सम्पादकीय

सावधान मुसाफिर, नाव में है तूफान; समुद्र तट पर बनी गगनचुंबी और संगमरमरी इमारतों को बहुत खतरा

Rani Sahu
27 Sep 2021 10:04 AM GMT
सावधान मुसाफिर, नाव में है तूफान; समुद्र तट पर बनी गगनचुंबी और संगमरमरी इमारतों को बहुत खतरा
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प्रकृति का तर्क सम्मत वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने आशंका अभिव्यक्त की है

जयप्रकाश चौकसे। प्रकृति का तर्क सम्मत वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने आशंका अभिव्यक्त की है कि अगले तीन दशक में समुद्र तट के आसपास बसे महानगर और बस्तियां, समुद्र में तूफान से नष्ट हो जाएंगी। विश्व की जलवायु में मात्र 1 डिग्री तापमान बढ़ने के कारण यह विनाश संभव है। पंचांग जानने वाले कुछ लोगों ने समय-समय पर इस तरह की भविष्यवाणियां की हैं कि विनाश फलां वर्ष होगा। इस बार विनाश की आशंका वैज्ञानिकों ने गहरा शोध करके दी है। अतः इसे गंभीरता से लिया जाना आवश्यक है।

मुंबई, कोलकाता, न्यूयॉर्क, चेन्नई इत्यादि महानगर समुद्र तट पर बसे हैं। मुंबई का कुछ भाग समुद्र में बड़े पत्थर डालकर सपाट बनाया गया है। समुद्र सीमा का उल्लंघन किया गया है। समुद्र स्वयं ही अदालत है और वह अदालत अपना अधिकार ले सकती है। उसकी एक करवट ही बहुत है कहर ढाने के लिए। नगर के कुएं पाटकर बस्तियों में बदल दिए गए हैं। श्याम बेनेगल की फिल्म 'शाबाश अब्बा' में एक कुआं बनाने के लिए सहकारिता बैंक से कर्ज पाने को लेकर रिश्वत देने का किस्सा है।

दरअसल, कुआं बनाने का काम हुआ ही नहीं परंतु उसके निर्माण का पूरा ब्यौरा खातों में दर्ज है। अत: बोमन ईरानी अभिनीत पात्र उस कुएं की चोरी की रपट दर्ज करता है। यह एक अत्यंत मनोरंजक फिल्म रही। खबर यह भी है कि 'गुलाब' नामक समुद्री तूफान अब आंध्र प्रदेश में टकराने ही वाला है। बहुत सी बस्तियां सुषुप्त अवस्था में पड़े ज्वालामुखियों पर बनी हुई हैं। हमने धरती को कितना लूटा है, इसका विवरण भी एक किताब में है।
'टाइटैनिक' के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार जेम्स कैमरून की फिल्म 'अवतार' में प्रस्तुत किया गया है कि एक दल, दूसरे गोले पर पहुंच गया है। पृथ्वी से हजारों मील की दूरी पर उसी स्थान के वृक्ष मशीनों द्वारा उखाड़े जा रहे हैं। दल की एक महिला सदस्य कहती है किसी स्थान पर काटे जा रहे वृक्षों का दर्द हजारों मील दूर धरती पर लगे वृक्षों को भी हो रहा होगा। सभी पर्वत, वृक्ष- नदियां एक-दूसरे के दर्द को महसूस करते हैं। परंतु मनुष्य अपने पड़ोसी तो दूर, अपने परिवार के सदस्य के दर्द से भी अनजान बना रहता है।
फिल्म 'केदारनाथ' में भी प्रकृति के तांडव का कुछ विवरण प्रस्तुत किया गया था। विज्ञान फंतासी फिल्मों में भी विनाश की आशंका को रेखांकित किया गया है। 'मैट्रिक्स' महत्वपूर्ण फिल्म है। इस विषय पर महाकाव्य भी लिखे गए हैं। पृथ्वी पर विनाश से बचने के लिए अनगिनत पौधे लगाए गए हैं। उनकी रक्षा के लिए लोहे से बने ट्री गार्ड लगाए जाते हैं। लेकिन कुछ ही समय में लोहे के बने ट्री गार्ड चोरी चले जाते हैं और कबाड़ियों को बेच दिए जाते हैं। यही माल इस्पात कारखाने में दूसरी बार पिघलाकर नया इस्पात बनाया जाता है।
कुछ लोगों की पाचन क्रिया बड़ी मजबूत है वे लोहा, इस्पात लकड़ी, जंगल, सूखी नदी कैसे हजम कर लेते हैं! कमाल है कि वे इतना सब खाने के बाद डकार भी नहीं लेते। गोया कि हमारे पास अभी कुछ समय है और उस सीमित समय में भी बहुत प्रयास किए जा सकते हैं। सारी जवाबदारी नागरिकों की है। व्यवस्थाओं के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। मनुष्य का गफलत में डूबे रहने का माद्दा इतना बड़ा है कि वह तूफान के आने के पहले शुतुरमुर्ग की तरह, रेत में अपना सिर छुपाकर समझता है कि तूफान गुजर गया है।
बहरहाल, समुद्र तट पर बनी गगनचुंबी संगमरमरी इमारतों को बहुत खतरा है। समुद्र तट की रेत में घरौंदा बनाने वाले मासूम मुतमइन हैं कि घरौंदे सपनों के मानिंद कायम रहते हैं। शोध करने वालों ने तीन दशक का समय दिया है। मानव इतिहास में तीन दशक, पलक झपकते ही बीत जाते हैं। अत: नागरिक इसी पल पौधे लगाएं, वृक्षों की रक्षा के उपाय करें। जिंदगी के ख्वाब में सब कुछ सच है मेरे हमसफर, हमराही और हमजाद।


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