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कुपोषण और भुखमरी पर वैश्विक रिपोर्टें चौंकाने वाली ही होती हैं। इनसे यही पता चलता है कि दुनिया भर में कुपोषितों का आंकड़ा कितना और बढ़ा। लेकिन ज्यादा चितांजनक यह है कि तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद कुपोषितों और भुखमरी का सामना करने वालों का आंकड़ा पिछली बार के मुकाबले बढ़ा हुआ ही निकलता है। ऐसी रिपोर्टें बताती हैं कि ऐसी गंभीर समस्याओं से लड़ते हुए हम कहां पहुंचे। इसी में एक बड़ा सवाल यह भी निकलता है कि जिन लक्ष्यों को लेकर दुनिया के देश सामूहिक तौर पर या अपने प्रयासों के दावे करते रहे, उनमें कामयाबी कितनी मिली। कुपोषण, गरीबी और भुखमरी में सीधा रिश्ता है। यह दो-चार देशों ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत बड़े भूभाग के लिए चुनौती बनी हुई है। दुनिया से लगभग आधी आबादी इन समस्याओं से जूझ रही है। इसलिए यह सवाल तो उठता ही रहेगा कि इन समस्याओं से जूझने वाले देश आखिर क्यों नहीं इनसे निपट पा रहे हैं।
हाल में एक अध्ययन में यह पता चला है कि दुनिया के तीन अरब लोग पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। वास्तविक आंकड़ा इससे भी बड़ा हो तो हैरानी की बात नहीं। पर इतना जरूर है कि इतनी आबादी तो उस पौष्टिक खाद्य से दूर ही है जो एक मनुष्य को दुरुस्त रहने के लिए चाहिए। इनमें ज्यादातर लोग गरीब और विकासशील देशों के ही हैं। गरीब मुल्कों में भी अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी और एशियाई क्षेत्र के देश ज्यादा हैं। गरीबी की मार से लोग अपने खानपान की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते। अगर शहरों में ही देख लें तो गरीब आबादी के लिए रोजाना दूध और आटा खरीदना भी भारी पड़ता है। राजनीतिक संघर्षों और गृहयुद्ध जैसे संकटों से जूझ रहे अफ्रीकी देशों से आने वाली तस्वीरें तो और डरावनी हैं। खाने के एक-एक पैकेट के लिए हजारों की भीड़ उमड़ पड़ती है!
ऐसे में पौष्टिक भोजन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। महंगाई के कारण मध्य और निन्म वर्ग के लोग अपने खानपान के खर्च में भारी कटौती के लिए मजबूर होते हैं। ऐसे में एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए निर्धारित मानकों वाले खाद्य पदार्थ उनकी पहुंच से दूर हो जाते हैं। पौष्टिक भोजन के अभाव में लोग गंभीर बीमारियों की जद में आने लगते हैं। ग्रामीण इलाकों में यह हाल और बुरा है। यह स्थिति किसी एक देश विशेष की नहीं, बल्कि सारे गरीब और विकासशील देशों में कमोबेश एक जैसी ही है। विकासशील देशों में भी कुछेक शहरों में अगर उच्च मध्यवर्ग तक के तबके को छोड़ दें तो बाकी आबादी का हाल गरीब मुल्कों में जिंदगी काट रहे लोगों से बेहतर नहीं है।
महामारी के डेढ़ साल में कुपोषण के मोर्चे पर हालात और दयनीय हुए हैं। अब इस संकट से निपटने की चुनौती और बड़ी हो गई है। इसके लिए देशों को अपने स्तर पर तो जुटना ही होगा, वैश्विक प्रयासों की भूमिका भी अहम होगी। गरीब मुल्कों की मदद के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम को तेज करने की जरूरत है। विकासशील देशों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो गरीबी दूर कर सकें। उन देशों की सरकारों को अपना खाद्य तंत्र मजबूत बनाना पड़ेगा। पोषक तत्त्व वाले फल-सब्जी और प्रोटीन से भरपूर खाद्य उत्पाद उगाने के लिए किसानों को प्रेरित करना होगा। हालांकि इसके लिए भारी निवेश चाहिए। पर यह कोई असंभव काम नहीं है। सत्ताएं ठान लें तो हर नागरिक को पौष्टिक भोजन देना मुश्किल भी नहीं है।