सम्पादकीय

ममता बनर्जी हों या केसीआर, 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट नहीं कर पाएंगे

Gulabi
22 Feb 2022 5:05 AM GMT
ममता बनर्जी हों या केसीआर, 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट नहीं कर पाएंगे
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ममता बनर्जी ने हाल ही में के. चंद्रशेखर राव को फोन पर डोसा खाने की इच्छा जाहिर की
अजय झा.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने हाल ही में के. चंद्रशेखर राव (K. Chandrashekar Rao) को फोन पर डोसा खाने की इच्छा जाहिर की. चंद्रशेखर राव ने उन्हें हैदराबाद आने का न्योता दे दिया. इससे पहले की दीदी हैदराबाद आतीं, चद्रशेखर राव का मन पाव-भाजी खाने को मचलने लगा. चंद्रशेखर राव ने उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को फोन किया और रविवार को वह मुंबई पहुंच गए. अब जब मुंबई गए तो फिर शरद पवार से मिलना भी शिष्टाचार के नाते जरूरी हो जाता है. पवार किसी को ना नहीं कहते और किसी को हां भी नहीं कहते हैं. पवार उस पुराने हकीम की तरह हैं जो नब्ज टटोलकर बीमारी का पता लगा लेते हैं.
कुछ समय पहले उन्होंने ऐसे ही ममता बनर्जी की नब्ज भी टटोली थी और उनकी बीमारी का एक अचूक इलाज बताया कि कांग्रेस पार्टी के बिना विपक्ष का राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबन्धन नहीं हो सकता. उसके कुछ ही समय पहले पवार ने कांग्रेस पार्टी की बीमारी का भी इलाज बता दिया था कि वह पुराने जमींदार की तरह सोचना छोड़ कर वतर्मान की हकीकत से समझौता कर ले. ना तो दीदी को और ना ही गांधी परिवार को पवार का नुस्खा भाया और विपक्षी गठबंधन बनने से पहले ही बिखर गया.
बिना कांग्रेस पार्टी के विपक्षी एकता संभव नहीं है
अब पवार ने चंद्रशेखर राव को हाजमे का क्या इलाज बताया यह तो पता नहीं है, पर अगर उनकी बात इन नेताओं ने नहीं मानी तो फिर इतना तो तय है कि डोसा तो या पाव-भाजी, कितना भी स्वादिष्ट क्यों ना हो, खाने वाले को हाजमे की बीमारी जरूर हो जाएगी. अगले महीने, यानि विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, नई दिल्ली में गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के बैठक की बात चल रही है. अभी किसी को पता नहीं कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उस बैठक में शामिल होंगे, अगर नहीं हुए तो फिर सभी मुख्यमंत्रियों को दिल्ली के मशहूर छोले-भठूरे से वंचित रहना पड़ेगा.
दीदी ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को फोन नहीं किया. अगर करतीं तो पटनायक शायद उन्हें भुवनेश्वर आने का न्योता दे देते और उनके सामने रसगुल्ला परोसते जो ममता बनर्जी को हजम नहीं होता. रसगुल्ला की शुरुआत ओडिशा में हुई या बंगाल में, इस पर चला पुराना विवाद अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है. यानि दीदी पटनायक को फोन नहीं करेंगी, शायद यह काम चंद्रशेखर राव को ही करना पड़े.
ऐसा भी नहीं है कि कोलकाता में डोसा नहीं मिलता या फिर हैदराबाद में पाव-भाजी नहीं मिलती. खाना तो एक बहाना है, इरादा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना है. पर समस्या यही है कि, जैसा कि पवार ने कहा था, बिना कांग्रेस पार्टी के विपक्षी एकता संभव नहीं है और कांग्रेस पार्टी के बिना विपक्ष एकजुट हो कर मोदी के सामने 2024 के लोकसभा चुनाव में चुनौती पेश नहीं कर पाएगा. रविवार को चंद्रशेखर राव मुंबई पहुंचे और अगले ही दिन कांग्रेस पार्टी ने उन पर बीजेपी से कांग्रेस पार्टी को खत्म करने की सुपारी लेने का आरोप लगा दिया. यह आरोप सही नहीं है पर तर्कसंगत जरूर है.
