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- श्रीलंका में बुर्के पर...
कुरान में बुर्का शब्द का कहीं भी वर्णन नहीं है। बुर्के का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है। बुर्का मुस्लिम संस्कृति का एक हिस्सा है। जहां पर इस्लाम का जन्म हुआ, उस हिस्से की औरतों ने कभी भी पर्दा किया ही नहीं। हज के समय भी मुस्लिम महिलाओं का चेहरा खुला रहता है। पूरे विश्व में महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, इसी दौर में विश्व का एक बड़ा तबका बुर्के के द्वारा महिलाओं की आजादी छीनने को सही ठहराने में लगा हुआ है। बुर्का शब्द और पहनने का प्रचलन ईरान से आया है।
जब इस्लाम मजहब ईरान में आया तब उन लोगों ने वहां प्रचलित परिधान को अपना लिया और धीरे-धीरे ये उनके मजहब का अंग बन गया। समुदाय विशेष के लोग कहते हैं कि बुर्का पहनने से महिलाओं का मर्दों की आंखों में दरिन्दगी से बचाव होता है। मुस्लिम समाज में महिलाओं से तीसरे और चौथे दर्जे का व्यवहार किया जाता रहा है, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है लेकिन बुर्के में कैद करने की व्यवस्था के खिलाफ पाकिस्तान की असमा जहांगीर हो या भारत की इमराना या फिर बंगलादेश की तस्लीमा नसरीन सब बगावत का बिगुल बजा चुकी हैं लेकिन जैसे कट्टरवाद बढ़ता गया बुर्के का प्रचलन बढ़ता ही गया।
अरब देशों में बुर्का पहनने का प्रचलन वहां पर चलने वाली तेज रेतीली आंधियों से बचने के लिए था, लेकिन बाद में इस्लाम धर्म के फैलने के कारण बुर्का इस्लाम का अंग बन गया। आवरण में रहना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया। अरब के लोगों ने इस्लाम में हिजाब और नकाब को मिलाकर बुर्का अनिवार्य कर दिया। फ्रांस समेत कई यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में बुर्के पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। फ्रांस का तर्क है कि बुर्का फ्रांसीसी जीवन मूल्यों के विपरीत है। जर्मनी में भी स्कूूलों में हिजाब और बुर्के पर पूर्ण प्रतिबंध है। स्विट्जरलैंड में तो एक जनमत संग्रह के माध्यम से मस्जिदों में बड़ी ऊंचाई वाली मीनारों का निर्माण प्रतिबंधित कर दिया गया था। स्विट्जरलैंड में भी बुर्के पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी हो चुकी है। एक सप्ताह पहले ही वहां कराए गए जनमत संग्रह में 50 फीसदी लोगों ने बुर्के पर प्रतिबंध के समर्थन में वोट दिया है। यूरोपीय देशों का सोचना है कि बुर्का, मीनारे, नकाब, हिजाब मुस्लिमों को यूरोपवासियों से एकरस होने में बड़ी बाधा है। ये सब यूरोप की संस्कृति और मूल्यों के तथा मुख्यधारा के विरोध में है।