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- बाधा प्रवेश
Written by जनसत्ता; विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए इस साल से साझा प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई है। मगर इसकी पहली पाली में ही बाधा उपस्थित हो गई, जिसके चलते परीक्षा टालनी पड़ी। स्वाभाविक ही इसे लेकर विद्यार्थियों और अभिभावकों में नाराजगी देखी गई। साझा प्रवेश परीक्षा का आयोजन राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए करती है। इसके लिए कंप्यूटरीकृत पर्चे बनाए जाते हैं, जो विद्यार्थियों को विभिन्न केंद्रों पर इंटरनेट प्रणाली के तहत एक साथ उपलब्ध होते हैं। इसके लिए उन्हीं केंद्रों का चुनाव किया गया है, जहां बड़ी संख्या में इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों की व्यवस्था है।
इस तरह जो पहले लिखित रूप में परीक्षा होने के कारण विद्यार्थियों को अपने घरों के आसपास केंद्र मिल जाया करते थे, अब उसके लिए उन्हें दूर-दूर जाना पड़ता है। जो विद्यार्थी दूसरे शहरों में रहते हैं, वे एक दिन पहले परीक्षा केंद्रों पर पहुंच जाते हैं। चूंकि विश्वविद्यालय दाखिले वाले बच्चों की उम्र अधिक नहीं होती, इसलिए उनके साथ प्राय: उनके अभिभावक भी होते हैं।
ऐसे में अगर परीक्षा में किसी प्रकार की गड़बड़ी होती है, उसे टाल दिया जाता है, तो बच्चों और अभिभावकों की परेशानी समझी जा सकती है। उन्हें नए सिरे से फिर वही कवायद करनी पड़ती है। दिल्ली और उसके आसपास के केंद्रों में सर्वर की रफ्तार धीमी होने की वजह परीक्षा टालनी पड़ी।
प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाओं के संचालन के लिए विशेष रूप से राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए का गठन किया गया, ताकि विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों और विभिन्न सरकारी विभागों को परीक्षाएं आयोजित करने की झंझट से मुक्ति मिल सके और प्रतियोगी परीक्षाएं बिना किसी धांधली के कराई जा सकें।
उनके नतीजे भी जल्दी निकाले जा सकें। मगर अभी तक राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी ऐसी प्रणाली विकसित नहीं कर सकी है, जो सभी विद्यार्थियों के अनुकूल हो और उसका संचालन सही तरीके से किया जा सकता हो। जब विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए साझा प्रवेश परीक्षा का नियम बना, तब भी इसीलिए कई लोगों ने इसका विरोध किया था कि इससे बहुत सारे दूरदराज के क्षेत्रों के ऐसे विद्यार्थियों को मौका नहीं मिल पाएगा, जिन्होंने कंप्यूटर पर अभ्यास नहीं किया है। उनमें बहुत सारे मेधावी विद्यार्थी भी हो सकते हैं।
वह शिकायत तो अपनी जगह मौजूद है, यह परीक्षा प्रणाली अपनी पहली ही पाली में प्रश्नांकित हो गई। एनटीए यह बहाना नहीं दे सकता कि चूंकि पहली बार यह प्रणाली लागू की गई है, इसलिए उसमें परेशानियां स्वाभाविक हैं। एनटीए कई साल से प्रवेश परीक्षाएं और प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित कर रहा है और उन सबमें यही प्रणाली काम में ली जाती है।
प्रतियोगी परीक्षाओं को भरोसेमंद बनाना अब भी बड़ी चुनौती है। शायद ही कोई साल जाता है, जब परीक्षा से पहले पर्चा बाहर आने की शिकायत न मिलती हो। इसके अलावा कंप्यूटरीकृत प्रणाली में सर्वर की गति की समस्या बनी ही रहती है। जब दिल्ली जैसे अपेक्षाकृत अधिक साधन संपन्न केंद्रों में यह दिक्कत पैदा हो गई, तो दूरदराज के उन केंद्रों के बारे में क्या दावा किया जा सकता है, जहां इंटरनेट और बिजली की सुविधा को लेकर शिकायतें आम हैं।
बदलती स्थितियों के अनुसार तकनीक का उपयोग अवश्य होना चाहिए, मगर हमारे देश में जहां अब भी अनेक स्तर की परेशानियां हैं, विद्यार्थियों के अलग-अलग स्तर हैं, अब भी पर्याप्त संख्या में तकनीकी साधनों से लैस परीक्षा केंद्रों की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां परीक्षा प्रणाली लागू करने से पहले तैयारियां कर ली जानी चाहिए।