सम्पादकीय

शिक्षा के व्यापारीकरण पर रोक लगे

Rani Sahu
30 Aug 2022 7:03 PM GMT
शिक्षा के व्यापारीकरण पर रोक लगे
x
हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 21 विश्वविद्यालयों को फर्जी घोषित किया है जो डिग्री प्रदान नहीं कर सकते हैं
हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 21 विश्वविद्यालयों को फर्जी घोषित किया है जो डिग्री प्रदान नहीं कर सकते हैं। इनमें सबसे अधिक फर्जी विश्वविद्यालय दिल्ली और उसके बाद उत्तर प्रदेश में हैं। यूजीसी द्वारा फर्जी विश्वविद्यालयों के बारे में जारी सार्वजनिक सूचना में कहा गया है कि छात्रों एवं जनसाधारण को सूचित किया जाता है कि देश के विभिन्न भागों में 21 स्वत: अभिकल्पित, गैर मान्यता प्राप्त संस्थान कार्यरत हैं जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियमन-1956 का उल्लंघन कर रहे हैं। इनमें सबसे अधिक दिल्ली में 8, उत्तर प्रदेश में 4, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में 2-2 तथा कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, पुड्डुचेरी और आंध्र प्रदेश में एक-एक फर्जी विश्वविद्यालय हैं। सार्वजनिक सूचना के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम-1956 के अनुच्छेद 22 (1) के अनुसार केंद्रीय, राज्य, प्रांतीय अधिनियम के तहत स्थापित विश्वविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुच्छेद-3 के तहत स्थापित मानद विश्वविद्यालय ही उपाधि प्रदान कर सकते हैं, जिन्हें संसदीय अधिनियम द्वारा उपाधि प्रदान करने के लिए विशेष रूप से अधिकार दिया गया है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुच्छेद 23 के अनुसार उपरोक्त के अलावा अन्य किसी संस्थान द्वारा विश्वविद्यालय शब्द का प्रयोग निषिद्ध है। फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची में दिल्ली में ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फिजिकल हेल्थ साइंस यूनिवर्सिटी, कॉमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, वोकेशनल यूनिवर्सिटी, एडीआर सेंट्रिक ज्यूरिडिकल यूनिवर्सिटी, इंडियन इंस्टिट्यूट आफ साइंस एंड इंजीनियरिंग, विश्वकर्मा ओपन यूनिवर्सिटी फॉर सेल्फ एम्प्लायमेंट इंडिया और आध्यात्मिक विश्वविद्यालय शामिल हैं। उत्तर प्रदेश से सूची में दर्ज फर्जी विश्वविद्यालयों में गांधी हिंदी विद्यापीठ प्रयाग, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रो कॉम्प्लेक्स होम्योपैथी कानपुर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस यूनिवर्सिटी अलीगढ़ और भारतीय शिक्षा परिषद फैजाबाद शामिल हैं। पश्चिम बंगाल से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव मेडिसिन और इंस्टीट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च के नाम हैं। ओडिशा से नव भारत शिक्षा परिषद और नॉर्थ ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी शामिल हैं।
कर्नाटक से बडागानवी सरकार वल्र्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसायटी का नाम है। केरल से सेंट जॉन यूनिवर्सिटी, महाराष्ट्र से राजा अरेबिक यूनिवर्सिटी, पुड्डुचेरी से श्री बोधि एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, आंध्रप्रदेश से क्राइस्ट न्यू टेस्टामेंट डीम्ड यूनिवर्सिटी के नाम फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल हैं। हाल ही में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने इस बात पर अफसोस जताया था कि उच्च शिक्षा के संस्थान 'शिक्षा के कारखानों' में बदलते जा रहे हैं। उन्होंने चिंता जताई थी कि एजुकेशन फैक्ट्रियों में हो रही वृद्धि के कारण ये संस्थान समय के साथ अपनी सामाजिक प्रासंगिकता खो रहे हैं। इस समय हमारे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का ध्यान एक आज्ञाकारी वर्क फोर्स को तैयार करने पर है, जैसा कि औपनिवेशिक काल में था। यह एक कड़वी वास्तविकता है कि छात्रों के पेशेवर विश्वविद्यालयों में दाखिले के बाद भी क्लास रूम टीचिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, भले ही उससे परे दुनिया में क्या कुछ हो रहा है, उन्हें कोई सरोकार नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा पैकेज वाली नौकरी हासिल करना रह गया है। इसमें कोई शक नहीं कि शिक्षा पूरी तरह से व्यवसाय बन कर रह गई है।
