सम्पादकीय

बैंक धोखाधड़ी : राष्ट्रीय खजाने को लूटने वाले, इन सवालों से जूझेगी सीबीआई

Neha Dani
16 Feb 2022 1:41 AM GMT
बैंक धोखाधड़ी : राष्ट्रीय खजाने को लूटने वाले, इन सवालों से जूझेगी सीबीआई
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धोखेबाजों का समय पर खुलासा करने और सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की आवश्यकता है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 12 फरवरी, 2022 को एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड और उसके निदेशकों/ प्रमोटरों ऋषि कमलेश अग्रवाल, संथानम मुथास्वामी, अश्विनी कुमार, सुशील कुमार अग्रवाल और रवि विमल नेवेतिया के खिलाफ कथित तौर पर 28 बैंकों को 22,842 करोड़ रुपये के धोखा देने का मामला दर्ज किया। इस मामले में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के अज्ञात कर्मचारियों के साथ ही एबीजी इंटरनेशनल प्रा. लि. का नाम भी आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और आधिकारिक पद के दुरुपयोग के कथित अपराधों में शुमार है।

सीबीआई द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि भारत के अब तक के बैंक धोखाधड़ी के सबसे बड़े मामले में आरोपियों ने कथित तौर पर तत्कालीन स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, वाणिज्यिक वित्त शाखा, नई दिल्ली; तत्कालीन स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, वाणिज्यिक शाखा, नई दिल्ली; भारतीय स्टेट बैंक, विदेशी शाखा, मुंबई, इत्यादि सहित 28 बैंकों के कंसोर्टियम को धोखा दिया। कंसोर्टियम का नेतृत्व आईसीआईसीआई बैंक ने किया था।
एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड (एबीजीएसएल) की स्थापना 15 मार्च, 1985 को हुई थी, जिसका पंजीकृत कार्यालय अहमदाबाद में है। यह एबीजी समूह की प्रमुख कंपनी थी और जहाज निर्माण और जहाज की मरम्मत के कारोबार में लगी हुई थी। ऋषि अग्रवाल द्वारा प्रवर्तित एबीजी ग्रुप भारतीय जहाज निर्माण उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी रहा है। उनके शिपयार्ड गुजरात के दाहेज और सूरत में स्थित हैं।
कंपनी के खराब प्रदर्शन के कारण एबीजी शिपयार्ड को पहली बार 30 नवंबर, 2013 को एक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के रूप में घोषित किया गया था। हालांकि, 2014 में सीडीआर योजना के तहत पुनर्गठन किया गया था, लेकिन फिर से 30 जुलाई, 2017 को इस कंपनी को एनपीए घोषित किया गया था। सवाल उठता है कि एक प्रतिष्ठित कंपनी, जो गुणवत्तापूर्ण जहाज निर्माण का काम करती थी और जिसे एक बार में 20,000 करोड़ रुपये का बड़ा ऑर्डर मिलता था, जिसके प्रतिष्ठित ग्राहकों में भारतीय नौ सेना एवं तटरक्षक बल शामिल हैं, कैसे कुछ ही वर्षों में सबसे बड़े बैंक धोखाधड़ी मामले में फंस गई।
अप्रैल, 2012 से जुलाई, 2017 की अवधि के लिए ऋणदाताओं की तरफ से अर्नेस्ट ऐंड यंग एलएलपी द्वारा की गई फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 'आरोपियों ने एक साथ मिलीभगत करके अवैध गतिविधियों को अंजाम दिया है, जिसमें फंड का डायवर्जन, धन का दुरुपयोग और आपराधिक विश्वासघात और जिस मकसद से बैंक ने ऋण दिया, उसके बजाय दूसरे उद्देश्य में धन खर्च करने का आरोप है।'
