सम्पादकीय

कर्ज देते समय बैंकों को बरतनी होगी सतर्कता, एनपीए वसूली के लिए अधिक अधिकार देने की जरूरत

Gulabi Jagat
4 July 2022 5:27 AM GMT
कर्ज देते समय बैंकों को बरतनी होगी सतर्कता, एनपीए वसूली के लिए अधिक अधिकार देने की जरूरत
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एनपीए वसूली के लिए अधिक अधिकार देने की जरूरत
[ब्रजेश कुमार तिवारी]। फंसे हुए कर्ज यानी बैड लोन के बढ़ते मामलों की समस्या से भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए राहत अभी दूर की कौड़ी दिखती है। कर्ज की ऐसी ही बंदरबांट को लेकर दीवान हार्उंसग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) से जुड़े एक मामले में बीते दिनों सीबीआइ ने सक्रियता दिखाई है। सीबीआइ ने इससे जुड़े प्रमुख लोगों पर मामला भी दर्ज किया है।
दरअसल डीएचएफएल ने यूनियन बैंक आफ इंडिया के नेतृत्व वाले बैंकों के कंसोर्टियम को बैंकिंग फ्राड के जरिये करीब 35 हजार करोड़ रुपये का झटका दिया है। मामला 2010 से 2019 के बीच का है। आडिट फर्म केपीएमजी ने इसे घोटाले को पकड़ा। इससे पहले फरवरी में एबीजी शिपयार्ड द्वारा करीब 23 हजार करोड़ रुपये का कर्ज फर्जी तरीके से लेने का मामला सुर्खियों में आया था।
किसी भी देश की बैंकिंग प्रणाली उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। बैंकों को नुकसान का असर प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है, क्योंकि उनकी राशि मुख्य रूप से बैंकों में ही जमा होती है। बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियां यानी एनपीए में फंसे कर्जों और घोटालों के कारण तेजी आई है। वैसे तो बड़े लोन एडवांस में धोखाधड़ी आसान नहीं। फिर भी ऐसा होता है।
दरअसल बड़े लेनदार, बैंक अधिकारियों या कभी-कभी तीसरे पक्ष जैसे कि वकीलों या चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) तक के साथ साठगांठ कर लेते हैं और इसके बाद जालसाजी का खेल अंजाम दिया जाता है। आए दिन कोई न कोई बैंक घोटाला खबरों में आता ही रहता है। यही घोटाले बैंकों के लिए एनपीए की आफत बढ़ा रहे हैं।
दिसंबर 2021 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि बैंकों का नेट एनपीए सितंबर 2022 तक 10 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है। उच्च एनपीए से बैंकों का नेट इंटरेस्ट मार्जिन भी कम होने लगता है। साथ ही उनकी परिचालन लागत भी लगातार बढ़ती जाती है। इस बढ़ी हुई लागत की भरपाई ये बैंक ग्राहकों से कोई न कोई सुविधा शुल्क बढ़ाने की आड़ में वसूलते हैं। डेलायट द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया कि 40 प्रतिशत एनपीए इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि कर्ज देने के बाद उनकी वसूली पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
वहीं 20 प्रतिशत एनपीए के लिए कर्ज देते समय आवश्यक औपचारिकताएं पूरी न किए जाने को बताया गया। एक रिपोर्ट के अनुसार उद्योगों को दिए 100 रुपये के कर्ज में 70 रुपये डूब रहे हैं। इसकी तुलना में आम आदमी को दिए गए कर्ज के मात्र चार रुपये ही डूब रहे हैं और वह भी बाद में वसूल हो ही जाते हैं।
इसका यही अर्थ है कि आम आदमी तो बैंकिंग तंत्र को धार दे रहा है, लेकिन कुछ बड़े लेनदार इसी तंत्र को बीमार करने पर आमादा हैं। इसके लिए बैंकिंग तंत्र को आत्मविश्लेषण करना होगा। आरबीआइ के आंकड़ों से पता चलता है कि बैंकिग क्षेत्र में लगभग 35 प्रतिशत घोटाले अंदरूनी होते हैं जो केवल कनिष्ठ और मध्य स्तर के प्रबंधन की मिलीभगत का नतीजा हैं।
स्पष्ट है कि कर्ज देते समय बैंकों को आवश्यक सतर्कता का परिचय देना चाहिए। एनपीए कम करने के लिए सनदी लेखाकारों का नियमन एवं नियंत्रण बहुत जरूरी है। उन भारतीय कंपनियों को कर्ज देते समय बैंकों को विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए, जिन्होंने विदेश में भारी कर्ज लिया है। साथ ही बैंकों के आंतरिक और बाहरी आडिट सिस्टम को सख्त करने की तत्काल आवश्यकता है।
इसके अतिरिक्त सरकार को कानूनों में संशोधन करने और बैंकों को एनपीए की वसूली के लिए अधिक अधिकार देने की जरूरत है। कनिष्ठ अधिकारियों को अक्सर गड़बड़ी का जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि बड़े निर्णय क्रेडिट स्वीकृति समिति द्वारा किए जाते हैं जिसमें वरिष्ठ स्तर के अधिकारी शामिल होते हैं। इसलिए वरिष्ठ अधिकारियों को जवाबदेह बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऋण विभाग के कर्मचारियों का तेज रोटेशन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ऋण मंजूर करने से पहले बड़ी परियोजनाओं के कड़े मूल्यांकन के लिए एक आंतरिक रेटिंग एजेंसी स्थापित करनी चाहिए। व्यापारिक परियोजनाओं के बारे में पूर्व चेतावनी संकेतों की निगरानी के लिए प्रभावी प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआइएस) को लागू करना जरूरी है।
आरबीआइ के पास फोरेंसिक आडिट करने के लिए पर्यवेक्षी क्षमता का अभाव है और इसे मानव संसाधनों के साथ-साथ तकनीकी संसाधनों के साथ मजबूत किया जाना चाहिए। वित्तीय लेनदेन की निगरानी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से वित्तीय धोखाधड़ी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। उधार लेने वालों की पृष्ठभूमि और अन्य प्रासंगिर्क बिंदुओं पर शाखा से इनपुट, जो जोखिमों का आकलन करने में महत्वपूर्ण हैं, को उचित महत्व दिया जाना चाहिए है।
पिछले कई वर्षों में भारत ने भारी-भरकम बैंकिंग घोटाले देखे हैं और ये सिर्फ वही हैं जो सामने आए हैं, जबकि ऐसी आशंका है कि तमाम घपले अभी भी छिपे हुए हैं। समय की मांग है कि बड़े कारपोरेट बैड लोन को लगातार बट्टे खाते में डालने के बजाय, भारत को ऋण वसूली प्रक्रियाओं में सुधार करना होगा। केवल नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड या 'बैड बैंक' की स्थापना ही वास्तविक समाधान नहीं है। बैंकों को हर तिमाही आधार पर फ्राड रिस्क असेसमेंट करने की आवश्यकता है। यह सही है कि भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिग उद्योग में घोटालों के मुद्दे को हल करने के लिए कुछ उपाय किए हैं, लेकिन इस दिशा में एक लंबा सफर तय करना होगा।
(लेखक जेएनयू के अटल बिहारी वाजपेयी प्रबंधन और उद्यमिता संस्थान में सहायक प्राध्यापक हैं)
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