सम्पादकीय

Balraj Sahni Birthday: 'गर्म हवा' के सलीम मिर्जा, एमएस सथ्यू की यादों में बलराज साहनी

Rani Sahu
1 May 2022 8:59 AM GMT
Balraj Sahni Birthday: गर्म हवा के सलीम मिर्जा, एमएस सथ्यू की यादों में बलराज साहनी
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हिंदुस्तान में नव-यथार्थवादी सिनेमा की नींव रखने वाले अभिनेता बलराज साहनी (1913-1973) का आज 109वां जन्मदिन है

अरविंद दास

हिंदुस्तान में नव-यथार्थवादी सिनेमा की नींव रखने वाले अभिनेता बलराज साहनी (1913-1973) का आज 109वां जन्मदिन है. आजादी से पहले वे मुंबई में इप्टा (इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन) के कलाकार थे. फिर ख्वाजा मोहम्मद अब्बास के निर्देशन में बनी फिल्म 'धरती के लाल' (1946) से उनके अभिनय की चर्चा होने लगी. विमल राय की 'दो बीघा जमीन' (1953) में रिक्शा चालक के अपने किरदार को जिस तरह उन्होंने निभाया है, वह आज भी 'मेथड एक्टिंग' में विश्वास रखने वाले अभिनेताओं के लिए एक मानक है. तपते डामर पर नंगे पांव कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा दौड़ाते बलराज साहनी की छवि अपनी मार्मिकता में हिंदी सिनेमा में अद्वितीय है.
परीक्षित साहनी की किताब 'नान कानफॉर्मिस्ट: मेमोरिज ऑफ माय फादर बलराज साहनी' के आमुख में अमिताभ बच्चन ने लिखा है कि जब वे निजी यात्रा पर मुंबई नौकरी तलाशने गए और पहले-पहल फिल्मी दुनिया के जिस तरह के अनुभव हुए उससे वे विचलित थे. वे दुविधा में थे. उनके पिता ने उन्हें सलाह दिया था कि 'बलराज साहनी की तरह बनो, वह फिल्म उद्योग में होकर भी उससे बाहर हैं.' वे लीक पर चलने वाले कलाकार नहीं थे.
खुद बलराज साहनी ने 'मेरी फिल्मी आत्मकथा' में लिखा है- 'अभिनेता बनने के बजाय लेखक और निर्देशक बनना मेरे स्वभाव के बहुत अनुकूल था. अगर मैं अच्छा निर्देशक बन जाता, तो फिर अपने विचारों के अनुसार, अपनी मर्जी की फिल्में बना सकता. तब मैं आज की तरह हिंदी फिल्मों के घटियापन के रोने रो रोकर दिल की भड़ास न निकालता, बल्कि उन्हें मोड़ देने की कोशिश कर सकता.' बलराज राजनीतिक-साहित्यिक चेतना से संपन्न, वाम विचारधारा में विश्वास रखने वाले अभिनेता थे. जिसे हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग कहा जाता है उस दौर के वे गवाह थे. हालांकि मुंबई फिल्म उद्योग के प्रति वे आलोचनात्मक रवैया रखते थे.
उन्होंने अपने करियर में सौ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया, पर एम एस सथ्यू निर्देशित 'गर्म हवा' (1974) में सलीम मिर्जा के किरदार को आज भी लोग याद करते हैं. यह भूमिका खुद उनके दिल के करीब थी.
देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. आजादी के साथ देश विभाजन की त्रासदी भी आई थी. बलराज साहनी रावलपिंडी में जन्मे थे. उन्होंने अपने भाई के साथ विभाजन की विभीषिका और बर्बादी का मंजर देखा था. मुंबई में पाकिस्तान से आए फिल्मकारों की कमी नहीं थी. विभाजन एक ऐसा विषय था जिस पर कोई भी फिल्म बनाना नहीं चाहते थे. ऐसा लगता है कि वे उन स्मृतियों को फिर से जीना नहीं चाहते थे.
बलराज साहनी ने आत्मकथा में इस बात को नोट करते हुए लिखा है-'सन 1947 की मौत की आंधी हमारे सिरों पर से होकर गुजर गई, लेकिन उसके आधार पर हम न कोई बढ़िया फिल्म बना सके, और न ही उस भावुकता से ऊपर उठ कर साहित्य में उसका अमिट चित्रण ही कर पाए.' गौरतलब है कि उनके भाई, हिंदी के चर्चित लेखक, भीष्म साहनी ने विभाजन की त्रासदी को 'तमस' (1974) उपन्यास में उकेरा. बाद में गोविंद निहलानी ने इसे दूरदर्शन के लिए निर्देशित भी किया.
