सम्पादकीय

बांग्लादेश: नोआखली में अब कहां से आएंगे महात्मा गांधी

Neha Dani
20 Oct 2021 1:35 AM GMT
बांग्लादेश: नोआखली में अब कहां से आएंगे महात्मा गांधी
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पर फिलहाल नोआखली को फिर से गांधी जी की आवश्यकता है, जो वहां पर भाईचारे और मैत्री का संदेश दे सके।

महात्मा गांधी नोआखली में नवंबर, 1946 में पहुंचे थे। उनका वहां जाने का मकसद आग में झुलसते नोआखली में शांति की बहाली करना था। वह वहां सात हफ्ते रहे और जब वहां से निकले, तो हालात सामान्य हो चुके थे। उसी नोआखली में 75 साल के बाद आजकल फिर से हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। उनके मंदिर तोड़े जा रहे हैं। दरअसल बांग्लादेश में हिंदू कठमुल्लों के निशाने पर रहते हैं।

यह तो पड़ोसी मुल्क में लगातार होता रहता है। खबर यह है हिंदुओं को नोआखली में मारा जा रहा है, जहां पर महात्मा गांधी ने जाकर हिंदुओं के कत्लेआम को रोका था। नोआखली देश की आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना और 1971 में पाकिस्तान के दो फाड़ होने के बाद बांग्लादेश का अंग बना। यह सुदूर पूर्वी बंगाल में है।
कुछ दिन पहले धार्मिक उन्मादियों की भीड़ ने नोआखली में इस्कॉन मंदिर में भी तोड़फोड़ की। हमलावरों ने मंदिर में मौजूद भक्तों के साथ भी मारपीट की। वहां हिंसा जारी है। गांधी जी को कांग्रेस के नेता डॉ. विधान चंद्र राय ने 18 अक्तूबर, 1946 को बताया था कि वहां के हालात लगातार बिड़गते जा रहे हैं। हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है और हिंदू महिलाओं के साथ धतकरम किया जा रहा है।
मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के बाद कलकत्ता में भड़की हिंसा और कत्लेआम का असर नोआखली में भी हुआ था। गांधी जी छह नवंबर, 1946 को नोआखली के लिए रवाना हुए और अगले दिन वहां पहुंच गए। उनके साथ उनके निजी सचिव प्यारे लाल नैयर, डॉ. राम मनोहर लोहिया, उनकी अनन्य सहयोगी आभा और मनु वगैरह भी थे। बापू नौ नवंबर को नंगे पैर नोआखली के दौरे पर निकले।
उन्होंने अगले सात हफ्तों में 116 मील की दूरी तय कर 47 गांवों का दौरा किया। 1946 की कोजागरी पूर्णिमा नोआखली पर बहुत भारी थी। इस दिन लोग व्रत के बाद रात भर जाग कर लक्ष्मी पूजन करते हैं। 10 अक्तूबर, 1946 को पूरी तैयारी के साथ कत्लेआम किया गया। उस दिन कोजागरी पूर्णिमा थी।
नोआखली में हजारों हिंदुओं को 1946 में मुसलमान बनाया गया था। स्त्रियों का शीलहरण किया गया था। तब बंगाल में सरकार मुस्लिम लीग की थी। कत्लेआम के दौरान नोआखली जिले का कलेक्टर जिला छोड़ कर भाग गया था। मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने गांधी जी से नोआखली को छोड़ने के लिए कहा था।
पर गांधी जी ने चार महीने मुस्लिम लीग की सरकार की तमाम अड़चनों के बाद भी गांव-गांव पैदल घूमकर पीड़ित हिंदुओं के आंसू पोंछने और हौसला दिलाने का काम किया। बैरिस्टर हेमंत कुमार घोष ने उन्हें लगभग 2000 एकड़ भूमि दान की। वहां पर गांधी आश्रम की स्थापना की गई थी, जहां अब भी बापू की प्रतिमा लगी हुई है।
पाकिस्तान बनने के बाद तमाम उथल-पुथल और कानूनी जंग के बावजूद गांधी आश्रम आज भी वहां है। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदले हुए हैं। सवाल यह है कि अब क्या हो गया कि गांधी जी का नोआखली जलने लगा? दरअसल अफगानिस्तान में तालिबानी राज का असर नोआखली में भी है।
अबुल अला मौदूदी द्वारा स्थापित घोर कट्टरवादी जमाते इस्लामी की एक शाखा नोआखली में भी है, जो बांग्लादेश में शरीयत लागू करने की कोशिश कर रही है। ये जगजाहिर है कि बांग्लादेश में हिंदू बुरी तरह से पीड़ित हैं, मंदिरों और हिंदू घरों को तोड़ा व जलाया जाता रहा है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम शेख हसीना उदारवादी हैं, मगर कठमुल्लों के आगे बेबस नजर आती हैं।
जब 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था, उस समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिंदू वहां की आबादी के 30 से 35 फीसदी के बीच थे। पर अब 2011 की जनगणना के बाद वहां हिंदू देश की कुल आबादी का मात्र आठ फीसदी ही रह गए हैं। यह जानकारी बांग्लादेश के एक अखबार ब्लिट्ज में प्रकाशित एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में पेश की गई है।
आप बांग्लादेश के अखबारों को पढ़ें, तो देखेंगे कि वहां शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता होगा, जब किसी हिंदू महिला के साथ कट्टरवादी बदतमीजी न करते हों। क्या कुछ साल बाद बंगलादेश हिंदू-विहीन हो जाएगा? इस सवाल का जवाब हां और ना में दिया जा सकता है। पर फिलहाल नोआखली को फिर से गांधी जी की आवश्यकता है, जो वहां पर भाईचारे और मैत्री का संदेश दे सके।

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