सम्पादकीय

अशांत जल में युद्धपोत

Gulabi Jagat
31 Aug 2022 5:57 AM GMT
अशांत जल में युद्धपोत
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राजनीतिक अस्थिरता व आर्थिक दिवालियेपन के कगार पर खड़े श्रीलंका के बंदरगाह पर चीनी जासूसी जहाज का रुकना चीन के खतरनाक साम्राज्यवादी मंसूबों को ही उजागर करता है। कह सकते हैं कि पहले ही संकट से गुजर रहे श्रीलंका की मुश्किलें ही इस चीनी कदम से बढ़ेंगी। कहने को तो चीनी दलील थी कि यह अनुसंधान के लिये तैनात जहाज है,लेकिन अत्याधुनिक सामरिक तकनीकों से लैस जहाज को भारतीय सीमा के निकट भेजना, चीन के खतरनाक मंसूबों पर सवाल उठाता है। चीन ने यह कोशिश ऐसे वक्त में की जब श्रीलंकाई सत्ताधीशों के कुशासन से तंग आ चुके लोगों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया था व पूर्व राष्ट्रपति देश से भाग रहे थे। राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाल रहे रानिल विक्रमसिंघे जब देश को पटरी पर लाने के लिये प्रयासरत थे तब चीन ने खुफिया जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर रुकने की अनुमति देने के लिये दबाव बनाया। इतना ही नहीं, भारत द्वारा इसका विरोध करने पर चीन ने भारत के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया। यहां तक कि चीनी राजदूत ने ट्वीट्स की एक शृंखला के जरिये आरोप लगाया कि भारत हमेशा से श्रीलंका विरोधी रहा है और श्रीलंका के उत्तरी पड़ोसी ने उस पर 17 बार आक्रमण किये हैं। कुल मिलाकर श्रीलंका में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने के लिये इतिहास की घटनाओं को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। दरअसल, चीन ने पाक जलडमरू मध्य के दोनों ओर प्राचीन व मध्यकालीन राज्यों से संबंधित स्थानीय झड़पों को श्रीलंका के खिलाफ युद्ध दिखाकर भारत विरोधी भावनाएं पैदा करने की कुत्सित कोशिश ही की। बाकायदा तथ्यों से खिलवाड़ कर श्रीलंका की सुरक्षा चिंताओं के लिये भारत को दोषी ठहराने का प्रयास किया। लेकिन भारत ने भी चीनी मंसूबों पर पानी फेरने के लिये कूटनीतिक प्रयासों को लगातार जारी रखा, जिसका परिणाम देखने में भी आया।
यह भारत के कूटनीतिक प्रयासों का ही परिणाम था कि श्रीलंका ने चीनी जहाज को कुछ शर्तों के साथ अपनी जल सीमा में रुकने की अनुमति दी। श्रीलंका ने चीन को तीन शर्तों के साथ यह अनुमति दी। पहला, जासूसी जहाज को अपनी स्वचालित पहचान प्रणाली को चालू रखना होगा। दूसरा, श्रीलंकाई जल सीमा में चीन को वैज्ञानिक अनुसंधान की अनुमति नहीं दी गई। तीसरे, किसी भी चीनी चालक दल को उतरने की अनुमति नहीं होगी। कह सकते हैं कि विषम परिस्थितियों में फंसे होने के बावजूद श्रीलंका ने भारतीय चिंताओं का ध्यान रखा। बल्कि इस दौरान भारत ने चीन की दुखती रग पर हाथ रखा और ताइवान के निकट समुद्र में उत्पन्न अशांत स्थिति का भी जिक्र किया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बाबत कहा भी है कि श्रीलंका को किसी दूसरे देश के एजेंडे को पूरा करने के लिये अवांछित दबाव में नहीं आना चाहिए। बहरहाल, हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी जहाज को लेकर यदि अमेरिका तक चिंता जता रहा है तो स्थिति की गंभीरता को भारत नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह बात किसी के गले नहीं उतरती कि चीन अपनी धरती से हजारों मील दूर हिंद महासागर में अनुसंधान को प्राथमिकता दे जबकि उसकी विस्तृत जल सीमा है और तमाम देशों से जल सीमा को लेकर विवाद जारी हैं। हकीकत यह है कि चीन जिसे हाई-टेक अनुसंधान पोत बता रहा है वास्तव में वह उसका जासूसी जहाज है, जिसकी कमान चीनी सेना के पास होती है। यह जहाज भारत की भीतरी सीमा तक जासूसी करने में सक्षम है। जाहिर बात है तमाम जासूसी उपकरणों से लैस जहाज में दो हजार से अधिक चीनी सवार हैं, जो कम से वैज्ञानिक तो नहीं हो सकते। ऐसे में युआन वांग-5 नामक जहाज को लेकर भारत की चिंताएं यू ही नहीं हैं। निश्चित तौर पर चीनी का यह मिशन भारत को हिंद महासागर में सामरिक रूप में नहीं, रणनीतिक रूप से भी चुनौती देने वाला है। भारतीय रणनीतिकारों को सोचना होगा कि पहले भारत से लगती थल सीमा में तनाव पैदा करने के बाद चीन भारत को दक्षिणी समुद्री सीमा पर भी चुनौती देने की कोशिश में है। समाधान यही है कि भारत खुद को सामरिक, कूटनीतिक व तकनीकी रूप से ताकतवर बनाये।
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