करीब 18 करोड़ बच्चे नर्सरी क्लास में दाखिला लेते हैं और 12वीं तक सिर्फ 14433107 बच्चे ही पहुंच पाते हैं। 18 करोड़ में से 11 करोड़ सरकारी स्कूलों से पढ़ाई करते हैं और 7 करोड़ प्राइवेट स्कूलों से। सरकार का बजट शिक्षा पर 46356 करोड़ का है, वहीं निजी स्कूलों का बजट 8 लाख करोड़ से भी ज्यादा का है। सरकार के पास हायर एजुकेशन के नाम पर 33329 करोड़ का बजट है जो कि एक छात्र पर सालाना 974 रुपए पड़ते हैं। मतलब एक दिन में 2 रुपए 66 पैसे प्रति छात्र। वहीं हायर एजुकेशन के लिए मां-बाप अपने बच्चों पर सालाना 553000 करोड़ खर्च करते हंै। मतलब प्रति छात्र 216958 रुपए सालाना। प्रति छात्र हर दिन 594 रुपए। तो मतलब साफ है, सरकार शिक्षा पर खर्च करना चाहती नहीं तो दिनों दिन शिक्षा निजी हाथों में बढ़ती जा रही है। सरकार के कानून का पालन तो खुद सरकारी स्कूल में भी नहीं होता तो निजी स्कूल में क्या होता होगा, ये आप महसूस कर सकतें हैं। देश में सिर्फ शिक्षा ही नहीं, स्वच्छ पानी भी व्यापार बन चुका है और स्वच्छ वायु व्यापार बनने की राह पर है।
आज राजनीति के बाद स्वास्थ्य के साथ देश में सबसे फलदायी उद्योग शिक्षा है। शिक्षा के कारखानों में नैतिकता विहीन, संवेदना रहित मानव निर्माण पूरी तेजी से चल रहा है। यहां तक कि कोरोना के चलते जो लॉकडाउन लगा, पूरी प्रक्रियाएं थम गईं, लोग घरों में कैदी बन गए, लेकिन शिक्षा की फैक्टरियां ऑनलाइन के नाम से चलती रही और उत्पादन होता रहा! न फीस में कोई बड़ी कमी हुई, न ही इसके बारे में कोई चर्चा हुई कि ऑनलाइन पढ़ाई ऑफलाइन पढ़ाई के स्तर की हो रही है अथवा नहीं। यह सारी चीजें सरपरस्ती के नीचे होती हैं। शिक्षा इंडस्ट्री के लोग इतने सशक्त हैं कि वह व्यवस्था को अपने पक्ष में रख सकते हैं। हकीकत में अच्छी शिक्षा कम लागत पर सबको मिले, यह सुनिश्चित करना सरकार की कार्यसूची में अग्र स्थान पर होना चाहिए। शिक्षा हरगिज़ व्यवसाय नहीं है। युवा पीढ़ी को मिल रहे शिक्षण से ही देश का भविष्य जुड़ा है। शिक्षा के हर संस्थान यानी स्कूल, कॉलेज और मशहूर मैनेजमेंट शिक्षा संस्थान किसी न किसी नेता से या तो सीधे संबंध रखते हैं या किसी और रास्ते से कोई न कोई संबंध रखते ही हैं। यह तो हमारे देश की कमज़ोरी रही है कि राज वो करते हैं जिनको शिक्षा से कभी कोई जोड़ नहीं रहा हो और इसके बाद शिक्षा संस्थान को भी वही चलाते हैं। उनके मैनेजमेंट कॉलेज की मार्केटिंग अच्छी होती है क्योंकि वो प्रतिभा प्राप्त लोगों को आमंत्रित कर शिक्षा स्थल की कीमत को बढ़ा सकते हैं और हम उन संस्थान को सफल कहते हैं।
आज जो साथी महत्त्वपूर्ण सफलता चूमते हैं, वे कहीं से भी पढ़े हो सकते हैं और अधिकतर ऐसे छात्र-छात्राएं छोटे शहरों से जो आते हैं वो पढ़ाई में अधिक दिमाग केंद्रित करते हैं। हमारी शिक्षा में गुणात्मक अभाव देखा जा रहा है। हमें शिक्षा का एक ऐसा मॉडल विकसित करने की जरूरत है जो छात्रों को वास्तविक जीवन की चुनौतियों का सामना करना सिखाए। हमारी शिक्षा प्रणाली में क्या इतिहास, मानवीय मुद्दों और भाषाओं की उपेक्षा हो रही है? क्या हमारी शिक्षा सामाजिक एकजुटता बनाने और व्यक्तियों को समाज के सार्थक सदस्यों के रूप में बनाने में भी सक्षम है? हमारा शिक्षा मॉडल युवाओं को जागरूक और उनमें परिवर्तन लाने वाला होना चाहिए। कई पश्चिमी देशों में शिक्षा पर कोई खर्च नहीं करना पड़ता है। हो सकता है कुछ जगह किताबें-कापियां खुद खरीदनी पड़ती हों, मगर स्कूलों में फीस या चंदे के रूप में प्रवेश शुल्क, परीक्षा शुल्क आदि वसूल नहीं किया जाता। इसके विपरीत भारत में स्थिति कुछ अलग ही है। कॉपी-किताब, फीस के नाम पर आर्थिक शोषण उफान पर है। अच्छी उच्च शिक्षा लगातार महंगी शिक्षा हो रही है। शिक्षा की मांग बढऩे से शिक्षा का व्यापार भी बढ़ता जा रहा है। हकीकत है कि आज शिक्षा एक बहुत बड़ी तिजारत बन चुकी है, इसे कोइ तो रोके। तभी सबको अच्छी उच्च शिक्षा मिल पाएगी।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल

By: divyahimachal

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story