सम्पादकीय

सरकार को कोसने से कुछ नहीं होगा; उसकी अव्यवस्था का एक बड़ा अंग तो हम ही बनते हैं

Gulabi
22 Jan 2022 8:45 AM GMT
सरकार को कोसने से कुछ नहीं होगा; उसकी अव्यवस्था का एक बड़ा अंग तो हम ही बनते हैं
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इसके आंकड़े अस्थिर हैं और प्रभाव पीड़ादायक। हमारे देश में चुनौतियां इसलिए भी बढ़ जाती हैं कि
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
जीवन में फिर एक कठिन दौर आ गया। ऐसे में यदि सावधानी छोड़ी तो अपने आपको ऐसे सदमे और सकते में पाएंगे, जिसमें से बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाएगा। इस तीसरी लहर के तेवर बहुत तीखे भले ही न हों, लेकिन रहस्यमयी जरूर हैं। इसके आंकड़े अस्थिर हैं और प्रभाव पीड़ादायक। हमारे देश में चुनौतियां इसलिए भी बढ़ जाती हैं कि यहां पग-पग पर अव्यवस्था का आलम दिखता है।
एक अव्यवस्था यह भी है कि यहां की जेलों में लगभग 70% बंदी ऐसे हैं, जो निर्दोष हो सकते हैं। यह एक पीड़ादायक आंकड़ा है। ठीक ऐसा ही बीमारी को लेकर है। आपके आसपास के 70% लोग ऐसे हो सकते हैं जो कोरोनाग्रस्त हों। इसलिए सरकारी व्यवस्था-अव्यवस्था पर बहुत अधिक न टिकें। हमारी निजी व्यवस्था बड़ी पक्की और साफ-सुथरी होना चाहिए। अब सरकार को कोसकर कुछ नहीं होगा, क्योंकि उसकी अव्यवस्था का एक बड़ा अंग तो हम ही बनते हैं।
अब जरूरत निज अनुशासन की है। हम लोगों की आदत पड़ जाती है सुविधाओं में जीने की। फिर, जरा-सी असुविधा हुई कि बेचैन हुए। ध्यान रखिए, सुविधाओं में उठे कदम ज्यादा होंगे, पर ठोस नहीं होंगे। वहीं परेशानी में उठे कदम कम होंगे, पर ठोस होंगे। तो जीवन भी बचाना है, जीविका भी चलाना है। ऐसे में अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर रखें और बढ़ते चलें। यह दौर भी गुजर जाएगा।
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