुछ भी नया आने वाला है, उसके लिए बहुत स्फूर्त और प्रसन्न रहेंगे। वरना पुरानी यादें इतना थका देंगी कि नए की ओर कदम उठाना भी मुश्किल हो जाएगा।
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