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- संतुलन की नीति
Written by जनसत्ता: हालांकि पारंपरिक तौर पर गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में भारत ने शीत युद्ध के दौरान भी दोनों महाशक्तियों से समुचित दूरी बनाए रखी थी। यों देखा जाए तो आज के समय में विश्व में समीकरण हर तरह से बदल चुके हैं और आज भारत और अमेरिका काफी करीब आ गए हैं, जिससे पाकिस्तान को परेशानी रहती है। वहीं रूस से भी हमारा दुराव नहीं है। मगर भारत के सामने यह भी कड़ी चुनौती थी कि अपने राष्ट्रीय हितों पर आधारित स्वतंत्र विदेश नीति को दृढ़ता से जारी रखे और भारत ने वह कर दिखाया है।
युद्ध का विरोध और अंतरराष्ट्रीय शांति की हिमायत करते भारत ने अपने पुराने और परंपरागत मित्र रूस की निंदा करने की पश्चिम देशों की जिद स्वीकार नहीं। यही नहीं, रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों की अनदेखी करते हुए उसने न केवल पहले हो चुके हथियार सौदों पर बेहिचक अमल किया, बल्कि उससे सस्ता तेल आयात करने के अपने अधिकार पर भी कोई आंच नहीं आने दी। हमारे विदेशमंत्री ने भी इसे अपने देश की कूटनीतिक जीत कहा है।
जहां युद्ध से पहले हम रूस से एक फीसद तेल खरीदते थे, वहीं आज यही हिस्सेदारी बढ़ा कर बारह फीसद तक पहुंच गई है। आज चीन के बाद रूसी तेल के दूसरे बड़े खरीदार रूप से हमें काफी सस्ता तेल मिल रहा है जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। देखा जाए तो यह हमारे नीति नियंताओं का और हमारी सफल विदेश नीति का ही कमाल है कि हम विश्व की दो बड़ी महाशक्तियों के साथ सही तौर पर तालमेल बनाए हुए हैं। आज यही कारण है कि रूस भी हमारी बात मानता है, तो अमेरिका को भी हम अपने समर्थन में खड़ा पाते हैं।