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- मनी लॉन्ड्रिंग पर लगे...
नवभारत टाइम्स; प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के सख्त प्रावधानों और इनके तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में मिले अधिकारों पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला दूरगामी प्रभाव वाला है। इस मामले पर सबकी नजरें सिर्फ इस वजह से नहीं थीं कि इससे बहुत सारे हाई-प्रोफाइल केस जुड़े हुए हैं। हालांकि यह तथ्य भी अपनी जगह महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन 242 याचिकाओं के समूह पर सुनवाई करते हुए दिया है, जिनमें पीएमएलए के अलग-अलग प्रावधानों के औचित्य पर सवाल उठाया गया था। लेकिन इसकी सबसे खास बात यह थी कि इसमें न्याय शास्त्र के मूल सिद्धांतों से जुड़ी अहम मान्यताएं दांव पर थीं। उदाहरण के लिए, इस कानून के तहत लगाए गए आरोपों को साबित करने की जिम्मेदारी जांच एजेंसी की नहीं होती। आरोपी को ही यह साबित करना होता है कि वह बेकसूर है। दूसरे शब्दों में, जब तक अपराध साबित न हो जाए तब तक आरोपी को बेकसूर मानने वाली थियरी यहां बिल्कुल पलट जाती है। सवाल था कि क्या यह उचित माना जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अपराधी साबित होने से पहले तक बेकसूर माना जाना बेशक हर आरोपी का मानवाधिकार है, लेकिन संसद द्वारा बनाए गए कानून के जरिए कुछ खास मामलों में इसे निरस्त किया जा सकता है।
ऐसे ही एक और सवाल था कि जैसे पुलिस के लिए एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराना आवश्यक होता है, वैसे ही क्या ईडी के लिए भी यह जरूरी नहीं होना चाहिए कि गिरफ्तारी से पहले वह संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर (एन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) की कॉपी उपलब्ध कराए। कोर्ट ने इस मामले में भी साफ किया कि ईसीआईआर की तुलना एफआईआर से नहीं की जा सकती। यह ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है, जिसे आरोपी के साथ साझा करना उसके लिए जरूरी नहीं है। ईडी गिरफ्तारी के वक्त संबंधित व्यक्ति को उसका आधार बता देती है तो यह काफी है। ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट ने कुर्की-जब्ती वगैरह से जुड़े ईडी के तमाम अधिकारों पर भी कैंची चलाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग आतंकवाद और ड्रग्स कारोबार से जिस अभिन्न रूप में जुड़ा है, उसके मद्देनजर इन मामलों को हलके में नहीं लिया जा सकता। वैसे भी ऐसा नहीं हो सकता कि हम राज्य या सरकार से तमाम गंभीर अपराधों पर अंकुश लगाने की उम्मीद तो करें, लेकिन संबंधित एजेंसियों को उसके लिए आवश्यक अधिकार देने को तैयार न हों। बहरहाल, ईडी के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग जाने के बाद यह और जरूरी हो गया है कि एजेंसी इन अधिकारों के इस्तेमाल में पहले से ज्यादा विवेकपूर्ण रवैया अपनाए ताकि उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाने की कोशिशें खुद ही बेअसर हो जाएं।