यहां जवाब से ज्यादा सवाल हैं। सबसे पहले, बड़ी परियोजनाओं के लिए, बैंक ऋण काफी नियंत्रण में, हस्तांतरण से पहले तीसरे पक्ष के खातों (एस्क्रो खातों) में रखकर और निरंतर निगरानी के साथ दिए जाते हैं। ऐसे में, किसी भी बैंक ने अपनी त्रैमासिक और वार्षिक समीक्षा में कथित फंड डायवर्जन और दुरुपयोग को क्यों नहीं पकड़ा? दूसरी बात, बैंकों का नियामक, भारतीय रिजर्व बैंक सभी बैंकों का समय-समय पर ऑडिट करता है और सभी बड़े ऋणों की समीक्षा करता है। फिर इतने वर्षों तक किसी भी उधार देने वाले बैंक में, आरबीआई के किसी भी ऑडिट में इस ऋण के खिलाफ सवाल क्यों नहीं उठाए गए?
फंड डायवर्जन के पैमाने को देखते हुए, बैंक विशिष्ट शाखाओं और अधिकारियों को ऐसे ऋणों के सही उपयोग पर सक्रिय निगरानी और रिपोर्ट करने और कुछ भी गलत होने पर उपचारात्मक कार्रवाई करने के लिए नामित करते हैं। क्या सभी संबंधित बैंक इससे चूक गए, जिसमें एक विदेशी बैंक भी शामिल था, जिसका एक बड़ा एक्सपोजर भी था? 22,842 करोड़ रुपये के अंतिम बिल का भुगतान भारतीय जनता द्वारा किया गया है।
धन कथित तौर पर प्रमोटर संस्थाओं की जेब में चला गया है, जबकि सरकारी खजाने को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में और पूंजी डालने के लिए बिल का भुगतान करना पड़ा है। इस मामले में एक-एक पाई को उसके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए एक गहन जांच की आवश्यकता है और इन निधियों के इस कथित गबन से अर्जित सभी संपत्तियों को जब्त करने और बैंकों को उनका कर्ज चुकाने के लिए नीलाम करने की आवश्यकता है।
चीन में शी जिनपिंग के शासनकाल में, चीन से भाग गए 10,000 से अधिक बैंक डिफॉल्टरों को दुनिया भर से गिरफ्तार किया गया है और कठोर दंड का सामना करने के लिए वापस चीन लाया गया है। भारतीय अधिकारियों को इस तरह की बैंक धोखाधड़ी के अपराधियों को पकड़ने और उन्हें जवाबदेह ठहराने की जरूरत है, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपराध से अर्जित आय को जब्त कर राष्ट्रीय खजाने में वापस लाया जाए।
वास्तविकता यह है कि 2017 में इस कंपनी के खिलाफ दिवालियापन की कार्यवाही शुरू की गई थी और उस प्रक्रिया की विफलता पर 2019 में कंपनी के परिसमापन की घोषणा की गई थी। परिसमापन एक व्यवसाय को समाप्त करने और दावेदारों को उसकी संपत्ति वितरित करने की प्रक्रिया है। इसलिए बैंकों को इस मामले में आईबीसी (दिवालियापन संहिता) प्रक्रिया के माध्यम से अपने बकाये की बहुत कम वसूली होगी।
जहां सीबीआई और अन्य एजेंसियों को कंपनी के मालिकों और अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए बेहतर प्रदर्शन करना होगा, वहीं नियामक अधिकारियों द्वारा नियुक्त ऋण देने वाले अधिकारियों और लेखा परीक्षकों की भूमिका की जांच करना भी महत्वपूर्ण है। अन्य सभी क्षेत्रों में, यदि कोई सूचना सामने आती है, तो कंपनियां स्टॉक एक्सचेंज को तुरंत इसकी सूचना देती हैं।
केवल बैंकों के मामले में ग्राहक गोपनीयता प्रावधानों का उपयोग करते हुए इतनी बड़ी राशि को बट्टे खाते में डालने का खुलासा तब तक नहीं किया जाता, जब तक कि धोखाधड़ी के लिए प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है। शासन में सुधार और ऐसे धोखेबाजों, उनके सहयोगियों और समर्थकों के दिलों में भय पैदा करने के लिए वित्तीय प्रणाली को लूटने और राष्ट्रीय खजाने को नुकसान पहुंचाने वाले धोखेबाजों का समय पर खुलासा करने और सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की आवश्यकता है।

सोर्स: अमर उजाला

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