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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
सामाजिक तथा शैक्षणिक कार्यों की आड़ में देश में कुछ संगठन राष्ट्रविरोधी हरकतों में लिप्त हैं. इन तत्वों ने धीरे-धीरे अपने पैर पसारने शुरू किए और आज देश के कोने-कोने में इन लोगों का जाल फैल गया है. पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उससे जुड़े कई संगठन सामाजिक एवं शैक्षणिक कार्यों की आड़ में विदेशी ताकतों के समर्थन से भारत के विरुद्ध लगातार साजिश रच रहे थे.
एक सवाल यह उठ सकता है कि पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(पीएफआई) जैसे संगठनों पर कार्रवाई करने में कहीं सरकार ने देर तो नहीं की. सरकार ने पीएफआई तथा उससे जुड़े संगठनों पर सही समय पर कार्रवाई की है. सरकार की लंबे समय से इन संगठनों पर नजर थी और उसने ठोस सबूत एकत्र किए. ये संगठन कानूनी रूप से भी बेहद मजबूत हैं. इसीलिए उन पर हाथ डालने के पूर्व ठोस सबूत एकत्र करना बेहद जरूरी है. पीएफआई ने देश में चरमपंथ के उभार के बीच बड़ी तेजी से अपनी जड़ें फैलाईं.
पिछले कुछ दिनों में पीएफआई पर पड़े छापों से पता चलता है कि उसका जाल देश के अधिकांश राज्यों में फैल चुका है. सरकार ने उसके बड़े नेताओं तथा सक्रिय सदस्यों को पिछले तीन दिनों में हिरासत में लेकर इस राष्ट्र विरोधी संगठन की कमर तोड़कर रख दी. पीएफआई जैसे संगठनों को ताकत तुष्टिकरण की राजनीति से मिलती है. जहां वोट की राजनीति से ही लोकतंत्र को चलाने की प्रकृति हावी हो जाए तो विशिष्ट वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिए पीएफआई जैसे देशद्रोही तथा आतंकी संगठनों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाला-पोसा जाता है. इनकी हरकतों की ओर से वोट के सौदागर आंख मूंद कर रह जाते हैं.
पीएफआई तथा उससे जुड़े संगठनों पर सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि प्रतिबंध कानून (यूएपीए) के तहत पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया है. इस कानून के तहत सरकार को आतंकी एवं राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त संगठनों के विरुद्ध कारगर कदम उठाने के लिए व्यापक अधिकार मिले हुए हैं. केंद्र सरकार की इस कार्रवाई का समर्थन करने के बजाय कुछ राजनीतिक तत्व तुच्छ राजनीति पर उतर आए हैं. उनका तर्क है कि दक्षिणपंथी संगठनों पर ऐसी कार्रवाई अब तक क्यों नहीं की गई. आतंकी तथा दक्षिणपंथी तत्वों में जमीन-आसमान का फर्क है.
दक्षिणपंथी संगठन भारत की एकता और अखंडता को केंद्रबिंदु मानकर अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं. इसके ठीक विपरीत पीएफआई जैसे संगठन भारत विरोधी ताकतों के इशारे पर देश को तोड़ने की साजिश में लिप्त हैं. ये संगठन देश की युवा पीढ़ी को गुमराह कर उन्हें विध्वंसकारी हरकतों के लिए प्रशिक्षित करते हैं. हाल ही में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने आतंकी संगठनों के खौफनाक चेहरे को बेनकाब कर दिया. राजस्थान में कन्हैयालाल तथा महाराष्ट्र में उमेश कोल्हे नामक व्यक्तियों की निर्मम हत्या कर दो संप्रदायों के बीच सांप्रदायिक विभाजन करने की साजिश रची. इन दोनों ही घटनाओं में पीएफआई का हाथ होने के संकेत मिले हैं.
इन हत्याओं का मकसद भारत में सांप्रदायिक दंगे भड़काना था. सरकार की सतर्कता तथा नागरिकों की जागरूकता के कारण आतंकी संगठनों की साजिश पर पानी फिर गया लेकिन खतरा अभी भी बरकरार है. पीएफआई जैसे कई आतंकी संगठन छद्मवेश में देश के भीतर सक्रिय हैं. ये संगठन जिस बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं, उससे तो एक बात तय है कि बाहरी ताकतें उन्हें फंडिंग कर रही हैं. फंडिंग के तमाम रास्तों को भी बंद करना होगा. सरकार ने विदेशी चंदे के जरिये पर निगरानी तंत्र को मजबूत किया है. उसे और सुदृढ़ करना होगा.
पीएफआई जैसे आतंकी संगठनों पर पांच वर्ष का प्रतिबंध लगाकर सरकार ने देश के भीतर सक्रिय आतंकी जाल पर जबर्दस्त चोट की है. इस मसले पर राजनीति से परे हटकर सरकार के हाथ मजबूत किए जाने चाहिए.
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