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क्या फालतू बात है, काहे बदलेंगे बख्तियारपुर का नाम?- बिहार के मुख्यमंत्री ने जिस अंदाज में पत्रकारों के इस सवाल को खारिज किया
क्या फालतू बात है, काहे बदलेंगे बख्तियारपुर का नाम?- बिहार के मुख्यमंत्री ने जिस अंदाज में पत्रकारों के इस सवाल को खारिज किया, वह बताता है कि सत्ता में भाजपा के साथ रहने के बावजूद उनकी नाम बदलने की राजनीति में कोई रुचि नहीं है. दिलचस्प है कि इस बार राज्य के एक भाजपा विधायक ने बख्तियारपुर का नाम बदलकर उनके अपने नाम पर नीतीश नगर रखने का प्रस्ताव किया था. मगर यह प्रस्ताव भी नीतीश को ललचा नहीं सका.
बिहार की राजधानी पटना से सटा बख्तियारपुर जंक्शन एक ऐसी जगह है, जो नाम बदलने के लिहाज से सबसे उपयुक्त माना जाता है. कहा जाता है कि इस जगह का नाम उस दुर्दांत आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के नाम पर पडा था, जिसने सात सौ साल पहले आकर बिहार के ऐतिहासिक नालंदा विश्व विद्यालय को नष्ट कर दिया था. यहां की काफी संपन्न लाइब्रेरी को आग लगा दी थी, जिसमें बौद्ध धर्म से संबंधित कई दुर्लभ ग्रंथ थे. लंबे समय से अलग-अलग लोग इसका नाम बदलने की मांग करते रहे हैं.
खास तौर पर पिछले दिनों जब पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रख दिया गया, तो भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता अश्विनी उपाध्याय ने बख्तियारपुर का नाम बदलने की भी मांग बिहार सरकार से की.
विधानसभा में हनुमान चालीसा पढ़ने की बात कह चुके हैं बीजेपी विधायक
अब इन दिनों, जब अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ रखे जाने की बात चल रही है, तो बिहार भाजपा के एक विधायक हरि भूषण ठाकुर ने मांग कर दी कि बख्तियारपुर जंक्शन का नाम भी बदला जाना चाहिए. यह हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जन्मभूमि है, इसलिए इसका नाम नीतीश नगर रखा जाना चाहिए. ऐसी जगह का नाम किसी लुटेरे के नाम पर क्यों हो. हालांकि हरि भूषण ठाकुर इन दिनों ऐसे बयान ही जारी कर रहे हैं, इसी हफ्ते उन्होंने बिहार विधानसभा में हनुमान चालीस पढ़ने के लिए भी जगह की मांग की थी.
यह कहते हुए कि जब झारखंड विधानसभा में नमाज पढ़ने के लिए जगह हो सकती है तो बिहार में हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए क्यों जगह नहीं हो. मगर उनके बयान को मीडिया ने इस बार गंभीरता से ले लिया और सोमवार को जनता दरबार के बाद नीतीश कुमार से सवाल पूछ लिया.
इस सवाल पर लगभग झिड़कते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि 'ये फालतू बात है, बख्तियारपुर का नाम क्यों बदला जायेगा. मेरा जन्म स्थान बख्तियारपुर है. बख्तियारपुर के बारे में कुछ लोग बिना मतलब की बात करते रहते हैं. एक बार पार्लियामेंट में एक मेंबर ने कहा था कि जिसने नालंदा यूनिवर्सिटी को नष्ट कर दिया, उसका बख्तियारपुर में ही कैंप था. इस बार उसी बख्तियारपुर में जन्म लेने वाला एक आदमी ने नये सिरे से फिर नालंदा यूनिवर्सिटी का निर्माण किया है.
नीतीश कुमार ने नहीं दिखाई नाम बदलने में कोई रुचि
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान के बाद, यह बात लगभग साफ हो जाती है कि उनकी नाम बदलने की राजनीति में कोई रुचि नहीं है. मगर ऐसा क्यों है? क्या ऐसा इसलिए है कि भाजपा के साथ रहने और एनडीए में शामिल होने के बावजूद नीतीश अपनी सेकुलर छवि को बचाये रखना चाहते हैं और मजहबी आधार पर होने वाली राजनीति से परहेज रखते हैं. उन्हें राज्य में कई इलाकों में मुसलमानों के भी खूब वोट मिलते हैं, वे इसे गंवाना नहीं चाहते. या फिर ऐसा करके वे ऐन यूपी चुनाव के वक्त इस तरह की राजनीति के खोखलेपन को उजागर करने की कोशिश कर रहे हैं.