तेलंगाना में बढ़ती बीजेपी की ताकत केसीआर के लिए खतरे की घंटी
कांग्रेस पार्टी ने कहा कि ममता बनर्जी हों या चंद्रशेखर राव, दोनों यूपीए को तोड़ने की कोशिश ही कर रहे हैं और सिर्फ यूपीए के घटक दलों के नेताओं से ही बात कर रहे हैं. अगर यूपीए टूटा तो उसका सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा, जो सोलह आने सच है. परन्तु चंद्रशेखर राव पर यह आरोप लगाना कि उन्होंने बीजेपी से सुपारी ली है, कतई सही नहीं है. तेलंगाना की एक पृथक राज्य के रूप में स्थापना 2 जून 2014 को हुई और तब से चन्द्रशेखर राव प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. अगले सात वर्षों तक वह ना तो बीजेपी के साथ और ना ही कांग्रेस पार्टी के साथ दिखे, तटस्थ रहे. शायद ममता बनर्जी के सिवा कोई विपक्ष का मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से पंगा नहीं लेना चाहता है. पर चंद्रशेखर राव की अब मजबूरी हो गयी है कि वह बीजेपी और मोदी के खिलाफ बोलें और दिखें. फ़िलहाल यह बताना संभव नहीं है कि यकायक वह विपक्षी एकता की बात क्यों करने लगे हैं और क्या वह भी ममता बनर्जी की ही तरह प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं, पर इतना तय है कि उन्हें बीजेपी से डर लगने लगा है.
तेलंगाना में 2023 के दिसम्बर महीने में विधानसभा चुनाव होगा. पिछले सात वर्षों में तेलंगाना की राजनीति में अमूल परिवर्तन आया है. चंद्रशेखर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TSR) का इस बार मुकाबला कांग्रेस पार्टी या उनकी पुरानी पार्टी तेलुगु देशम पार्टी से नहीं बल्कि बीजेपी से होगा. बीजेपी दिनों दिन तेलंगाना में अपने पैर पसार रही है और प्रदेश की जनता के बीच लोकप्रिय होती जा रही है. हैदराबाद का नगर निगम चुनाव हो या अन्य शहरों में, बीजेपी को लगातार जबरदस्त सफलता मिल रही है. अभी हाल ही में हुज़ुराबाद विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने तेलंगाना राष्ट्र समिति को चरों खाने चित कर दिया था और चुनाव में लगभग 24,000 वोटों से जीत हासिल की थी.
यह चंद्रशेखर राव के लिए एक खतरे की घंटी जैसी थी. बीजेपी से लोहा लेने के लिए उन्हें अब अन्य विपक्षी दलों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी, और केंद्र की राजनीति में सक्रिय होना पड़ेगा, ताकि प्रदेश की जनता उन्हें एक भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखे और उनका समर्थन ठीक उसी तरह करे जैसे कि गुजरात की जनता ने मोदी को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार समर्थन दिया था जिस कारण ही मोदी देश के प्रधानमंत्री बन पाए थे.
कांग्रेस के लिए राहुल गांधी पहले
पर समस्या वही है कि ममता बनर्जी हों या फिर चंद्रशेखर राव, कांग्रेस की अनदेखी करके 2024 में बीजेपी को हराना संभव नहीं होगा. उन्हें समझना होगा कि कांग्रेस पार्टी एक हाथी की तरह है, और कहते हैं कि मरा हाथी भी सवा लाख का. कांग्रेस पार्टी काफी कमजोर हो चुकी है, मार्च के महीने में जब विधानसभा चुनावों का परिणाम आएगा तो कांग्रेस पार्टी शायद और भी कमजोर हो चुकी होगी, पर कांग्रेस अभी भी भारत की एकलौती ऐसी पार्टी है जिसका देश के हर कोने में उसका झंडा उठाने वाले मिल ही जाएंगे. अभी भी बीजेपी इस मामले में कांग्रेस से थोड़ा पीछे ही है.
ममता बनर्जी ने तो पवार द्वारा दिए गए हाजमे की चूरन खाने से मना कर दिया, और उनकी अब सजा भी भुगतती दिख रही हैं. देखना होगा कि क्या चंद्रशेखर राव उस हाजमे के चूरन को खाएंगे? उनके समक्ष समस्या है कि तेलंगाना चुनाव में उन्हें बीजेपी और कांग्रेस पार्टी दोनों से जीत हासिल करने के लिए उलझना होगा. दोहरी राजनीति शायद वह करना नहीं चाहते. उन्हें पता है कि दोहरी राजनीति के कारण ही कांग्रेस पार्टी की यह स्थिति हो गयी है.
केरल में वामदलों का विरोध और लोकसभा और पश्चिम बंगाल चुनाव में वामदलों का समर्थन, किसी को हजम नहीं हुआ. चंद्रशेखर राव को और अन्य विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को आने वाले दिनों में फैसला लेना ही पड़ेगा कि कैसे बिना कांग्रेस पार्टी के केंद्र में गैर–बीजेपी बनेगी. और कांग्रेस पार्टी तब तक उनके साथ नहीं जुड़ेगी जब तक वह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में समर्थन देने का फैसला नहीं करते. इस स्थिति में शायद ही विपक्ष की खिचड़ी पके.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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