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- जंग का हासिल

Written by जनसत्ता: रूस-यूक्रेन युद्ध को चार महीने होने जा रहे हैं। लेकिन आए दिन जिस तरह के घटनाक्रम करवट ले रहे हैं, उससे लगता नहीं कि रूस जल्द ही लड़ाई रोकने के पक्ष में है। यूक्रेन भी तबाह भले हो गया हो, पर उसका मनोबल टूटा नहीं है, बल्कि वह बराबर की ताकत और जज्बे से पुतिन को चुनौती दे रहा है। उसके सैनिक जिस तरह मोर्चे पर डटे हैं, उससे रूसी जनरल भी कम परेशान नहीं हैं। हालांकि रूस के हमलों में रोजाना करीब एक हजार लोग हताहत हो रहे हैं। बमबारी और मिसाइल हमलों से युद्धग्रस्त इलाके खंडहरों में तब्दील होते जा रहे हैं।
रूस यूक्रेन के दक्षिणी तट और डोनबास सहित बीस फीसद हिस्से पर कब्जा कर लेने का दावा तो कर रहा है, लेकिन कीमत उसे भी कम नहीं चुकानी पड़ रही। विडंबना यह है कि दो देशों के इस शक्ति परीक्षण में जो गंभीर मानवीय संकट खड़े हो गए हैं, उन्हें लेकर अब शायद ही कहीं कोई चिंता दिख रही हो। यूक्रेन के भीतर तो खाने-पीने, दवा आदि का गंभीर संकट है ही, दुनिया के तमाम देश भी इस युद्ध की परोक्ष मार झेल रहे हैं। ऐसे में एक सवाल जो सबको परेशान कर रहा है, वह यही कि आखिर कब बंद होगा युद्ध?
इसमें संशय नहीं रह गया है कि यह संघर्ष अब नाक की लड़ाई बन चुका है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही दिन से जिस तरह का आक्रामक रवैया दिखा रहे हैं, उसे देख कर कौन कहेगा कि ये जंग जल्द खत्म हो जाएगी! बल्कि पुतिन तो परमाणु हमले की धमकी देकर अमेरिका और पश्चिमी देशों को चेताते रहे हैं। इसका मतलब साफ है। यूक्रेन की आड़ में रूस अमेरिका और पश्चिमी ताकतों को चुनौती दे रहा है। वरना रूस क्यों फिनलैंड, लिथुआनिया और एस्तोनिया जैसे देशों पर भी निशाना साधने की बातें करता।
इस युद्ध के जरिए पुतिन ने नाटो को भी सख्त संदेश दे दिया है कि वह इनमें से किसी भी देश को अपना सदस्य बनाने का दुस्साहस न दिखाए। हाल में नाटो के महासचिव जेन स्टोल्टेनबर्ग ने भी युद्ध लंबा खिंचने को लेकर चिंता बढ़ा दी है। सच यह भी है कि नाटो भी नहीं चाह रहा है कि युद्ध रुके। यूक्रेन जंग के मैदान में रूस का मुकाबला कर भी इसीलिए पा रहा है कि उसे अमेरिका सहित दूसरे रूस विरोधी देशों से पर्याप्त सैन्य मदद और हथियार मिल रहे हैं। यही संकट का बड़ा कारण है।