संभवतः पहला कारण ही इसकी असली वजह है. और बिहार की राजनीति में कोई भी राजनीतिक दल इस तरह के प्रयोग करने की कोशिश नहीं करेगा. यह सच है कि एक बार बिहार सरकार ने भी बख्तियारपुर जंक्शन का नाम बदलने का प्रस्ताव रेलवे को भेजा था. मगर तब राज्य में राष्ट्रपति शासन था और गवर्नर बूटा सिंह की तरफ से यह प्रस्ताव गया था. उस वक्त रेल मंत्री बिहार के ही एक बड़े नेता लालू यादव थे, जिन्होंने एक तरह से इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया. पहले बख्तियारपुर का नाम बदल कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी शीलभद्रयाजी के नाम पर रखे जाने की बात होती थी. अब नीतीश कुमार के नाम पर इस जगह का नाम रखने की नयी मांग शुरू हुई है.
इस बीच बिहार में एक वर्ग यह भी मानता है कि बख्तियारपुर कस्बे का नाम बख्तियार खिलजी के नाम पर नहीं रखा गया है. यह नाम संभवतः सूफी संत हज़रत बख़्तियार क़ुतुब काकी के नाम पर रखा गया है. बिहार में इस्लामिक विरासत को लेकर शोधपरक काम करने वाले मो. उमर असरफ मानते हैं कि बख्तियारपुर का नाम बख्तियार खिलजी के नाम पर रखा गया, यह बात सही नहीं लगती. क्योंकि वह बहुत छोटा सा गांव रहा है. बख्तियार खिलजी को अगर अपने नाम पर किसी जगह का नाम रखना होता तो तो बिहार शरीफ का नाम बदलता, जो उस वक्त बिहार की राजधानी थी. या फिर पटना, नालंदा या किसी दूसरे बड़े शहर का नाम रखता. बख्तियारपुर तो रेलवे के आने से पहले बहुत छोटा सा गांव रहा है.
सूफी संतों के नाम पर रखे गए हैं गांवों के नाम
वे कहते हैं, उस इलाके के ज्यादातर गांवों के नाम किसी न किसी सूफी संत के नाम पर रखे गये हैं, जैसे- जैसे सलीमपुर फ़तेहपुर सिकरी वाले हज़रत सलीम चिश्ती के नाम पर, बाज़िदपुर बस्ताम के बायज़ीद बस्तामी के नाम पर, ख़ुसरुपुर दिल्ली वाले अमीर ख़ुसरू के नाम पर, नेज़ामपुर दिल्ली के हज़रत नेज़मउद्दीन औलिया, मसूदबिघा भी सालार मसूद के नाम पर है. ठीक वैसा ही बख़्तियारपुर का नाम क़ुतुब उल अक़ताब, ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद बख़्तियार अलहुस्सैनी क़ुतुबउद्दिन बख़्तियार काकी के नाम पर है. वे कहते हैं कि अगर बख्तियारपुर गांव के पास से रेलवे लाइन नहीं गुजरती और यह रेलवे जंक्शन नहीं बनता तो शायद यह गांव उपेक्षित ही रह जाता. ऐसा ही एक और रेलवे जंक्शन सहरसा जिले में सिमरी बख्तियारपुर है.
बख्तियारपुर का नाम लुटेरे बख्तियार खिलजी के नाम पर है या दिल्ली के मशहूर सूफी संत बख्तियार काकी के नाम पर अब यह बताने वाला कोई नहीं. कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे. उनके फोलोवरों में गुलाम वंश के संस्थापक उनके हमनाम कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश तक के थे. बख्तियार काकी की मजार भी दिल्ली के मेहरौली में कुतुब मीनार के पास ही है और उमर मानते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार को बनाने की शुरुआत जरूर की, मगर इस मीनार का नाम सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर ही रखा गया है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
पुष्यमित्र, लेखक एवं पत्रकार
स्वतंत्र पत्रकार व लेखक. विभिन्न अखबारों में 15 साल काम किया है. 'रुकतापुर' समेत कई किताबें लिख चुके हैं. समाज, राजनीति और संस्कृति पर पढ़ने-लिखने में रुचि.
Gulabi
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