बहरहाल, 92 वर्षीय एमएस सथ्यू उस दौर को याद करते हुए कहते हैं, 'मैं बलराज साहनी को इप्टा और जुहू आर्ट थिएटर के दौर से जानता था और उनके साथ काम किया था.' वे कहते हैं कि 'बलराज साहनी एक महान अभिनेता थे. उनके साथ पहले भी मैंने कमर्शियल फिल्मों में काम किया था, पर गर्म हवा उनका एक महत्वपूर्ण 'एक्टिंग असाइनमेंट' था.' दुर्भाग्यवश बलराज साहनी इस फिल्म के रिलीज होने से पहले ही गुजर गए. बेटी, शबनम, की आत्महत्या के कारण वे सदमे में थे. 'गर्म हवा' की डबिंग खत्म होने के एक दिन बाद उन्हें हार्ट अटैक आया था. इस फिल्म में भी उनकी बेटी की आत्महत्या का एक ऐसा प्रसंग है, जिसे उन्होंने बिना किसी नाटकीयता के निभाया है. उनकी विस्फारित आंखें दुख को बिना कुछ कहे बयां करती हैं. कहते हैं कला जीवन का अनुकरण करती है!
बंगाल विभाजन को लेकर आजादी के तुरंत बाद निमाई घोष की 'छिन्नमूल' (1950) फिल्म आई. बाद में ऋत्विक घटक ने इस त्रासदी को केंद्र में रख कर कई महत्वपूर्ण फिल्में निर्देशित की. वे खुद को विभाजन की संतान कहते थे. पर जैसा कि सथ्यू कहते हैं कि आजादी के पच्चीस साल तक किसी ने पंजाब के विभाजन को लेकर सिनेमा नहीं बनाया था. उन्होंने 'फिल्म फाइनेंस कॉरपोरेशन' की सहायता से इस्मत चुगताई की अप्रकाशित कहानी पर यह फिल्म बनाई. वे कहते हैं कि इस्मत आपा उनकी पत्नी शमा जैदी के करीब थी. शमा जैदी ने कैफी आजमी के साथ मिल कर फिल्म की इस पटकथा लिखी है. फिल्म में शौकत आजमी की भी यादगार भूमिका है.
'गर्म हवा' में आगरा में रहने वाले सलीम मिर्जा देश विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने से इंकार कर देते हैं जबकि उनके भाई हलीम मिर्जा, नाते-रिश्तेदार वतन छोड़ देते हैं. आस-पड़ोस की राजनीति, सांप्रदायिक हलचल अनुकूल नहीं है. मिर्जा से उनका घर, कारोबार छिन जाता है. उन पर जासूसी का आरोप लगता है. फिल्म में एक जगह सलीम मिर्जा कहते हैं: 'जो भागे हैं उनकी सजा उन्हें क्यों दी जाए जो न भागे हैं और न भागना चाहते हैं." विभाजन की पृष्ठभूमि में मिर्जा परिवार की कथा के माध्यम से घर और अस्मिता की अवधारणा; प्रेम, विश्वासघात जैसे भाव को खूबसूरती से बुना गया है. फिल्म के आखिर में सलीम मिर्जा भी देश छोड़ कर पाकिस्तान जाने का निर्णय लेते हैं पर रास्ते में रोजी-रोटी, नौकरी की मांग को लेकर निकला जुलूस मिलता है जिसमें वे और उनके बेटे (फारुख शेख) शामिल हो जाते हैं. एक तरह से कंधे से कंधा मिला कर बेहतरी की लड़ाई के लिए वे मुख्यधारा से जा मिलते हैं. कैफी आजमी की आवाज में यह मिसरा सुनाई देता है- 'धारा में जो मिल जाओगे, बन जाओगे धारा.'
देश में सांप्रदायिकता पर फिर से बहस बढ़ चली है. कभी नागरिकता कानून के नाम पर तो कभी लव जिहाद, बीफ बैन के बहाने यह बहस लगातार बनी रहती है. 'धर्म संसद' में खुले आम धमकी दी जा रही है. सथ्यू कहते हैं देश का ताना-बाना इससे बिखर रहा है. धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंच रही हैं.
'गर्म हवा' के बाद विभाजन को लेकर पॉपुलर और समांतर सिनेमा से जुड़े निर्देशकों की कई फिल्में आई हैं, लेकिन सलीम मिर्जा का किरदार सब पर भारी है. बलराज साहनी ताउम्र सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े रहे. कला और जीवन उनके यहां अभिन्न था. सलीम मिर्जा का किरदार बलराज साहनी से बेहतर शायद ही कोई और निभा सकता था.
Rani Sahu

Rani Sahu

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