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- सतर्क रहे सरकार
नवभारत टाइम्स; एक सप्ताह के अंदर दो दौर की देशव्यापी छापेमारी सहित 240 से ज्यादा सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद केंद्र सरकार ने पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके आठ सहायक संगठनों को पांच साल के लिए बैन कर दिया है। सरकार का दावा है कि इन संगठनों का स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और आईएसआईएस जैसे संगठनों से जुड़ाव रहा है और ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिंसा और आतंकी घटनाओं में शामिल रहे हैं। हालांकि ये संगठन आरोपों से इनकार करते हैं और बैन किए गए इन नौ संगठनों में से एक कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) ने फैसले को अदालत में चुनौती देने की बात भी कही है। बहरहाल, इस बैन से जुड़े कुछ अहम पहलू हैं, जिन पर विचार करना जरूरी है। पीएफआई खुद को एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन कहता है। अपने आनुषंगिक संगठनों के जरिए वह ऐसे बहुत सारे सामाजिक कार्यों को अंजाम देता है, जिन्हें सामान्य लोग नेक काम के रूप में देखते हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि संगठन के प्रभाव क्षेत्र में रहने वाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा उस पर लगे आरोपों को सहज ही स्वीकार न कर पाए।
हालांकि यह बात समझी जा सकती है कि इन संगठनों के खिलाफ चल रहे ज्यादातर मामले जांच प्रक्रिया के अधीन हैं इसलिए जांच एजेंसियों के पास जो सबूत होंगे भी, वे सारे के सारे सार्वजनिक नहीं किए जा सकते। इससे जांच प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। फिर भी यह ध्यान में रखना जरूरी है कि अगर आम लोगों के बीच इस संगठन के प्रति सहानुभूति की भावना किसी भी वजह से बनी रह गई तो उससे बैन लगाने का मकसद प्रभावित होगा।
इसी से जुड़ा एक पहलू यह है कि चूंकि इन संगठनों पर खास समुदाय के लोगों में कट्टरता फैलाने और अन्य धर्मों से जुड़े लोगों के खिलाफ नफरत की भावना भड़काने का आरोप है, इसलिए यह और जरूरी हो जाता है कि सरकार या सत्ता पक्ष से जुड़े अन्य संगठन इस मामले में खास तौर पर पाक-साफ नजर आएं। अगर इन संगठनों पर किसी भी रूप में धार्मिक पक्षपात करने या किसी धर्म विशेष के प्रति नफरत फैलाने की मुहिम से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में जुड़े होने के आरोप लगेंगे तो सरकार की ऐसी कार्रवाइयों का असर कम होगा।
अतीत में धर्म संसद जैसी घटनाएं हो चुकी हैं, इसलिए और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। तीसरी और आखिरी बात यह है कि अब तक ये संगठन खुले रूप में चल रहे थे तो इन पर नजर रखना आसान था। बैन होने के बाद बहुत संभव है कि इनसे जुड़े कुछ तत्व गोपनीय रूप से राष्ट्रविरोधी या आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश करें। वैसे भी अनुभव बताता है कि बैन करने मात्र से किसी संगठन का प्रभाव हमेशा के लिए खत्म नहीं हो जाता। जाहिर है, सरकार को आगे और ज्यादा सतर्कता से कदम बढ़ाने होंगे।